खून के आंसू रुलाया साल 2009 ने!

मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

नया साल दस्तक दे रहा है। हम दुआ करेंगे कि नया साल आपके लिए ढेरों खुशियां ले आए। लेकिन इस नए साल की तरफ कदम बढ़ाते वक्त ज़रूरी है गुजरते हुए साल पर एक नज़र डालना, क्योंकि इतिहास ही भविष्य की नींव रखता है। आखिर कैसा रहा साल 2009। क्या हैं इस साल की कड़वी यादें जिसका असर आने वाले साल पर हो सकता है। क्या थी हमारी खामियां जिनसे हमें सबक लेने और होशियार रहने की ज़रूरत है।

बाढ़ की खौफनाक यादें
2009 में आई बाढ़ किसी प्रलय से कम नहीं था। देश के पांच राज्य कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात और गोवा में भयानक बाढ़ आई। लेकिन तीन राज्य इस बाढ़ की चपेट में सबसे बुरी तरह आएं। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र।
इन तीनों राज्यों में लगभग पचास लाख लोग बाढ़ से प्रभावित हुए।

आंध्र प्रदेश के पांच कूरनूल, महबूबनगर, कृष्णा, गुंटूर और नालगोंडा पर बाढ़ का कहर बरपा। हजारों घर पानी में डूब गए। सेना लोगों को खोज रही थी। बचाने की कोशिश कर रही थी। सबसे बुरी तरह से प्रभावित जिसे कूरनूल में हालात और गंभीर थे। पांच अक्टूबर तक यहां के लाख लोगों को बाढ़ अपनी चपेट में ले चुका था। 43 हजार घरों को पानी ने लील लिया था।

कर्नाटक का भी पिंड इस विपदा से नहीं छूटा था। उसके 15 जिले बाढ़ से प्रभावित थे। बाढ़ का सबसे ज्यादा असर हुआ था बीजापुर, रायचूर, उत्तर कन्नड़, धारवाड़, और कोप्पल में। आंध्र और कर्नाटक में कुल मिलाकर सात लाख से ज्यादा लोग सरकारी रिलीफ कैंप में रहे के लिए मजबूर हो गए। कईयों को तो वो भी नसीब नहीं हुआ। मानसून का इस कहर ने दक्षिण को खून के आंसू रुलाया। जिसका दर्द आज भी कायम है।

महाराष्ट्र के कई जिलों में लगातार बारिश की वजह से नदियां उफान मारने लगी। राज्य के आठ जिलों में बारिश ने भारी तबाही मचाई। यहां के लगभग एक लाख हेक्टेयर जमीन की फसल पानी में डूब गई। बारिश ने राज्य में 25 से ज्यादा लोगों की जान ले ली।

उधर गोवा का हाल भी कुछ अच्छा नहीं था। वहां पर भी 2 अक्टूबर से पांच अक्टूबर तक लगातार बारिश हो रही थी। यहां के कई इलाकों में बाढ़ आ गया। मदद के लिए सेना और नौसेना को आना पड़ा। अकेले कैनाकोना इलाके में 20 से 25 करोड़ का नुकसान हुआ है। भातपोल, नवोदया और किंडलेम इलाके में भी पानी नें हाहाकार मचाया है।

गुजरात के जुनागढ़, पोरबंदर और जामनगर जिले में भारी बारिश ने अपना कहर बरपाया था। सड़क, पुल यातायात के सभी साधन पानी में डूब गए थे। खेत खलिहान भी पानी की भेट चढ़ गए थे। अरबों का नुकसान हुआ था।

किसानों की गोद सूनी रही इस साल
2009 में देश के किसी हिस्से में बाढ़ ने कहर बरपाया तो कहीं सूखा आफत बनकर टूटा। राजस्थान, यूपी, विदर्भ पर सूखे की ऐसी मार पड़ी कि लोग त्राहि त्राहि करने लगे। जहां कि फसलें बारिश नहीं बर्बाद कर पाई वहां सूखा अपना काम कर गया। कर्ज के बोझ तले दबे कई किसोनों ने तिल-तिल कर मरने की बजाए मौत का रास्ता चुन लिया।

37 साल में पहली बार देश ने भयानक सूखे का सामना किया। पानी की आस लगाए किसान के दिन बीतते रहे लेकिन कठोर बादलों से एक बूंद न बरसी। ये था 2009 में पड़े सूखे का कहर। सूखे ने देश के एक बड़े हिस्से पर कहर ढाया। उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान महाराष्ट्र का विदर्भ इलाका, और आंध्र प्रदेश भी सूखे की चपेट में आ गया। किसान करे तो क्या करे। थक हारकर खुदकुशी का रास्ता चुन लिया।

पश्चिमी उत्तरप्रदेश के गन्ना उत्पादक क्षेत्र में औसत मात्रा से 91 फीसदी कम बारिश हुई। बुंदेलखंड का हाल तो सबसे बुरा था। पानी की कमी से खेत के खेत सूखते जा रहे थे। किसान आत्महत्या करने को मजबूर हो रहे थे। दूसरी तरफ बिहार एक अलग ही समस्या से जूझ रहा था।

उत्तरी बिहार जहां बाढ़ की चपेट में था तो वहीं दक्षिणी बिहार पर सूखे की मार पड़ी। राजस्थान के 34 में से 26 जिले सूखे की चपेट में थे। इनमें जयपुर, टोंक, सवाई माधोपुर, करौली, दौसा, अजमेर और भीलवाड़ा में हालात भयानक थे। पूर्वी राजस्थान के बाकी जिलों की हालत भी खराब थी।

आंध्र प्रदेश के कई जिलों में अगस्त के महीने जहां 624 मीली मीटर बारिश होती थी वहीं बारिश की ये मात्रा गिरकर मात्र 153 मीली मीटर रह गई। ये आंध्र प्रदेश के लिए पिछले 50 सालों में सबसे खराब स्थित थी। और जब बारिश हुई तो इतनी हुई कि बाढ़ आ गई।

महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके का हाल तो और भी खराब था। सूखे से बर्बाद होती फसल को देख कई किसानों ने आत्महत्या कर ली।

देश में सूखे के हालात को देखते हुए सरकार पर दबाव बढ़ने लगा। शुरुआती दिनों में कृषि मंत्री शरद पवार मानसून आने में हो रही देर को सामान्य मान रहे थे। लेकिन दिनों दिन खराब होती स्थिति और संसद में विपक्षी दलों के बढ़ते दबाव ने उन्हें देश के प्रभावित हिस्सों को सूखा ग्रस्त घोषित करने पर मजबूर कर दिया।

जब तक सरकार को हालात की गंभीरता का अंदाजा हुआ बात हाथ से निकल चुकी थी। फसलों को भारी नुकसान पहुंचा। सरकार के राहत पैकेज भी काम न आए। नतीजा खाने पीने की चीजों के दाम आसमान छूने लगे। इसका सीधा सीधा असर आम इंसान की जेब पर पड़ा। यानि एक आम आदमी के लिए बहुत बुरा साल था 2009।

साल 2009 में भस्मासुर बनकर उभरी महंगाई
सूखे और बाढ़ की मार झेल रहे देश का सामना अब महंगाई के भस्मासुर से होना था। फसलें बर्बाद होने से उत्पादन में कमी आ गई। जाहिर है करोड़ों लोगों की जेब पर डाका तो पड़ना ही था। खाने पीने की चीजों के दाम इतने बढ़ गए कि एक-एक निवाला हलक से उतरना मुश्किल हो गया।
महंगाई पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने कई कदम उठाए। बार-बार दावे किए कि जल्द ही महंगाई पर काबू पा लिया जाएगा। लेकिन सरकार की तमाम नीतियां बढ़ती कीमतों के आगे बौनी साबित हुईं। 2009 में कीमतें बढ़ती रहीं और आम आदमी पिसता रहा।

वहीं 2009 तो खत्म होने को है लेकिन आम आदमी का सवाल खत्म नहीं हुआ। उसकी जुबान पर यही सवाल है कि क्या आने वाले दिनों में महंगाई खत्म होगी? 2009 की तरह ही आम आदमी 2010 से भी डरा हुआ है। इसलिए वो सरकार से भी एक सवाल पूछ रहा है। तुमने अब तक मेरे लिए क्या किया?

