बच्चा पैदा करने के लिए मां-बाप की जरूरत नहीं!

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009


एक बार फिर विज्ञान ने कुदरती करिश्मा को चुनौती देने की कोशिश की है। बच्चे पैदा करने के लिए एक मां और एक पिता की जरूरत होती है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब बदल दिया है। अब बच्चा पैदा करने के लिए सिर्फ मम्मी-पापा की जरूरत नहीं होगी। बल्कि लैब में भी पैदा हो सकेंगे बच्चे। वैज्ञानिक अब इस चमत्कार के काफी करीब पहुंच गए हैं।
कैलिफॉर्निया की स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी के लैब में साइंटिस्ट अब इस चमत्कार के काफी करीब पहुंच गए हैं। अब लैब में ही स्पर्म और एग तैयार किए जाएंगे। इस एक्सपैरिमेंट में एक दिन के मानव भ्रूण से स्टेम सेल लिए और केमिकलों की मदद से एक एग और एक स्पर्म का शुरुआती रूप बना दिया। अब वैज्ञानिक भ्रूण जैसे गुण वाला जर्म सेल बनाने में लगे हैं।
इस एक्सपेरिमेंट को समझने के लिए मानव विकास की कणी को समझना होगा। जैसा कि आप जानते हैं, स्टेम सेल से ही शरीर के हर अंग के सेल का विकास होता है। लेकिन इंसानों के प्रजनन अंगों के विकास की ज़्यादा जानकारी अभी तक नहीं थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वैज्ञानिक कोई भी सेल लेंगे और उसकी बायोलॉजिकल घड़ी को पीछे घुमाकर वापस स्टेम सेल बना देंगे। फिर उस स्टेम सेल से स्पर्म और एग तैयार किए जाएंगे।
इससे पहले 7 जुलाई को वैज्ञानिकों ने लैब में केवल स्पर्म बनाने का दावा किया था। मगर अब वैज्ञानिक एक कदम और आगे बढ़ गए हैं और अब ना सिर्फ स्पर्म बल्कि एग भी लैब में तैयार किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी तैयार हुए स्पर्म और एग पूरी तरह से प्रजनन के लिए ठीक नहीं है। लेकिन समय रहते वो भी तैयार किए जा सकेंगे।
वैज्ञानिकों के इस बड़े कदम ने बहस भी छेड़ दी है। आलोचकों का मानना है कि कुदरत के नियम के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और इंसान का कोई हक नहीं को वो कुदरत के नियम को तोड़े। वहीं वैज्ञानिकों का तर्क है कि उनकी ये तकनीक एक वरदान हैं, उन लोगों के लिए जिनके शरीर में स्पर्म या एग नहीं बनते।

