कब सुधरेगा श्रीशांत, अब रैना को दी गाली

गुरुवार, 21 मई 2009


क्या तेज गेंदबाज एस. श्रीशांत ने कभी न सुधरने की कसम खा ली है? बुधवार को चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ मैच में किंग्स-11 पंजाब के तेज गेंदबाज श्रीशांत अपना आपा खो बैठे। सुरेश रैना से चौका खाने के बाद श्रीशांत ने बौखलाकर गालियां दे दी। परंतु रैना ने संयम बरता और श्रीशांत से कहा कि उन्हें कुछ भी कह लें मगर गाली न दें।
ये पूरा वाकया स्टंप माइक्रोफोन पर रिकॉर्ड हुई थी। कमेंट्री बॉक्स में जब कमेंटेटर्स ने श्रीशांत की आवाज सुनी तो वो उनकी हरकत पर हैरान रह गए। उस वक्त कमेंट्री कर रहे सुनील गावस्कर ने पूरा वाकया दर्शकों को समझाया कि आखिर हुआ क्या था?
आईपीएल-2 में श्रीशांत ने दूसरी बार अपना गुस्सा दिखाया। इससे पहले IPL के अपने दूसरे मैच में ही श्रीशंत अपने रंग में लौट आए। श्रीशांत ने चेन्नई सुपर किंग्स के सलामी बल्लेबाज मैथ्यू हेडन पर गुस्सा दिखाया था। बाद में हेडन ने उन्हें ओवर रेटेड गेंदबाज कहा था। श्रीशांत की गुस्से की वजह थी हेडन की धमाकेदार पारी।
दरअसल पारी के आखिरी ओवर में श्रीशांत के गेंद पर हेडन ने एक दो नहीं पूरे तीन छक्के जड़ दिए। पांचवीं गेंद पर श्रीशांत ने चार रन लेग बाई के तौर पर भी दिए। श्रीशांत की बौखलाहट साफ देखी जा सकती थी। आखिरी गेंद पर श्रीशांत ने हेडन को आउट कर दिया और फिर हमेशा की तरह श्रीशांत बड़बड़ाते दिखाई दिए। लेकिन हेडन शांत हो कर बिना पलटे पवेलियन की ओर चल पड़े। हेडन ने अपना गुस्सा प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाया। उन्होंने कहा कि श्रीशांत ओवर रेटेड गेंदबाज हैं।
मालूम हो कि मैदान पर उलझना श्रीशांत की पुरानी आदत रही है। पिछले साल थप्पड़ विवाद आप नहीं भूले होंगे। जब हरभजन ने श्रीशांत को मैच के बाद जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था। इस बार अनिफट होने के कारण शुरुआती मैचों से श्रीशांत बाहर थे। लेकिन मैदान पर जैसे ही आए अपनी पुरानी आदतों से बाज नहीं आए।

मंत्रियों को लालबत्ती में जनता घुमाती है

रविवार, 17 मई 2009


लालबत्तियों में घुमने वाले डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्रियों को इस लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा है। केंद्रीय ऊर्वरक और रसायन मंत्री रामविलास पासवान जैसे दिग्गज चुनाव हार गए।
पासवान ने बिहार के हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव एक दफा साढ़े चार लाख से अधिक मतों से जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया था लेकिन इस बार वह अपनी परम्परागत सीट भी नहीं बचा सके। उनकी पार्टी का तो बिहार से सूपड़ा ही साफ हो गया।
चुनाव हारने वाले मंत्रियों में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ए. आर. अंतुले, कपड़ा मंत्री शंकरसिंह बाघेला, भारी उद्योग मंत्री संतोष मोहन देव, पंचायती राज मंत्री मणिशंकर अय्यर, महिला व बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी, रेल राज्यमंत्री नारनभाई राठवा, गृह राज्यमंत्री शकील अहमद, कृषि राज्यमंत्री तसलीमुद्दीन, मानव संसाधन राज्यमंत्री अली. अशरफ फातमी, पर्यटन राज्य मंत्री कांति सिंह, जल संसाधन राज्यमंत्री जयप्रकाश नारायण यादव, कृषि राज्यमंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह, पेट्रोलियम राज्यमंत्री दिनशॉ पटेल, भारी उद्योग राज्यमंत्री रघुनाथ झा, जनजातीय मामलों के राज्यमंत्री रामेश्वर ऊरांव, सूचना व प्रसारण राज्यमंत्री एम. एच. अंबरीश और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री चंद्रशेखर साहू शामिल हैं।
रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने सारण और पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ा था। सारण से तो वह जीत गए लेकिन पाटलीपुत्र सीट नहीं बचा सके। गृह मंत्री पी. चिदम्बरम पहले तो हार ही गए थे लेकिन पुनर्मतगणना के बाद वह जीते।
जनता के जनादेश ने इन मंत्रियों से लालबत्ती छीन ली है। इन मंत्रियों ने भले ही अपने-अपने विभाग की जिम्मेदारी अच्छे से निभाई हो लेकिन कहीं न कहीं वे अपने क्षेत्र की जनता को खुश नहीं रख पाए। इतनी भारी संख्या में मंत्रियों का हारना भी अपने आप में बहुत कुछ बयां करता है।