दरअसल महंगाई पर राजनीति तो खूब हुई लेकिन आम आदमी को राहत देने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनी। आम आदमी को उसके हाल पर छोड़ दिया सरकार ने। अब आम आदमी का मुद्दा अगर संसद में न उठे तो फिर पक्ष और विपक्ष किस काम के। आम आदमी के घर में ही नहीं संसद के दोनों सदनों में महंगाई के मुद्दे पर मार मची। सरकार के कोढ़ में खाज का काम किया वित्त मंत्रालय संसदीय स्थाई समिती की रिपोर्ट ने जिसमें मंत्रालय को महंगाई पर लगाम लगाने में पूरी तरह नाकाम बताया गया।

सरकार ने भी कहीं न कहीं मान लिया कि आम आदमी को महंगाई से निजात दिलाने का उसके पास रास्ता नहीं है। उसपर लगातार आते महंगाई दर के आंकड़ों ने उसे कई बार डराया। खाद्य पदार्थों की महंगाई दर दिसंबर आते-आते 20 फीसदी तक पहुंच गई। सरकार ने चिंता जताई लेकिन हुआ कुछ नहीं। जाहिर है कीमतों पर काबू पाने के तमाम दावे हवा हो गए इसलिए सरकार के पास आम आदमी को दिलासा देने के लिए सिवाए चिंता जताने के और कुछ नहीं बचा।

शुरू में तो सरकार ने कहा कि आयात बढ़ाकर महंगाई को काबू में कर लेंगे। लेकिन ये दावा भी जल्द ही गलत भी साबित हो गया। पता चला कि विदेश से ऊंचे दाम पर होने वाला आयात आम आदमी की झुकी हुई कमर को पूरी तरह तोड़ देगा। इसलिए अगली फसल आने तक महंगाई को काबू करने की बात तय हुई। इसी बीच आया कृषि मंत्री शरद पवार का वो बयान जिसने बेतहाशा बढ़ती महंगाई के लिए ग्लोबल वॉर्मिंग को जिम्मेदार ठहरा दिया। यानि महंगाई बढ़ने के लिए सरकार की नीतियां नहीं ग्लोबल वॉर्मिंग जिम्मेदार है।

इतना ही नहीं सरकार ने तो महंगाई के लिए राज्य सरकारों पर ठीकरा फोड़ दिया। केंद्र के मुताबिक वो गरीबों के लिए सस्ता राशन तो जारी कर रही है लेकिन राज्यों का राशनिंग सिस्टम इतना खराब है कि इसका फायदा उन तक नहीं पहुंच पा रहा। यानि केंद्र तो अपनी तरफ से राशन भेजकर चैन की बंसी बजा रहा है अगर राज्य आम आदमी तक उसे न पहुंचाएं तो केंद्र का क्या कसूर। और दोनों की इस लड़ाई में आम आदमी पिसता है तो पिसता रहा।

सरकार ने आम आदमी की नहीं सुनी। उसे लगा कि अपनी बारी का इंतजार कर रही विरोधी पार्टी उसका दर्द समझेगी। लेकिन यहीं भी आम आदमी को दगा ही मिला। विरोधियों ने तो सिर्फ राजनीति चमकाने के लिए महंगाई पर सरकार को घेरने का काम किया। आम आदमी का दिल एक बार फिर टूट गया।

महंगाई शायद चुनाव जीतने का मुद्दा नहीं होती। मुद्दा बनते हैं मंदिर मस्जिद, मुद्दा बनता है आतंकवाद। 2009 में यही जंग सरकार और विरोधी दलों के बीच चल रही थी। एक जंग आम आदमी खुद से लड़ रहा था। जंग जिंदगी की। जंग अपना पेट भरने की। 2009 में आम इंसान की किसी ने नहीं सुनी न सरकार ने न भगवान ने। बाकी जो बचा था महंगाई मार गई। ऊपर से मंदी ऐसी छाई कि कहने ही क्या? खाने पीने की चीजों के दाम तो बढ़ते रहे लेकिन तनख्वाह नहीं बढ़ी। आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपया। सोचिए साल 2009 में कैसे गुजारा किया आम आदमी ने?

मंदी की मार से घुट-घुट कर जिया
2009 सबसे बुरा उन लोगों के लिए साबित हुआ जिनकी नौकरियां छीन ली गईं। मंदी की मार ने कई कंपनियों को अपना काम समेटने के लिए मजबूर कर दिया। नतीजा ये हुआ कि कई साल से काम कर रहे हजारों कर्मचारियों की छंटनी हो गई।

साल 2008 में अमेरिका से उठा मंदी का तूफान 2009 में भारत पहुंच गया। साल शुरू होने से पहले ही अमेरिका के दो बडे़ बैंकों लेमन ब्रदर्स और मेरि लिंच का दीवालिया होना भारत के बैंकों में भी हड़कंप मचा गया। कई लोग तो मारे डर के बैंकों से अपना पैसा निकालने लगे। वो घबरा गए कि कहीं उनका बैंक दीवालिया न हो जाए। लेकिन मंदी का असली असर तो भारत में दिखना अभी बाकी था।

अमेरिका के बाद मंदी दूसरे देशों में भी पहुंची और इसके साथ ही वहां काम कर रहे भारतीयों की नौकरियां चली गईं। साल की शुरुआत में ही ग्लोबल मंदी का राक्षस विदेश में तकरीबन 20000 भारतीयों की नौकरी एक झटके में खा गया।

विदेश जाकर पैसा कमाने की चाह ने सैकड़ों नौजवानों के सपने चकनाचूर कर दिए। साल खत्म होते-होते दुबई दीवालिया होने की कगार पर पहुंच गया। नतीजा ये हुआ वहां काम करने गए भारतीयों की नौकरी चली गई। जो लोग ईद की छुट्टी में अपने घर आए थे उन्हें एसएमएस पर ही नौकरी पर न लौटने का आदेश मिल गया।

जानकारों ने कहा कि पिछले 10 साल में ऐसे बुरे दिन भारत ने नहीं देखे। साल 2009 बेहद खराब रहा। साल भर भारत में छंटनी का सिलसिला चलता रहा। जिस सेक्टर पर देखो मंदी का साया। आईटी, रियल एस्टेट, मीडिया इंडस्ट्री में हजारों लोगों की नौकरियां चली गईं। छोटी मोटी कंपनियां तो मंदी की आंधी में उड़ गईं।

जिस कंपनी को देखो कर्मचारियों की नौकरी खाने पर आमादा थी। जो लोग किसी तरह छंटनी से बच गए वो साल भर इसी चिंता में जीते रहे कि नौकरी हाथ से अब गई, कि तब गई। न जाने कंपनी कब पिंक स्लिप थमा दे। पिंक स्लिप यानि हिसाब करके नौकरी से निकालने का फरमान।

हालात और बुरे होते गए कई दिग्गज कंपनियों में कर्मचारियों की न तो तरक्की हुई न तनख्वाह बढ़ी। ऊपर से कंगाली में आटा गीला ऐसा कि तनख्वाह में कटौती कर दी गई। कंपनी की तरफ से मिलने वाली कई सुविधाएं भी खत्म कर दी गईं। दफ्तरों की कैंटीन में मिलने वाली सब्सिडी भी वापस ले ली गई। यानि जितनी भी तनख्वाह हाथ में बची उसी से गुजारा करना पड़ा। शुक्र इस बात का था कि चलो कम से नौकरी तो बची है।

साल जाते-जाते सरकार की तरफ से आई एक बुरी खबर। अब पर्क्स यानि कंपनी की तरफ से मिलने वाले भत्ते भी तनख्वाह में जोड़ दिए गए और उन पर टैक्स भी कटेगा। पर्क्स पर ये टैक्स अप्रैल 2009 से लगेगा। यानि अगर आपको कंपनी की तरफ से कार का मेंटेनेंस और पेट्रोल का खर्च मिलता है, ड्राइवर मिला है और उसका निजी इस्तेमाल हो रहा है तो ये सब तनख्वाह में जुड़कर टैक्स का बोझ बढ़ाएगा।

यानि एफबीटी खत्म करके सरकार ने जो साहत लोगों को दी थी वो साल के आखिर में वापस भी ले ली। आम आदमी तो आम आदमी खास आदमी की जेब से भी 2009, जाते जाते कुछ न कुछ लेकर ही गया।
तबाही के लिए याद रहेगा साल 2009

देश की तरक्की का सबसे ज्यादा दारोमदार कृषि पर होता है। लेकिन 2009 में मॉनसून और सूखे ने इस सेक्टर को तबाह कर दिया। निर्यात गिरने से करोड़ों डॉलर का नुकसान हुआ। उधर रियल एस्टेट कारोबार का हाल भी बहुत बुरा था।

दरअसल मंदी ने देश की सूरत ऐसी बिगाड़ी कि उसे संवारते-संवारते पूरा साल बीत गया। विकास के पहिए की रफ्तार घूमते घूमते मंद पड़ गई। देश की तरक्की का एक बड़ा हिस्सा कृषि क्षेत्र पर टिका हुआ है। पहली तिमाही में कृषि क्षेत्र की विकास दर 2.5 फीसदी थी। दूसरी तिमाही में कृषि विकास दर गिरकर सिर्फ 1 फीसदी रह गई।

इसकी सबसे बड़ी वजह थी मॉनसून और सूखे ने जो कहर। संतुलित विकास के लिए इस क्षेत्र को 4 फीसदी की दर से बढ़ना चाहिए। लेकिन कृषि का विकास हुआ सिर्फ एक फीसदी। अब तीसरी तीमाही में तो इसके नकारात्मक होने का डर सता रहा है। जब देश में अनाज ही नहीं हुआ तो विकास क्या होगा। रबी की फसल के उत्पादन में करीब 18 फीसदी की गिरावट आई।

2009 में मेन्युफैक्चरिंग, एक्सपोर्ट और सर्विस सेक्टर ने विकास में भूमिका तो निभाई लेकिन इनका हाल भी कोई बहुत अच्छा नहीं रहा। सरकार अब उम्मीद कर रही है आने वाले वक्त में विकास मौजूदा दर 8 फीसदी से ज्यादा हो। आम इंसान ही नहीं सरकार भी इस बुरे साल को जल्द से जल्द भूलना चाहेगी।

सहवाग रिचर्ड्स से आगे!