दरअसल ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने लैब में रिसर्च के दौरान पाया कि किसी स्टेम सेल से स्पर्म यानी शुक्राणु पैदा किए जा सकते हैं और ये शुक्राणु बिल्कुल वैसे ही होंगे जैसे असली होते हैं। वैज्ञानिकों को इसका पता तब चला जब वो पुरुषों में नपुंसकता का इलाज खोज रहे थे।
आर्टिफिशियल शुक्राणु तैयार करने में जिन स्टेम सेल की मदद ली गई थी। उन्हें ऐसे भ्रूणों से हासिल किया गया था जिनकी जिंदगी अभी एक दिन की थी। लेकिन ब्रिटिश प्रोफेसर नायेर्निया को उम्मीद है कि ये कामयाबी पुरुषों के हाथ से ली गई खाल के जरिए भी दोहराई जा सकती है। यानी आदमी के हाथ की खाल के एक टुकड़े की कोशिकाओं में कुछ केमिकल्स मिलाकर प्रयोगशाला में से बच्चे पैदा किए जा सकते हैं।
मगर सवाल ये है कि आर्टिफिशियल शुक्राणुओं से बच्चे कैसे पैदा होंगे। इसके लिए वैज्ञानिकों ने मदद ली इंट्रावेनस फ्लूड टैक्नीक की। यानी IVF टैक्नीक से इन शुक्राणुओं का इंजेक्शन अंडों में लगाया जाएगा। ताकि बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
मगर, वैज्ञानिकों के सामने दिक्कत ये है कि वो अपनी इस खोज को अंजाम तक कैसे पहुंचाए। यानी प्रोफेसर नायेर्निया चाहते हैं कि आर्टिफिशियल शुक्राणुओं की मदद से लैब में ही बच्चे पैदा किए जाएं। इसके लिए वो अब सरकार से इजाजत मांगने जा रहे हैं। ये देखना जरूरी है कि स्पर्म सेल अंडाणु के साथ कैसी प्रतिक्रिया करता है और उनके क्रोमोजोम्स का क्या होता है। इसी से तय होगा कि इस परीक्षण से जो तैयार हुआ है वो असली स्पर्म है भी या नहीं।
ब्रिटिश वैज्ञानिकों की स्टेम सेल पर इस खोज के बाद पहली बार दुनिया के सामने कुंवारी मां का सवाल खड़ा हुआ है। उनका दावा है कि अब पिता की कोई भूमिका नहीं होगी। साफ तौर पर कहें तो हमारे सामने एक ऐसी दुनिया की संभावना का रास्ता खुल गया है जहां महिलाओं को बच्चे पैदा करने के लिए पुरुषों की जरूरत नहीं।
प्रोफेसर नायेर्निया ने अभी तक अपनी टैक्नीक का इस्तेमाल चूहों के बच्चे पैदा करने में किया है। चूहे के बच्चे चूहों के स्टेम सेल को शुक्राणुओं में बदलकर पैदा किए गए। अब नायेर्निया का मकसद है कि एक दिन वो इसी तरह नपुंसक पुरुषों को भी औलादें पैदा करने की सहूलियत दे दें। प्रोफेसर नायेर्निया ने अपनी खोज का इस्तेमाल इंसान के शुक्राणु पैदा करने में भी किया है। हालांकि अभी उन्होंने इस शुक्राणु के जरिए इंसान के बच्चे को पैदा नहीं किया है।

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खून बहाने की अंधी परंपरा

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009


आज भी देश के कई हिस्सों में अंधिवश्वास और परंपरा के नाम पर फैली कुरीतियों को भेद पाने में नाकाम हैं। इंदौर इलाके में होने वाला परंपरागत युद्ध बेहद पुराना है। ये युद्ध दो गुटों के बीच होती है और इसे देखने के लिए 20 से 25 हजार की भीड़ जमा होती है। इस युद्ध को शुरू होने से पहले सारे इंतजाम किए जाते हैं। ये खेल कब शुरू हुआ है खेलने वाले भी खुद नहीं जानते हैं।
इलाके में इसे हिंगोट युद्ध कहा जाता है। हर यौद्धा के थैले में 500 से ज्यादा हिंगोट होते हैं। हर साल इस युद्ध में कई लोग घायल होते हैं। इस युद्ध को लड़ने के लिए शराब से हौसले भरे जाते हैं। तभी तो सामने जोखिम होने के बावजूद सभी योद्धा बेखौफ नजर आते हैं।
दरअशल दीवाली के दूसरे दिन इंदौर के पास का गौतमपुरा गांव का मैदान जंग के मैदान में बदल जाता है। दोनों तरफ से दो गांवों के लोग एक-दूसरे के लहू के प्यासे हो जाते हैं। किसी को इस बात की फिक्र नहीं कि इस युद्ध में किसी की जान भी जा सकती है। और हर बार यहां काफी तादाद में लोग घायल होते हैं।
वहीं खतरों के इस खेल को देखने में भी जोखिम कम नहीं है। इस जोखिम की तैयारी बहुत पहले से शुरू हो जाती है।
जिस अग्निबाण से ये खेल खेला जाता है उसे हिंगोट कहते हैं। हिंगोरिया नाम के फल को सुखाकर उसमें बारूद भरा जाता है। उससे ये अग्निबाण हिंगोट तैयार होते हैं।

इस खेल में तुर्रा और कलंगी नाम की दो टीमें होती हैं। दोनों टीमें एक-दूसरे से दुश्मनों की तरह ही लड़ती हैं। हर साल दीवाली के एक दिन बाद ये खेल खेलने की परंपरा है। इस खेल का बाकायदा प्रचार किया जाता है। जाहिर है, अंधविश्वास का ये खेल प्रशासन की जानकारी में होता है। जिस खेल को रोकने के लिए प्रशासन को सख्ती करना चाहिए उसे बेरोकटोक जारी रखने के इंतजाम किए जाते हैं।

