नीतीश की जीत में कोई रहस्य नहीं..लालू जी!

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

बार-बार दोहराया जाता है कि बिहार के इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता, देश के विकास में बिहार का अहम योगदान रहा है, कई ऐसे महापुरुष थे, जो थे तो बिहार के लेकिन उनकी पहचान बिहार तक ही सीमित नहीं थी। जब भी इतिहास की बात होती तो उनके चर्चे जरूर होते हैं। लेकिन वर्तमान में बिहार और बिहार के लोग अपनी पहचान इतिहास में दर्ज कराने में असफल रहे, या फिर वो उस लायक साबित ही नहीं हुए कि उनका नाम और उनके काम को सराहा जाए।

लेकिन बिहार में 24 अक्टूबर को एक युग का अंत हो गया और उसके साथ ही दूसरे युग ने स्वर्णिम दस्तक दे दी है। भले ही इसे इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाने में अभी वक्त और लगे, लेकिन ऐतिहासिक तो शुरू के दिनों से ही हो गया। सीधे लफ्जों में कहें तो नीतीश ने एक युग का अंत कर दिया है और दूसरे युग में ऐतिहासिक कदम रख दिया है।

जी हां, बिहार चुनाव में नीतीश कुमार ने जो फतह हासिल की है उससे उन्हें ऐतिहासिक विकासपुरुष तो बना ही दिया है। भले ही उनकी इस कामयाबी को इतिहास के पन्नों में तुरंत जगह नहीं मिले। नीतीश ने दिखा दिया कि विकास की पूजा होती है। लोग अब जाति-पाति से ऊपर उठकर सोचने लगे हैं। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने पिछले 5 सालों में बिहार को एक नई दिशा देने की कोशिश की, जो अपने राह से भटक गई थी।

नीतीश ने लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश की, भले ही उन समस्याओं का समुचित समाधान नहीं हुआ हो, लेकिन लोगों में नीतीश के प्रति विश्वास जगा, लोगों में संदेश गया कि ये नेता हमारे लिए ईमानदारी से कोशिश कर रहा है इसे एक और मौका देना चाहिए। वैसे भी नीतीश चुनावी सभाओं में एक ही बात कहते थे...'जिसने बिहार को बदहाल किया उसे आपने 15 साल दिया और मैं संवारने की कोशिश कर रहा हूं तो मुझे केवल 5 साल ही देंगे'... इस जुमले के बाद सीधे नीतीश कहते थे कि मुझे 5 साल और दीजिए ताकि आपसे किए वादे को पूरी तरह से पूरा कर पाऊं।

लोगों ने भी सोचा चल जब 15 साल तक अपनी बिरादरी या फिर जिसने कोई वादा ही नहीं किया, उन्हें हमने दिया तो फिर इसने तो कुछ किया है और बहुत कुछ करने का हाथ जोड़कर वादा भी कर रहा है। तो क्यों न एक मौका इसे और दिया जाए? मानो इसी बात के साथ बिहार की जनता ने अगल-बगल झांकने के बजाय एकमुश्त जाति-पाति, हिन्दु-मुस्लिम से ऊपर उठकर नीतीश के कंधों पर अपना हाथ रख दिया।

बिहार में इस बीजेपी-जेडीयू की ऐतिहासिक जीत ने अपने पीछे कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ के जवाब आने में सालों लग जाएंगे लेकिन कुछ के जवाब तो बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के 200 के आंकड़े को पार करते ही तलाश जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या लालू युग का अंत हो गया है? अभी लालू 67 साल हैं ऐसे में अगले बिहार चुनाव तक वो 72 के हो जाएंगे, क्या लालू 72 की उम्र में एक बार फिर कोई करिश्मा कर देंगे।

ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि बिहार में सबसे ज्यादा युवाओं की तादाद है ऐसे में 72 साल लालू युवाओं को किस तरह अपनी और लुभाएंगे, क्योंकि हर ओर युवा नेता को आगे लाने और उसे कमान सौंपने की बातें चरम पर हैं। तो क्या इस हार के साथ ही बिहार में लालू युग का अंत हो गया है? या फिर लालू अपने बेटे के हाथ में पार्टी का कमान सौंपेंगे, क्योंकि इसका आगाज लालू ने इस चुनाव में कर दिया है। जो भी हो अभी तो लालू को 5 साल की फिर कठोर बनवास मिल ही गया है।

एक और सवाल ये है कि अब पासवान का क्या होगा? क्योंकि वो तो अभी युवा हैं लेकिन करिश्मा नहीं दिखा पा रहे हैं या फिर लोगों ने उन्हें तरजीह ही नहीं देना चाहते। क्या इन्हें भी अब ऐहसास होगा कि अब जिस दलित वोटरों के बल पर वो राज करते आए थे अब पराए हो गए हैं या फिर उसने विकास का स्वाद चखकर नीतीश के पाले में अपनी जगह बना ली। जिसमें सेंधमारी फिलहाल मुमकिन नहीं है।

लालू-पासवान को अपनी हार से ज्यादा एनडीए की जीत रहस्यमय लग रही है। वो इस रहस्य से पर्दा उठाने की बात कर रहे हैं। लेकिन वो भी जानते हैं कि भूखी-प्यासी जनता को नीतीश की आधी रोटी मिल गई थी और वो अब पूरी रोटी खाना चाहती है, इसलिए उनका दामन छोड़ दिया। शायद इस कदर हार की उम्मीद तो जनता ने भी नहीं की होगी तो लालू-पासवान को तुरंत कैसे हजम हो जाएगी। वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा।

वहीं बिहार में अपनी अस्तित्व को तलाश रही कांग्रेस को फिर मुंह की खानी पड़ी है। राहुल बाबा का जादू बिहार के लिए फ्लॉप शो साबित हुआ, सबने नीतीश को कोसा, लेकिन बिहार की जनता ने तो उनकी बातों को सुनी लेकिन अपने फैसले पर अडिग रही।

आखिर में मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं नीतीश ने केवल ऐतिहासिक जीत ही नहीं हासिल की है, ये भी दिखा दिया कि विकास के नाम पर चुनाव जीते भी जाते हैं और वो भी रिकॉर्ड बहुमत के साथ। उन्होंने उन नेताओं और पार्टियों को संदेश भी दे दिया जब बिहार के लोग जाति-पाति से उठकर मतदान कर सकते हैं तो देश के बाकी के हिस्सों में भी इसे दोहराया जा सकता है। बस नेताओं को ईमानदारी से कोशिश करने की जरूरत है। साफ शब्दों में कहें तो नीतीश की जीत ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ दी है।