बुधवार, 16 दिसंबर 2009


80 के दशक में विवियन रिचर्ड्स का खौफ इस कदर था कि उन्हें सबसे विस्फोटक बल्लेबाज का रुतबा हासिल था। आज वही रुतबा वीरेंद्र सहवाग को मिला चुका है। ऐसे में एक सवाल ये उठता है कि विव बड़े या वीरू?

टीम इंडिया के पूर्व कप्तान और सहवाग के शुरुआती मार्गदर्शक सौरव गांगुली ने बेबाक अंदाज में एक बार फिर से कह डाला कि सहवाग को अब भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में लंबा रास्ता तय करना है। खुद सहवाग भी अपने पूर्व कप्तान की राय से इत्तेफाक रखते हैं।

लेकिन, इतना तय है कि जिस तरह से सचिन तेंदुलकर को भारत के बाहर कभी भी क्रिकेट जगत सर डॉन ब्रैडमैन से बेहतर नहीं मानेगा ठीक उसी तरह सहवाग को भारत से बाहर शायद विव रिचर्ड्स से बेहतर नहीं माना जाएगा। सर्वकालीन महान खिलाड़ी से तुलना होना ही अपने आप में एक अनोखी बात है। आखिर, तेंदुलकर की महानता लारा, पोंटिंग, हेडेन या फिर गिलक्रिस्ट से तभी अलग हुई जब खुद डॉन ने उनके खेल में अपनी शैली की झलक देखी।

ऐसे में अगर सहवाग की असाधारण आक्रामकता में किंग रिचर्ड्स की झलक मिलती है तो इससे अच्छी तारीफ और क्या होगी? वनडे क्रिकेट में सहवाग रिचर्ड्स के करीब तो क्या टेस्ट क्रिकेट में खुद की ही साख के करीब नहीं पहुंच पाते।
रिचर्ड्स ने पूरे करियर के दौरान 187 वनडे खेले और मिडिल-ओवर्स में बल्लेबाजी की। इस दौरान दोनों सहवाग के नाम 8 तो रिचर्ड्स के नाम 11 शतक है। हालांकि अर्धशतक में ये फासला 17 का है। रिचर्ड्स के नाम 45 और सहवाग के नाम 28 है। स्ट्राइक रेट में सहवाग का पलड़ा भारी है लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि रिचर्ड्स ने ना तो कभी 'सर्किल' और न ही 'पावर-प्ले में बल्लेबाजी की। सबसे अहम अंतर दोनों बल्लेबाजों के बीच 16 की औसत का है।

ज़ाहिर सी बात है वनडे क्रिकेट में सहवाग रिचर्ड्स के करीब तो क्या अपने समकालीन धुरंधरों में से तेंदुलकर, गांगुली और जयसूर्या के भी पास नहीं पहुंचते हैं। ऐसे में खुद को रिचर्ड्स की श्रेणी में लाने के लिए सहवाग को राजकोट जैसी कई पारियां खेलनी होगी। वनडे में अगर विवयन रिचर्ड्स के आंकड़े बेहतर हो तो टेस्ट में बाजी सहवाग मार लेते है। ये तो सब मानते है कि नजफगढ़ के नवाब में सर विवयन रिचर्ड्स की झलक मिलती है। लेकिन क्या वीरू की लंबी चौड़ी टेस्ट पारियां उन्हें रिचडर्स से बेहतर बनाती है?

अगर 72 टेस्ट मैच के आंकड़ों को देखें रिचर्ड्स और सहवाग के औसत 3 का फर्क है। लेकिन स्टाइक रेट मतलब हर सौ गेंद पर ज़्यादा रन बनाने के माल में सहवाग और रिचड्स के बीच करीब 10 अंक का फर्क है। इसका साफ मतलब है कि सहवाग रिचडर्स से ज़्यादा तेज़ी से रन जुटाते हैं। यही नहीं 72 मैचों तक रिचर्ड्स नाम 150 से ज़्यादा रनों वाली सिर्फ 6 पारियां थी, जबकि सहवाग के नाम ये संख्या दुगुनी है। शतक के मामले में इस दौरान रिचर्ड्स सिर्फ सहवाग से 1 अंक से बेहतर हैं।

अगर 5000 टेस्ट रन बनाने के पैमाने को आधार मानें तो सिर्फ कपिल देव और ऐडम गिलक्रिस्ट का स्ट्राइक सहवाग से बेहतर है। लेकिन ये दोनों खिलाड़ी मुख्य बल्लेबाज़ होने के बजाए अपने टीम के लिए ऑल-राउंडर थे औऱ 7वें नम्बर पर बल्लेबाज़ी करते थे।

मौजूदा पीढ़ी में भले ही लोगों को विवियन रिचर्ड्स के आंकड़े ज़ुबा पर नही हों लेकिन उनका नाम आते ही हर किसी को उनके खौफ, दबदबे और महानता का एहसास तुंरत हो जाता है। आने वाली पीढ़ी भी अगर सहवाग के रिटायरमेंट के बाद उनके आंकड़ों की बजाए सिर्फ उनके नाम से ही रोमांचित हो उठे और वाह करने लगे तो कोई हैरान नहीं होगा। और ये कमाल रिचर्ड्स का कोई सच्चा उत्तराधिकारी ही कर सकता था।

बॉलीवुड में कितने भगवान?

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009


बॉलीवुड में कलाकारों को भगवान कहने कहा सिलसिला शुरू हो गया है। खासकर अमिताभ, शाहरुख, राजकपूर और आमिर को भगवान कहने वालों की कमी नहीं है। आखिर क्यों इन्हें भगवान कहा जाता है?
दरअसल सितारों की इस मायानगरी में अचानक भगवान का सिलसिला क्यों शुरू हो गया। अभिषेक बच्चन ने कह दिया मेरे पिता अमिताभ बच्चन बॉलीवुड के भगवान हैं। विवेक ओबराय ने कहते हैं कि उनके लिए तो शाहरुख खान भगवान हैं। जबकि रणबीर कपूर के लिए उनके दादा राजकपूर भगवान है। वहीं आमिर की तो बात ही अलग है उन्होंने खुद को ही भगवान बता दिया।
क्या फिल्मों में ब्रेक देने वाले लोग जो पहले गाड फादर कहलाते थे अब उन्हीं का नया नाम हो गया है भगवान? या फिर बड़े सितारों को भगवान कहने के पीछे कुछ और है राज।
अमिताभ
अमिताभ बच्चन सिर्फ किसी फिल्म में काम करके उसका मेहनताना लेने वाले कलाकार नहीं हैं। बल्कि अमिताभ फिल्मों के अलावा एड और टेलीविजन की दुनिया में भी बड़े नाम हैं।
एबी कार्प नाम की कंपनी के जरिये अमिताभ बच्चन से सैंकड़ों लोगों की रोजी रोटी चलती है। फिर भी भगवान कहे जाने के इस चलन से बॉलीवुड के बहुत सारे जानकार इत्तेफाक नहीं रखते।
शाहरुख
शाहरुख खान सिर्फ एक फिल्म स्टार नहीं बल्कि खुद में ही एक इंडस्ट्री है। रेड चिलीज इंटरटेनमेंट के नाम से शाहरुख का प्रोडक्शन हाउस सिर्फ अपनी फिल्में ही नहीं बनाता बल्कि दूसरे सितारों को भी काम देता है। कई हजार टेक्नीशियन्स और अभिनेताओं के लिए शाहरुख खान भगवान हैं।
आमिर
आमिर खान ऐसा खान जो खुद फिल्मों के पीछे नहीं भागता बल्कि फिल्में इनके पीछे भागती है। साल में सिर्फ एक फिल्म ही करते हैं लेकिन कोई कसर नहीं छोड़ते। ये शख्स आज जिस बुलंदी पर है वहां पहुंच कर ये खुद को ही भगवान कह देता है।
राज कपूर
राज कपूर फिल्मों में काम करने को एक बिजनेस की शक्ल दे देने के काम की शुरुआत अगर किसी ने की तो वो थे राज कपूर। आर के स्टूडियो की स्थापना करके राज कपूर ने बॉलीवुड के स्टार्स को बिजनेस मैन बनने की राह दिखाई। राज कपूर के वो सपना आज सैंकड़ों लोगों का रोजगार है।

पवित्र ‘गंगा’ को बचाना है

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009


गंगा जीवन का दूसरा नाम है। दुनियाभर में ऐसी कोई नदी नहीं जो इतनी बड़ी संख्या में लोगों को जिंदगी देती है। लेकिन गंगा की हालत खराब है। शहरों और उद्योगों के कूड़े करकट ने गंगा की रफ्तार थाम दी है। लेकिन अब सरकार को भी समझ आने लगा है। जिंदगी बचानी है तो गंगा को बचाना होगा।