तीन देवियां के बीच टिकी सरकार की राह

गुरुवार, 14 मई 2009


अंतिम और पांचवें चरण के चुनाव संपन्न होते ही जोड़तोड़ का गणित शुरू हो गई है। मतगणना तो 16 मई को होगी लेकिन रूठने-मनाने का दौर शुरू हो गया है। देश की दो बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस जादूई आंकड़ा 272 को स्पर्श करने के लिए अन्य साथियों को अपने पाले में लेने के लिए कोशिश तेज कर दी हैं।
इस कड़ी में आज सोनिया गांधी के घर पर कांग्रेस महासचिवों की बैठक हो रही है। देर शाम को एक और कोर कमिटी की बैठक हो सकती है।
कांग्रेस को आंकड़े तक पहुंचने के लिए राजनीति की तीन देवियां यानी माया, जया और ममता का साथ चाहिए। ममता तो कांग्रेस के खेमे में शामिल हैं लेकिन माया और जया से अभी तक कांग्रेस की दूरी बनी हुई है। ये दूरी 16 मई तक रहेगी। 16 मई के बाद अगर ये तीनों देवियां कांग्रेस के साथ होंगी तो सत्ता में फिर से यूपीए काबिज हो सकता है। लेकिन वामदलों से कांग्रेस की नजदीकियां बढ़ते ही ममता से दूरियां बढ़ जाएगी।
पांचवें और अंतिम चरण के बाद आईबीएन7 और दैनिक भास्कर ने सीएसडीएस के साथ मिलकर वोटरों की नब्ज को टटोलने के लिए एक सर्वे किय़ा। सर्वे की मानें तो कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है। जबकि अगर यूपीए की बात करें तो यूपीए के खाते में 185 से 205 सीटें जाते दिख रही हैं।
इस आंकड़े को आधार मानकर चलें तो यूपीए को सरकार बनाने के लिए कुल 272 सीटें चाहिए यानी यूपीए को सत्ता में फिर से काबिज होने के लिए 67 से 87 सांसदों को अपने पाले में लेने होंगे।
अब ये सीटें कहां से आएंगीं इस पर एक नजर डालते हैं। तमिलनाडु में डीएमके यूपीए के साथ है लेकिन अगर एआईएडीएमके को चुनाव के बाद पलड़ा भारी होता है तो फिर क्या तस्वीर बनकर उभरेगी। फिलहाल तो कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन की ओर से कहा जा रहा है कि कांग्रेस डीएमके से अपना समर्थन वापस नहीं लेगी।
अगर देश के सबसे बड़े राज्य य़ूपी की बात करें तो यहां सपा और कांग्रेस दोनों चुनाव मैदान में अलग-अलग हैं। लेकिन चुनाव के बाद दोनों को साथ आना दोनों की मजबूरी है। वैसे कांग्रेस सपा को बॉय-बॉय कर बीएसपी से हाथ मिलाने में भी नहीं हिचकेगी। क्योंकि सूबे में सपा की जमीन खिसकती नजर आ रही है। वहीं मायावती को बढ़त मिलने के आसार है। ऐसे में कांग्रेस सपा और बीएसपी दोनों में से किसी की भी सवारी कर सकती है। लेकिन मायावती की नजर तो पीएम की कुर्सी पर है। वहीं मुलायम का कहना है कि नतीजे आने पर ही आगे की रणनीति बनाएंगे। यानी खेल अभी बाकी है। लेकिन मैदान तैयार है।
अगर बिहार में लालू-पासवान की बात करें तो दोनों की राजनीतिक जमीन पर नीतीश ने दस्तक दे दी है। दोनों दबी जुबान यूपीए के साथ होने की बात करते हैं पर कांग्रेस की नजर तो नीतीश पर है। गाहे-बगाहे सोनिया-राहुल नीतीश के बखान करते रहते हैं। लेकिन नीतीश ने एनडीए के साथ ही रहने का भरोसा दिलाया है। ऐसे में कांग्रेस के लिए वहां लालू-पासवान को साथ लेना एक मजबूरी है।
वैसे, लालू यादव यादव का कहना है कि मीडिया में जो दिखाया जा रहा है वो सच नहीं है। वो 16 मई के बाद ही पटना से दिल्ली आएंगे और अपना पत्ता खोलेंगे।
बिहार से हटकर पश्चिम बंगाल पर नजर डालें तो वहां कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी है। अगर कांग्रेस वाम दलों को साथ लेता है तो ममता से किनारा करना होगा। लेकिन वाम दल कांग्रेस से खफा हैं। वहीं उड़ीसा में बीजेडी पर कांग्रेस की नजर है। लेकिन सारा खेल 16 मई को ही शुरू होगा। सबकुछ चुनावी नतीजे पर निर्भर करेगा। कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या ये है कि किस पार्टी की सवारी कर नैय्या पार की जाए। क्योंकि ये तो जोड़तोड़ की राजनीति है।