सदी के महानायक अमिताभ हुए 67 साल के

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009


आज सदी के महानायक और बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन का जन्मदिन है। बिगबी ने जीवन के 67 बसंत पार कर लिए हैं। जन्मदिन के मौके पर उन्हें बधाई देने वालों का तांता लगा है। मुंबई में शनिवार शाम अमिताभ की नई फिल्म 'रण' का First look रिलीज किया गया। इस मौके पर अमिताभ ने जन्मदिन का केक काटा और बचपन की यादों को ताजा किया।
अपने 40 साल के फिल्मी करियर में बिगबी ने हर बुलंदी को छुआ है। लोग उनकी अदा और कला के दीवाने हैं। लेकिन खुद अमिताभ अपनी कामयाबी से संतुष्ट नहीं हैं। बिगबी अपनी बुलंदी का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं। बिगबी के मुताबिक उन्होंने हमेशा मां और बाबूजी से प्रेरणा ली है। जिससे उन्हें मनचाही कामयाबी मिली।
दरअसल अमिताभ आज खुद बुजुर्ग हैं। लेकिन वो अब भी अपने से बड़ों को सम्मान देना नहीं भूलते और उनके तजुर्बों को तरजीह देते हैं। हालांकि वो नई पीढ़ी की कल्पनाओं और जोश के भी कायल हैं। तभी तो वो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी में खासी संभावनाएं देखते हैं और उनकी सफलता की कामना करते हैं।
आज अमिताभ के जन्मदिन पर फैन उनकी लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं। सभी के लबों पर बस यही दुआ है कि सदी के महानायक तुम्हारी चमक कभी फीकी न पड़े। तुम सिनेमा के आकाश में ध्रुव तारे की तरह हमेशा चमकते रहो। आप भी अमिताभ को जन्मदिन का बधाई दे सकते हैं।

टीम इंडिया में नए चेहरे की जरूरत

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

भारत के पूर्व कप्तान रवि शास्त्री ने चैंपियंस ट्रॉफी में भारत के बाहर होने से खफा होकर कहा कि टीम इंडिया में भारी बदलाव की जरुरत है। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में उन्होंने चयनकर्ताओं से मांग की है कि वो तुरंत 10 नए चेहरों को चुने और उन्हें तुरंत मौका देना शुरू करें। ताकि 2011 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम को फिर शर्मिंदा ना होना पड़े।
शास्त्री ने कहा कि ये जिम्मेदारी चयनकर्ताओं की है कि वो कैसे 25 खिलाड़ियों की फौज तैयार करें। जिन्हें बारी-बारी से कभी भी इस्तेमाल किया जा सके। शास्त्री ने ये भी कहा कि मैं इस बात को नहीं मानता कि हमारे पास प्रतिभा की कमी है। साथ ही उन्होंने कहा कि ये कोई जरूरी नहीं है कि दिलीप वेंगसरकर के चुने गए खिलाड़ियों को ही बार-बार मौका मिलना चाहिए। यही नहीं, शास्त्री ने कहा कि ईशांत शर्मा को सिर्फ टेस्ट क्रिकेट में इस्तेमाल करना चाहिए। जबकि प्रवीण कुमार वनडे में ज्यादा मौके मिलने चाहिए।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के पूर्व कप्तान वसीम अकरम ने भारतीय टीम की हार के लिए कप्तान धोनी को जिम्मेदार ठहराया है। अकरम का कहना है कि खिलाड़ी लगातार गलतियां कर रहे थे। लेकिन धोनी उन्हें समझा नहीं रहे थे। ऐसे मौके पर कप्तान की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो खिलाड़ियों को गलती सुधारने के लिए कहे। अकरम ने तेज गेंदबाजों के रवैये पर भी सवाल उठाया है। उनका मानना है कि आरपी सिंह और ईशांत शर्मा मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत नहीं हैं इसलिए वो अपनी गति खो रहे हैं।