केन्द्र सरकार ने मिशन क्लीन गंगा शुरू की है। इसके लिए नेशनल गंगा रिवर बेसिन अथॉरिटी का गठन किया गया है। सरकार का दावा है कि साल 2020 तक गंगा को साफ कर लिया जाएगा। मिशन क्लीन गंगा में 400 करोड़ अमेरिकी डॉलर का खर्च आएगा। इसमें से 100 करोड़ डॉलर वर्ल्ड बैंक से मिलेगा।
बाइट- वर्ल्ड बैंक वाले की।
मिशन है कि अगले दस सालों में शहरों से कोई भी कचरा गंगा में न गिरे। लेकिन क्या हम सरकार के इस दावे पर भरोसा कर सकते हैं। मुश्किल है, क्योंकि इतिहास इसकी इज़ाजत नहीं देता। 1985 में शुरू हुए गंगा एक्शन प्लान के अंतर्गत अभी तक 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा रुपए खर्च किए जा चुके हैं। लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। अभी भी शहरों और उद्योगों का 45 फीसदी कचरा गंगा में गिरता है। ज़ाहिर है गंगा एक्शन प्लान का पैसा गंगा की जगह अफसरों और नेताओं की जेब में चला गया।

दरअसल मोक्ष की नगरी काशी। देश भर से ही नहीं बल्कि दुनिया भर से लोग मोक्ष की तलाश में बनारस आते हैं। घंटों गंगा मैय्या की जय-जयकार करते हैं। श्रद्धालुओं के लिए गंगा एक महज एक नदी नहीं बल्कि आस्था और विश्वास का प्रतीक है। लेकिन धर्म के रूप में बहने वाली गंगा मैली हो गई है।
25 साल पहले राजीव गांधी ने सेन्ट्रल गंगा कमेटी बनाई। जिसकी देख रेख में गंगा को दो चरणों में साफ करना था। पहले चरण में 261 योजनाएं बनीं जिसमें से 251 को पूरा माना गया। दूसरा चरण २२ सौ करोड़ रुपए में शुरू हुआ जिसमें 435 योजनाएं बनी। गंगा को साफ करने के लिए 1503 करोड़ रुपए पानी की तरह बहा दिए गए लेकिन गंगा मैली की मैली ही रही। लेकिन गंगा के नाम पर राजनीति करने वालों की दुकान खूब फली फूली।
कैग रिपोर्ट की मानें तो अब तक गंगा के नाम पर कई हजार करोड़ खर्च हो चुके हैं लेकिन गंगा की हालत बद से बदतर होती जा रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा का पानी नहाने के लायक तक भी नहीं है। वाराणसी में रोजाना 22 करोड़ लीटर पानी सीवेज में जाता है। जबकि यहां के सीवेज केंद्र में महज 10 करोड़ लीटर पानी ही ट्रीट हो पाता है यानि 12 करोड़ लीटर गंदा पानी गंगा में चला जाता है।
जाहिर है खतरे की घंटी बज चुकी है। अगर अब भी हम गंगा की सफाई को लेकर पहले जैसे लापरवाह बने रहे तो हालात काबू से बहार हो जाएंगे। देश की संस्कृति की प्रतीक गंगा को बचाने के लिए जरूरत है एक भागीरथी प्रयास की।
गंदगी होने के बाद भी आस्था लोगों को गंगा के तट तक खींच ही लाती है। धार्मिक रीति रिवाज के लिए लोगों को मजबूरन गंगा की शरण में आना पड़ता है। हरिद्वार दूर होने की वजह से दिल्ली और आसपास के लोग ब्रजघाट पर आने के लिए मजबूर हैं। सभी जानते हैं कि गंगा मैली है लेकिन मन में एक विश्वास है कि गंगा की गोद में गंदगी भी साफ हो जाती है।

शाहरुख ने अमिताभ को गले लगाया

गुरुवार, 3 दिसंबर 2009


बादशाह और शहंशाह हुए एक। जी हां, अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान ने सारे गिले-शिकवे को भुलाकर दोस्ती की नई पारी की शुरुआत कर दी है। दरअसल अमिताभ बच्चन की आने वाली फिल्म ‘पा’ की चर्चा इन दिनों हर तरफ है। अमिताभ बच्चन की इस फिल्म में खास बात ये है कि अभिषेक अमिताभ के पिता बने हैं। अमिताभ ने फिल्म में एक ऐसे बच्चे का रोल निभाया है जो प्राजेरिया नाम की एक बीमारी से पीड़ित है। ये फिल्म इस शुक्रवार को रिलीज हो रही है गुरुवार को मुंबई में इसका प्रीमियर हुआ। जिसमें पूरा बॉलीवुड जमा हुआ। खास बात ये रही की प्रीमियर के मौके पर शाहरुख खान भी पहुंचे और गले लगाकर बिग बी को बधाई दी। शाहरुख के अलावा आमिर, अक्षय कुमार, अजय देवगन, यश चौपड़ा, ऋतिक रौशन, जुही चावला, आशुतोष गोवरीकर, बिधु बिनोद चौपड़ा समते कई जानी मानी हस्तियां प्रीमियर के मौके पर पहुंची।

याद आए हरिवंश राय बच्चन

रविवार, 29 नवंबर 2009


बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन के पिता मशहूर कवि हरिवंश राय बच्चन की 102 वीं जयंती के अवसर पर मुंबई के विद्याभवन में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में पूरा बच्चन परिवार मौजूद शामिल हुआ।
कार्यक्रम में पूरे परिवार ने मिलकर हरिवंश राय की कविता की कुछ पंक्तियों को पवित्र मन से पढ़ा। पहली बार पूरा परिवार जिसमें अमिताभ बच्चन, जया बच्चन, अभिषेक, श्वेता, ऐश्वर्या राय बच्चन और अमिताभ के भाई अजिताभ बच्चन की दोनों बेटियां ने हरिवंशराय बच्चन की कवितायों को पढ़ा। हिंदी के साथ अंग्रेजी अनुवाद रूप में प्रस्तुत किताब का कवि हरिवंश राय बच्चन के जन्मदिवस समारोह पर विमोचन हुआ।
इसके अलावा अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि बाबूजी के जन्मदिन के समारोह पर नए रंग से सजी मधुशाला का विमोचन किया जाएगा। इसकी प्रिंटिंग और डिजाइनिंग भी बदली गई है। किताब में पेंटिंग्स को भी शामिल किया गया है, जो अमिताभ की भतीजी नम्रता ने बनाई हैं।

शहादत पर सियासत क्यों?

गुरुवार, 26 नवंबर 2009


पूरा देश 26/11 हमले की बरसी मनाया। मुंबई में मारे गए 164 लोगों को नम आंखों से ऋद्धांजलि दी गई। हमलों में मारे गए लोगों की याद में गुरुवार को लोकसभा में दो मिनट का मौन रखा गया और प्रस्ताव पारित कर सरकार से कहा गया कि वह आतंकवाद के खात्मे के लिए सभी जरूरी कदम उठाए।
वहीं 26/11 मुंबई हमले में एक शहीद की पत्नी अगर दिल्ली आकर सरकार से गुहार लगाती है कि उसे अभी तक मुआवजा नहीं मिल पाया है। क्या ये सरकार के लिए शर्मनाक बात नहीं है? अगर विपक्ष इस मुद्दे को उठाता है तो सरकार उसे राजनीति की दुहाई देती है। आखिर क्यों?

लोकसभा में बीजेपी नेता लाल कृष्ण आडवाणी ने मुंबई हमले के शिकार हुए लोगों के परिजनों के मुआवजे का सवाल लोकसभा में उठाया। केंद्र सरकार को कटघरे में खड़ा करते हुए आडवाणी ने कहा कि एक शहीद की विधवा दिल्ली आकर मुआवजा न मिलने की शिकायत करती है। सरकार को पीड़ितों को मुआवजा दिलाने की कोशिश तेज करनी चाहिए।
अपने नेता का इशारा पाकर लोकसभा में बीजेपी सांसदों ने हंगामा मचाना शुरू कर दिया। अनंत कुमार ने बीच में बोलना शुरू कर दिया। स्पीकर उन्हें रोकती रही लेकिन अनंत कुमार लगातार मुआवजे के सवाल पर सरकार पर निशाना साधते रहे।
इसके बाद वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी भड़क गए। उन्होंने बीजेपी को चेतावनी दी कि वो मुंबई हमले के शिकार लोगों के नाम पर सियासत न करें। प्रणब ने तो यहां तक कह डाला कि अगर इसी तरह राजनीति चलती रही तो कोई बड़ी बात नहीं देश पर फिर हमला हो जाए।
वहीं पूर्व बीजेपी सांसद किरीट सोमैया को मुंबई में मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन करते हुए गिरफ्तार किया गया। वो 26/11 हमले के पीड़ितों को मुआवजा हो रही देरी को लेकर भूख-हड़ताल पर बैठे थे।
आखिर में एक ही सवाल क्या सरकार इस मामले को उतनी गंभीर नहीं है या फिर विपक्ष इतना कमजोर है कि वो सरकार पर दबाव नहीं बना पाती?

घर के शेर घर में ही ढेर

रविवार, 8 नवंबर 2009


घर के शेर घर में ही हुए ढेर। ये कहावत टीम इंडिया का हालिया प्रदर्शन को देखते हुए बिल्कुल फिट बैठता है। चोटिल ऑस्ट्रेलिया के सामने टीम इंडिया ने घुटने टेक दिए। गुवाहाटी में खेले गए छठा वनडे में ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 6 विकेट से हरा दिया। इसी जीत के साथ ऑस्ट्रेलिया ने सीरीज पर कब्जा कर लिया। ऑस्ट्रेलिया ने निर्धारित 171 रनों का लक्ष्य 4 विकेट खोकर 41.2 ओवरों में प्राप्त कर लिया। हरभजन सिंह ने दो विकेट झटके।
इससे पहले भारत ने टॉस जीतकर पहले बल्लेबाजी करने का फैसला किया और पहले ही ओवर में सहवाग और गंभीर का विकेट गवां दिया। इसके बाद सचिन, युवराज और रैना भी क्रीज पर ठहर नहीं सके। महज 27 रन के स्कोर पर टीम इंडिया के पांच बल्लेबाज पवेलियन लौट चुके थे।
आधी टीम के पवेलियन लौटने के बाद कप्तान धोनी ने जडेजा के साथ मिलकर पारी को आगे बढ़ाया लेकिन वह भी गुवाहटी की परेशानी पैदा करती पिच पर ज्यादा देर तक नहीं टिक सके। वह 24 रन बनाकर आउट हुए। धोनी ने 77 गेंदों का सामना करते हुए एक चौका जड़ा।
इसके बाद जडेजा का साथ देने आए प्रवीण ने संभलकर खेलते हुए आठवें विकेट के लिए 74 रनों की साझेदारी की। जडेजा 57 रन बनाकर आउट हुए। उन्होंने 103 गेंदों का सामना कर छह चौके जड़े। भारत की पूरी टीम 48 ओवरों में 170 रनों पर सिमट गई। प्रवीण 54 रन बनाकर नाबाद रहे। प्रवीण ने 51 गेंदों का सामना करते हुए सात चौके और एक छक्का लगाया।
ऑस्ट्रेलिया की ओर से बोलिंगर ने 35 रन देकर पांच विकेट झटके जबकि शुरुआती ओवर में भारत को दो झटके देने वाले जानसन के खाते में तीन विकेट दर्ज हुए। हरफनमौला वॉटसन को भी दो सफलता मिली।

बच्चा पैदा करने के लिए मां-बाप की जरूरत नहीं!

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2009


एक बार फिर विज्ञान ने कुदरती करिश्मा को चुनौती देने की कोशिश की है। बच्चे पैदा करने के लिए एक मां और एक पिता की जरूरत होती है। लेकिन अब वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब बदल दिया है। अब बच्चा पैदा करने के लिए सिर्फ मम्मी-पापा की जरूरत नहीं होगी। बल्कि लैब में भी पैदा हो सकेंगे बच्चे। वैज्ञानिक अब इस चमत्कार के काफी करीब पहुंच गए हैं।
कैलिफॉर्निया की स्टैनफोर्ड युनिवर्सिटी के लैब में साइंटिस्ट अब इस चमत्कार के काफी करीब पहुंच गए हैं। अब लैब में ही स्पर्म और एग तैयार किए जाएंगे। इस एक्सपैरिमेंट में एक दिन के मानव भ्रूण से स्टेम सेल लिए और केमिकलों की मदद से एक एग और एक स्पर्म का शुरुआती रूप बना दिया। अब वैज्ञानिक भ्रूण जैसे गुण वाला जर्म सेल बनाने में लगे हैं।
इस एक्सपेरिमेंट को समझने के लिए मानव विकास की कणी को समझना होगा। जैसा कि आप जानते हैं, स्टेम सेल से ही शरीर के हर अंग के सेल का विकास होता है। लेकिन इंसानों के प्रजनन अंगों के विकास की ज़्यादा जानकारी अभी तक नहीं थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है। वैज्ञानिक कोई भी सेल लेंगे और उसकी बायोलॉजिकल घड़ी को पीछे घुमाकर वापस स्टेम सेल बना देंगे। फिर उस स्टेम सेल से स्पर्म और एग तैयार किए जाएंगे।
इससे पहले 7 जुलाई को वैज्ञानिकों ने लैब में केवल स्पर्म बनाने का दावा किया था। मगर अब वैज्ञानिक एक कदम और आगे बढ़ गए हैं और अब ना सिर्फ स्पर्म बल्कि एग भी लैब में तैयार किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि अभी तैयार हुए स्पर्म और एग पूरी तरह से प्रजनन के लिए ठीक नहीं है। लेकिन समय रहते वो भी तैयार किए जा सकेंगे।
वैज्ञानिकों के इस बड़े कदम ने बहस भी छेड़ दी है। आलोचकों का मानना है कि कुदरत के नियम के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है और इंसान का कोई हक नहीं को वो कुदरत के नियम को तोड़े। वहीं वैज्ञानिकों का तर्क है कि उनकी ये तकनीक एक वरदान हैं, उन लोगों के लिए जिनके शरीर में स्पर्म या एग नहीं बनते।

दरअसल ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने लैब में रिसर्च के दौरान पाया कि किसी स्टेम सेल से स्पर्म यानी शुक्राणु पैदा किए जा सकते हैं और ये शुक्राणु बिल्कुल वैसे ही होंगे जैसे असली होते हैं। वैज्ञानिकों को इसका पता तब चला जब वो पुरुषों में नपुंसकता का इलाज खोज रहे थे।
आर्टिफिशियल शुक्राणु तैयार करने में जिन स्टेम सेल की मदद ली गई थी। उन्हें ऐसे भ्रूणों से हासिल किया गया था जिनकी जिंदगी अभी एक दिन की थी। लेकिन ब्रिटिश प्रोफेसर नायेर्निया को उम्मीद है कि ये कामयाबी पुरुषों के हाथ से ली गई खाल के जरिए भी दोहराई जा सकती है। यानी आदमी के हाथ की खाल के एक टुकड़े की कोशिकाओं में कुछ केमिकल्स मिलाकर प्रयोगशाला में से बच्चे पैदा किए जा सकते हैं।
मगर सवाल ये है कि आर्टिफिशियल शुक्राणुओं से बच्चे कैसे पैदा होंगे। इसके लिए वैज्ञानिकों ने मदद ली इंट्रावेनस फ्लूड टैक्नीक की। यानी IVF टैक्नीक से इन शुक्राणुओं का इंजेक्शन अंडों में लगाया जाएगा। ताकि बच्चे को जन्म देने की प्रक्रिया शुरू की जा सके।
मगर, वैज्ञानिकों के सामने दिक्कत ये है कि वो अपनी इस खोज को अंजाम तक कैसे पहुंचाए। यानी प्रोफेसर नायेर्निया चाहते हैं कि आर्टिफिशियल शुक्राणुओं की मदद से लैब में ही बच्चे पैदा किए जाएं। इसके लिए वो अब सरकार से इजाजत मांगने जा रहे हैं। ये देखना जरूरी है कि स्पर्म सेल अंडाणु के साथ कैसी प्रतिक्रिया करता है और उनके क्रोमोजोम्स का क्या होता है। इसी से तय होगा कि इस परीक्षण से जो तैयार हुआ है वो असली स्पर्म है भी या नहीं।
ब्रिटिश वैज्ञानिकों की स्टेम सेल पर इस खोज के बाद पहली बार दुनिया के सामने कुंवारी मां का सवाल खड़ा हुआ है। उनका दावा है कि अब पिता की कोई भूमिका नहीं होगी। साफ तौर पर कहें तो हमारे सामने एक ऐसी दुनिया की संभावना का रास्ता खुल गया है जहां महिलाओं को बच्चे पैदा करने के लिए पुरुषों की जरूरत नहीं।
प्रोफेसर नायेर्निया ने अभी तक अपनी टैक्नीक का इस्तेमाल चूहों के बच्चे पैदा करने में किया है। चूहे के बच्चे चूहों के स्टेम सेल को शुक्राणुओं में बदलकर पैदा किए गए। अब नायेर्निया का मकसद है कि एक दिन वो इसी तरह नपुंसक पुरुषों को भी औलादें पैदा करने की सहूलियत दे दें। प्रोफेसर नायेर्निया ने अपनी खोज का इस्तेमाल इंसान के शुक्राणु पैदा करने में भी किया है। हालांकि अभी उन्होंने इस शुक्राणु के जरिए इंसान के बच्चे को पैदा नहीं किया है।

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खून बहाने की अंधी परंपरा

सोमवार, 19 अक्तूबर 2009


आज भी देश के कई हिस्सों में अंधिवश्वास और परंपरा के नाम पर फैली कुरीतियों को भेद पाने में नाकाम हैं। इंदौर इलाके में होने वाला परंपरागत युद्ध बेहद पुराना है। ये युद्ध दो गुटों के बीच होती है और इसे देखने के लिए 20 से 25 हजार की भीड़ जमा होती है। इस युद्ध को शुरू होने से पहले सारे इंतजाम किए जाते हैं। ये खेल कब शुरू हुआ है खेलने वाले भी खुद नहीं जानते हैं।
इलाके में इसे हिंगोट युद्ध कहा जाता है। हर यौद्धा के थैले में 500 से ज्यादा हिंगोट होते हैं। हर साल इस युद्ध में कई लोग घायल होते हैं। इस युद्ध को लड़ने के लिए शराब से हौसले भरे जाते हैं। तभी तो सामने जोखिम होने के बावजूद सभी योद्धा बेखौफ नजर आते हैं।
दरअशल दीवाली के दूसरे दिन इंदौर के पास का गौतमपुरा गांव का मैदान जंग के मैदान में बदल जाता है। दोनों तरफ से दो गांवों के लोग एक-दूसरे के लहू के प्यासे हो जाते हैं। किसी को इस बात की फिक्र नहीं कि इस युद्ध में किसी की जान भी जा सकती है। और हर बार यहां काफी तादाद में लोग घायल होते हैं।
वहीं खतरों के इस खेल को देखने में भी जोखिम कम नहीं है। इस जोखिम की तैयारी बहुत पहले से शुरू हो जाती है।
जिस अग्निबाण से ये खेल खेला जाता है उसे हिंगोट कहते हैं। हिंगोरिया नाम के फल को सुखाकर उसमें बारूद भरा जाता है। उससे ये अग्निबाण हिंगोट तैयार होते हैं।

इस खेल में तुर्रा और कलंगी नाम की दो टीमें होती हैं। दोनों टीमें एक-दूसरे से दुश्मनों की तरह ही लड़ती हैं। हर साल दीवाली के एक दिन बाद ये खेल खेलने की परंपरा है। इस खेल का बाकायदा प्रचार किया जाता है। जाहिर है, अंधविश्वास का ये खेल प्रशासन की जानकारी में होता है। जिस खेल को रोकने के लिए प्रशासन को सख्ती करना चाहिए उसे बेरोकटोक जारी रखने के इंतजाम किए जाते हैं।

सदी के महानायक अमिताभ हुए 67 साल के

शनिवार, 10 अक्तूबर 2009


आज सदी के महानायक और बॉलीवुड के शहंशाह अमिताभ बच्चन का जन्मदिन है। बिगबी ने जीवन के 67 बसंत पार कर लिए हैं। जन्मदिन के मौके पर उन्हें बधाई देने वालों का तांता लगा है। मुंबई में शनिवार शाम अमिताभ की नई फिल्म 'रण' का First look रिलीज किया गया। इस मौके पर अमिताभ ने जन्मदिन का केक काटा और बचपन की यादों को ताजा किया।
अपने 40 साल के फिल्मी करियर में बिगबी ने हर बुलंदी को छुआ है। लोग उनकी अदा और कला के दीवाने हैं। लेकिन खुद अमिताभ अपनी कामयाबी से संतुष्ट नहीं हैं। बिगबी अपनी बुलंदी का श्रेय अपने माता-पिता को देते हैं। बिगबी के मुताबिक उन्होंने हमेशा मां और बाबूजी से प्रेरणा ली है। जिससे उन्हें मनचाही कामयाबी मिली।
दरअसल अमिताभ आज खुद बुजुर्ग हैं। लेकिन वो अब भी अपने से बड़ों को सम्मान देना नहीं भूलते और उनके तजुर्बों को तरजीह देते हैं। हालांकि वो नई पीढ़ी की कल्पनाओं और जोश के भी कायल हैं। तभी तो वो कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी में खासी संभावनाएं देखते हैं और उनकी सफलता की कामना करते हैं।
आज अमिताभ के जन्मदिन पर फैन उनकी लंबी उम्र की कामना कर रहे हैं। सभी के लबों पर बस यही दुआ है कि सदी के महानायक तुम्हारी चमक कभी फीकी न पड़े। तुम सिनेमा के आकाश में ध्रुव तारे की तरह हमेशा चमकते रहो। आप भी अमिताभ को जन्मदिन का बधाई दे सकते हैं।

टीम इंडिया में नए चेहरे की जरूरत

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

भारत के पूर्व कप्तान रवि शास्त्री ने चैंपियंस ट्रॉफी में भारत के बाहर होने से खफा होकर कहा कि टीम इंडिया में भारी बदलाव की जरुरत है। एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में उन्होंने चयनकर्ताओं से मांग की है कि वो तुरंत 10 नए चेहरों को चुने और उन्हें तुरंत मौका देना शुरू करें। ताकि 2011 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम को फिर शर्मिंदा ना होना पड़े।
शास्त्री ने कहा कि ये जिम्मेदारी चयनकर्ताओं की है कि वो कैसे 25 खिलाड़ियों की फौज तैयार करें। जिन्हें बारी-बारी से कभी भी इस्तेमाल किया जा सके। शास्त्री ने ये भी कहा कि मैं इस बात को नहीं मानता कि हमारे पास प्रतिभा की कमी है। साथ ही उन्होंने कहा कि ये कोई जरूरी नहीं है कि दिलीप वेंगसरकर के चुने गए खिलाड़ियों को ही बार-बार मौका मिलना चाहिए। यही नहीं, शास्त्री ने कहा कि ईशांत शर्मा को सिर्फ टेस्ट क्रिकेट में इस्तेमाल करना चाहिए। जबकि प्रवीण कुमार वनडे में ज्यादा मौके मिलने चाहिए।
वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के पूर्व कप्तान वसीम अकरम ने भारतीय टीम की हार के लिए कप्तान धोनी को जिम्मेदार ठहराया है। अकरम का कहना है कि खिलाड़ी लगातार गलतियां कर रहे थे। लेकिन धोनी उन्हें समझा नहीं रहे थे। ऐसे मौके पर कप्तान की ये जिम्मेदारी बनती है कि वो खिलाड़ियों को गलती सुधारने के लिए कहे। अकरम ने तेज गेंदबाजों के रवैये पर भी सवाल उठाया है। उनका मानना है कि आरपी सिंह और ईशांत शर्मा मानसिक तौर पर ज्यादा मजबूत नहीं हैं इसलिए वो अपनी गति खो रहे हैं।

वैज्ञानिक खान खोले पाक के पोल

रविवार, 20 सितंबर 2009


इस्लामाबाद। पाकिस्तान के विवादास्पद न्यूक्लियर साइंटिस्ट अब्दुल कदीर खान के एक खुलासे ने दुनिया को हिला कर रख दिया है। खुद को बचाने के लिए अब्दुल कदीर खान ने जो कुछ किया उससे एक झटके में पाकिस्तान सरकार और पाकिस्तानी सेना का असली चेहरा दुनिया के सामने आ गया। अब्दुल कदीर खान को गिरफ्तार कर घर में नजरबंद करना पाकिस्तान को महंगा पड़ गया।

अब्दुल कदीर खान ने खुलासे में कहा कि उन्होंने बेनजीर भुट्टो के इशारे पर परमाणु प्रसार कार्यक्रम के दौरान चीन, ईरान, नॉर्थ कोरिया और लीबिया को ब्लू प्रिंट्स और इक्विपमेंट दिए थे। यह खुलासा भारत के स्टैंड को मजबूत करता है।

संडे टाइम्स में छपी रिपोर्ट के मुताबिक, दिसंबर 2003 में अपनी गिरफ्तारी के बाद 74 साल के ए क्यू खान ने अपनी डच पत्नी हेनी को पाक नेतृत्व के बारे में चार पेज का सीक्रेट लेटर लिखा था, जो साइमन हेंडरसन नामक जर्नलिस्ट के हाथ लग गया था। हेंडरसन ने इसे आम कर दिया है।

पत्र में लिखा है कि बीबी (बेनजीर भुट्टो, जो 1988 में पीएम थीं) और इम्तियाज (बेनजीर के डिफेंस अडवाइजर) ने मुझसे ईरानियों को कुछ सामग्री देने के लिए कहा था। पहले हमारा इस्तेमाल किया और अब हमारे साथ गंदे खेल खेले जा रहे हैं। अगर सरकार मेरे साथ कोई गड़बड़ करे तो तुम कड़ा रुख अपनाना।

एक सनसनीखेज खुलासे मे खान ने माना है कि पाकिस्तान ने ईरान, लीबिया और उत्तर कोरिया को परमाणु तकनीक दी है। खान ने इस खबर की भी पुष्टि की है कि बेनजीर भुट्टो इस पूरी साजिस के केंद्र में थी और उनके कहने पर ही ए क्यू ने तमाम वैज्ञानिक दस्तावेज ईरान को मुहैया कराए।

ए क्यू खान के इस खुलासे ने चीन के दामन पर भी दाग लगाए हैं। खान का कहना है कि बम बनाने में चोरी छिपे चीन के साथ भी लेन देन हुई थी। ए क्यू खान ने ये खुलासा एक चार पेज की चिठ्ठी में किया है जो उसने अपनी विदेशी डच बीवी को लिखा।

आखिर कौन-सी मजबूरी थी जिसके चलते कदीर खान ने अपने देश के लिए ये सनसनीखेज खुलासे किए। जिस बम से दुनिया को तबाह किया जा सकता है। उस बम को बनाने वाला खुद डरा हुआ है। उसे अपनी जान की फिक्र है।
दरअसल अमेरिका पर आतंकी हमले के बाद दुनिया के सभी मुल्कों के रिश्ते नए सिरे से बनने-बिगड़ने लगे। अल कायदा को सबक सिखाने पर तुले अमेरिका को ऐसे में पाकिस्तान की जरूरत थी। अमेरिका इस बात से भी खौफजदा था कि कहीं अल कायदा के हाथ परमाणु हथियार न लग जाए। इसलिए पाकिस्तान से संबंध रखने के बावजूद अमेरिका ने पाकिस्तान के परमाणु तकनीक से अपनी नजर नहीं हटाई।

अमेरिका जानता था कि पाकिस्तान अगर चाहे तो आतंकियों के हाथ कभी भी परमाणु बम लग सकता है। इसलिए पाकिस्तान पर दबाव डालकर अब्दुल कदीर खान पर शिकंजा कसा गया। अपनी सरकार का नजरिया बदलते ही कदीर खान सकते में आ गए। खुद की गिरफ्तारी के बाद अपने बचाव के लिए उन्होंने डच बीवी को खत लिखकर अपनी बात रख दी।

झुके थरूर, मांगी माफी

शुक्रवार, 18 सितंबर 2009


इकोनॉमी क्लास को "कैटल क्लास" बताने के बाद कड़ी आलोचना का शिकार बने विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर ने माफी मांग ली है।

विदेश मंत्रालय ने राज्यमंत्री के बयान पर गुरुवार रात अपनी प्रतिक्रया में कहा कि उन्होंने इस बारे में खेद जताया है, उनका इरादा किसी की भावनाओं को आहत करना नहीं था। मंत्रालय ने कहा कि उनके शब्दों को गलत अर्थ निकाला गया।

मालूम हो कि विदेश राज्यमंत्री शशि थरूर लाइबेरिया की आधिकारिक यात्रा पर गए हैं। उन्होंने अपने संदेश में कहा कि उनका मकसद इकोनॉमी श्रेणी में यात्रा करने वालों का अपमान करना नहीं था।

मालूम हो कि एक सामाजिक नेटवर्किंग साइट पर थरूर ने एक सवाल के जवाब में अपना ये तर्क रखा था। जिसके बाद उनकी कड़ी आलोचना हुई। खुद की पार्टी के लोग उनकी इस टिप्पणी से अपने को किनारा कर लिया।

कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन ने तो इस थरूर के बयान को बचकाना बयान करार दिय़ा। उन्होंने कहा कि ये बयान पार्टी को अस्वीकार्य है।

दरअसल थरूर विदेशी यात्रा पर अभी लाइबेरिया गए हैं। इस पूरे मामले पर माफी मांगते हुए थरूर ने कहा कि ये सबक उन्हें हमेशा याद रहेगा और आगे से वो ऐसा मजाक नहीं करेंगे।
इसके अलावा थरूर ने अपनी लाइबेरिया यात्रा पर लाइबेरियाई राष्ट्रपति से हुई मुलाकात को भी सफल बताया। थरूर ने कहा की पिछले 38 साल में ये पहली बार है जब कोई भारतीय प्रतिनिधि वेस्ट अफ्रीकी देश गया हो।

राहुल की सुरक्षा में सेंध!

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

पानीपत। लुधियाना से दिल्ली लौटते वक्त कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की ट्रेन पर पथराव हुआ। पथऱाव में ट्रेन की तीन बोगियों के शीशे चकनाचूर हो गए। लेकिन अच्छी बात ये रही कि राहुल गांधी समेत किसी भी यात्री को चोट नहीं आई। पथराव की यह घटना हरियाणा में करनाल और पानीपत स्टेशनों के बीच घरौंदा कस्बे के पास रात लगभग 9.45 बजे घटी।
दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और अपनी मां की किफायत की नसीहत पर चलते हुए मंगलवार को राहुल गांधी ने दिल्ली से लुधियाना की यात्रा अमृतसर-नई दिल्ली शाताब्दी एक्सप्रेस के चेयर कार में तय की थी। वे वापस भी इसी ट्रेन से दिल्ली लौट रहे थे लेकिन रास्ते में ये घटना हो गई।
खबर के मुताबिक ट्रेन पर पथराव पानीपत के करीब घोकरुंडा में एक क्रॉसिंग के पास हुआ। नॉर्दर्न रेलवे के प्रवक्ता के मुताबिक घटना के वक्त ट्रेन की स्पीड महज 20 किलोमीटर थी। लेकिन पत्थर इतने जोर से फेंके गए थे कि वो ट्रेन के शीशे को तोड़ते हुए बोगियों में आ गिरे। जिन बोगियों को पथराव से नुकसान हुआ वो हैं सी-2, सी-4 और सी-7। जबकि राहुल गांधी सी-3 में सफर कर रहे थे।
हालांकि इस घटना में किसी यात्री के घायल होने की खबर तो नहीं है लेकिन यात्रियों में इस घटना से दहशत जरूर हो गई थी।
मालूम हो कि राहुल गांधी लुधियाना में यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं को संबोधित कर दिल्ली लौट रहे थे। यही नहीं, फिजूलखर्ची रोकने की मुहिम के तहत राहुल गांधी ने ट्रेन की ये यात्रा की थी।

राहुल की रेल पर पथराव के मामले में पुलिस अभी तक अंधेरे में ही हाथ पांव मार रही है। चूंकि ये मामला राहुल गांधी से जुड़ा हुआ है। इसलिए हरियाणा पुलिस ने मामले की छानबीन के लिए फॉरेंसिक एक्सपर्ट की मदद ली है। नई दिल्ली स्टेशन पर बुधवार सुबह ही फॉरेंसिक एक्सपर्ट की एक टीम पहुंच गई। इस टीम ने स्वर्ण शताब्दी एक्सप्रेस का मुआयना किया और पथराव की वजह से टूटे खिड़कियों के शीशे से नमूने लिए। इस टीम ने मौके से मिले पत्थर की भी जांच की है।

राहुल गांधी देश की चंद बड़ी हस्तियों में से एक हैं। राहुल जैसी सुरक्षा व्यवस्था देश के गिने-चुने लोगों को नसीब है। लेकिन इसके बावजूद राहुल गांधी की रेल पर पथराव होता है और सुरक्षा एजेंसियां ये तक पता नहीं कर पातीं कि वो कौन सी जगह है जहां से पथराव किया गया? कौन थे पथराव करने वाले। उनका मकसद क्या था?

वेनेजुएला की सुंदरी बनीं मिस यूनिवर्स

रविवार, 30 अगस्त 2009

बहामास में हुए 'मिस यूनिवर्स' प्रतियोगिता में भारत को एक फिर निराशा हाथ लगी है। भारत की ओर से प्रतियोगी में हिस्सा ले रही दिल्ली की 22 वर्षीय एकता चौधरी अंतिम 15 में भी जगह नहीं बना पाईं।
इस तरह पिछले 9 साल से जारी इंतजार और एक वर्ष के लिए टल गया है। भारत को मिस इंडिया एकता चौधरी से काफी उम्मीदें थीं। वहीं मिस वेनेजुएला स्टेफेनिया फर्नांडेज मिस यूनिवर्स-2009 चुनी गईं।
स्टेफेनिया को उनकी हमवतन सुंदरी और वर्ष 2008 की मिस यूनिवर्स डायना मेंडोजा ने 1,20,000 डॉलर का ताज पहनाया। मिस यूनिवर्स बनने के बाद 18 वर्षीय स्टेफेनिया के चेहरे पर खुशी साफ देखी जा सकती थी।
मिस डोमिनिकन गणराज्य अदा दे ला क्रूज दूसरे और मिस कोसोव मैरीगोना द्रागुसा तीसरे स्थान पर रहीं। इस प्रतियोगिता में 84 देशों की सुंदरियों ने हिस्सा लिया था।
मालूम हो कि इस प्रतियोगिता में 84 देशों की सुंदरियों ने हिस्सा ली। फाइनल से पहले करीब एक महीने तक प्रतियोगिता के विभिन्न राउंड हुए थे। इन राउंड्स में भारत की प्रतिनिधि कर रही एकता ने पूरी कॉन्फिडंट से शिरकत की थी। एकता चौधरी दिल्ली की रहने वाली है।

रीयल लाइफ में ‘सच का सामना’ करना जानलेवा!

बुधवार, 19 अगस्त 2009

मेरठ की एक दंपत्ति आशा और राजेश ने रियलिटी शो को हकीकत जिंदगी में अजमाने की कोशिश की। लेकिन उनके लिए ये सच बेहद भारी पड़ गया। पति के सामने 'सच का सामना' करना आशा को इतना महंगा पड़ा कि उसका पति ही उसके जान का दुश्मन बन गया।
दरअसल इन दिनों टीवी पर आ रहा चर्चित रियलटी शो 'सच का सामना' एक हंसते-खेलते परिवार के लिए मुसीबत बन गया। शो की तर्ज पर एक पति ने अपनी पत्नी से बेवफाई का सारा सच तो उगलवा लिया। लेकिन ये कड़वा सच वो बर्दाश्त नहीं कर पाया। और उसने अपनी पत्नी पर जानलेवा हमला कर दिया। मेरठ में हुई इस घटना को सुनकर हर कोई सन्न रह गया।
दरअसल आशा के पति राजेश को इन दिनों टीवी पर आ रहे रियालटी शो 'सच का सामना' का भूत सवार था। शो की तर्ज पर उसने आशा से अपनी जिंदगी के बारे में सच बोलने को कहा, और जब आशा ने सच बोला तो राजेश बर्दाश्त नहीं कर पाया। सच सुनते ही पति ने आशा पर जानलेवा हमला कर दिया।
जानकारी के मुताबिक राजेश को अपनी पत्नी आशा के चरित्र पर शक था, लिहाजा उसके मन में आया क्यों न वो भी अपनी पत्नी के सच का सामना करे। लिहाजा वो उसे घुमाने के बहाने नहर पर ले गया और आशा से वादा किया कि वो अगर सच बताएगी तो वो उसे माफ कर देगा।
पति की बातों में आकर आशा ने अपनी बेवफाई की बात बता दी। साथ ही ये राज भी उगल दिया कि उनके दो बेटों में से एक राजेश का नहीं है। इतना सुनते ही राजेश आग बबूला हो उठा और उसने ब्लेड से आशा की गर्दन पर कई वार किए। जब राजेश को लगा कि अब आशा मर गई तब वो वहां से भाग निकला। लेकिन आसपास के लोगों की वजह से आशा की जिंदगी बच गई।
मेरठ में हुई इस घटना को सुनकर हर कोई सन्न रह गया। रियलटी शो 'सच का सामना' की चर्चा सड़क से संसद तक है।

आतंक के एक युग का खात्मा

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

आखिर अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन अमेरिकी ड्रोन हमले का शिकार हो ही गया। और इसके साथ ही आतंक के एक युग का भी खात्मा हो गया। अमेरिका के साथ-साथ पाकिस्तान भी अब चैन की सांस ले पाएगा।

तालिबान का मुखिया और अमेरिका का सबसे बड़ा दुश्मन बैतुल्लाह महसूद अमेरिकी हमले में ढेर हो गया। बैतुल्लाह महसूद को ओसामा बिन लादेन का असली वारिस माना जा रहा था। पाकिस्तान सरकार ने भी महसूद की मौत पर मुहर लगा दी है। क्योंकि इससे पहले भी महसूद की मौत की अफवाहें उड़ी थी।

दरअसल पाकिस्तान के कबीलाई इलाके दक्षिण वजीरिस्तान में बुधवार को अमेरिकी ड्रोन विमान ने महसूद के ससुर के घर हमला किया। जिस हमले में महसूद की दूसरी पत्नी और ससुर सहित चार रिश्तेदार ढेर हो गए।

एक तरफ तालिबानियों में महसूद की मौत का मातम। वहीं दूसरी ओर महसूद की वारिस की तलाश तालिबानी नेताओं ने शुरू कर दी है। तालिबान नेताओं की जल्दबाजी का आलम ये है कि महसूद के वारिस की तलाश के लिए बैठकों का भी सिलसिला शुरू हो चुका है। इस रेस में हकीमुल्लाह, वलीउर-रहमान और मौलान अस्मतुल्लाह हैं।
अमेरिका को बैतुल्लाह महसूद की तलाश 2007 से थी। और आज कामयाबी मिल गई। आलम ये था कि अमेरिका ने बैतुल्लाह के ऊपर 25 करोड़ रुपए इनाम रखा था। वहीं महसूद पर पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो की हत्या का भी आरोप था।

‘इंसाफ के घर देर, अंधेर नहीं’

गुरुवार, 6 अगस्त 2009


आखिरकर मुंबई में 2003 में हुए दोहरे बम धमाके के तीनों दोषियों को सजा मिल ही गई। उन परिवारों को आज अपनों के खोने के दुख के साथ-साथ सुख का भी ऐहसास हुआ होगा, जो पिछले 6 साल से इंसाफ की बाट जोह रहे थे। आज उन आत्माओं को भी शांति मिली होगी जो बिना किसी गुनाह के मौत के शिकार हो गए थे। साथ ही कोर्ट ने साबित कर दिया कि कानून सभी के लिए एक समान होता है। चाहे स्त्री हो या पुरुष। गुनहगार केवल कानून की नजर में गुनहगार होता है।
मुंबई की विशेष अदालत पोटा ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई। इन तीनों को कोर्ट ने मुंबई की जावेरी बाजार और गेटवे ऑफ इण्डिया पर हुए दो धमाकों के लिए दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाया। अदालत ने अशरत अंसारी, हनीफ सैयद और हनीफ की बीवी फहमीदा सैयद को फांसी की सजा सुनाई।

दरअसल इंसाफ के तराजू पर ये पहला मामला रहा जब अदालत ने पति-पत्नी दोनों को एक साथ फांसी की सजा सुनाई हो।
फैसले आने के बाद सरकारी वकील उज्जवल निकम ने कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे आतंकी सबक लेंगे। निकम ने शुरू के दिन से ही तीनों के लिए फांसी की सजा की ही मांग कर रहे थे।
पोटा अदालत ने इन तीनों को 25 अगस्त 2003 को जावेरी बाजार और गेटवे ऑफ इंडिया पर हुए दो जबर्दस्त धमाकों के लिए दोषी पाया था। इन धमाकों में 56 लोगों की मौत हुई थी जबकि 180 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे।
मालूम हो कि इससे पहले मुंबई की विशेष पोटा अदालत 4 अगस्त को ही दोषियों को सजा का ऐलान करने वाली थी। लेकिन कई घंटे बहस चलने के बाद इसे आज के लिए टाल दिया गया था। मंगलार को अदालत में तीनों दोषी अपने किए से मुकर गए थे। हनीफ और अशरत ने कहा था कि वो निर्दोष हैं। जबकि इस बम कांड की इकलौती महिला आरोपी फहमीदा सैय्यद ने ये कहकर सनसनी मचा दी थी कि एक महिला कभी आतंकवादी नहीं हो सकती।
दरअसल अदालत ने जांच में पाया कि जावेरी बाजार और गेटवे ऑफ इंडिया ब्लास्ट की साजिश लश्कर-ए-तैयबा ने रची और ये साजिश दुबई में रची गई थी। धमाके की जिम्मेदारी दुबई में ही काम करने वाले हनीफ सैय्यद को सौंपी गई थी। हनीफ ने अपने परिवार के साथ मिलकर गेटवे ऑफ इंडिया के धमाके को अंजाम दिया था।
जबकि जावेरी बाजार पर अशरत अंसारी ने ब्लास्ट किया था। दोनों धमाकों में आरडीएक्स का इस्तेमाल किया गया था।

'डिप्रेशन की शिकार महिलाएं सेक्सुअल रिलेशन से खुश नहीं'

शनिवार, 1 अगस्त 2009


एक सर्वे के मुताबिक महिलाओं की खुशी उनकी सेक्सुअल सटिसफेक्शन से जुड़ी है। सर्वे की मानें तो डिप्रेशन और इनफर्टिलिटी की शिकायत के साथ आई 80 फीसदी महिलाएं अपने पति के साथ सेक्सुअल रिलेशन को लेकर से खुश नहीं है।
दरअसल जमाना बदल रहा है। सोच बदल रही है। जानकारी, जागरुकता और जरूरतें बढ़ रही हैं। साथ ही बुलंद हो रही है हक मांगने की आजादी। कुछ ऐसा ही रंग रूप है 21 वीं सदी का। इस बदलते दौर में महिलाएं पुरुषों से कदम से कदम मिला कर चल रही हैं। हर क्षेत्र में उन्हें टक्कर दे रही हैं। लेकिन एक मामले में वो पुरुषों से पीछे हैं। जिसमें उनका हक चाहे-अनचाहे पुरुषों से कुछ कम है।

लेकिन परेशानी का सबब ये कि इस बात से वो खुद भी वाकिफ नहीं है। पुरुष के साथ निजी रिश्ते में दबाई गईं इच्छाएं और अपने मन पर किया नियंत्रण उनके मानसिक संतुलन को बिगाड़ सकता है।

यही नहीं कई डॉक्टरों ने अपने अस्पताल में डिप्रेशन, इनफर्टिल्टी और फैमिली काउंसलिंग के लिए आने वाली महिलाओं के साथ एक शोध किया। इस सर्वे के ज़रिए उन्होंने महिलाओं में डिप्रेशन की वजह ढूंढनी चाही। नतीजा चौंकाने वाला निकला।

सर्वे में खुलासा हुआ कि डिप्रेशन की शिकायत के साथ आई 80 फीसदी महिलाएं अपने पति के साथ निजी संबंधों में खुश नहीं थीं। बल्कि वो अपने स्वभाव में आए बदलाव, शादी में पैदा हुई कड़वाहट और बच्चा ना पैदा कर पाने की परेशानी को अपने शारीरिक संबंध की फ्रस्ट्रेशन से जोड़ कर देख ही नहीं पा रही थीं।

सेक्स एजुकेशन की ज़रूरत है। वो अपने शरीर को समझती नहीं है। दरअसल सब माइन्ड से लिन्कड है। हैरान करने वाली बात ये है कि सभी महिलाएं किसी एक उम्र या इकॉनिमिक क्लास की नहीं हैं।

मल्टीनैश्नल में काम करने वाली महिलाओं से लेकर सरकारी दफ्तर में नौकरीपेशा महिलाओं और गृहिणियों तक में डिप्रेशन और इनफर्टिलिटी की यही वजह पाई गई। यानी सेक्स एजुकेशन की कमी सभी वर्ग की महिलाओं और पुरुषों में हैं। ज़ाहिर है सोसाइटी में सेक्स एजुकेशन के बारे में बातचीत करने पर लगे अनकहे बैन की वजह से जीवन का ये अहम हिस्सा, खुशी की जगह अब परेशानी का सबब बन रहा है।

डॉ. कलाम का अपमान या राष्ट्रपति पद का?

मंगलवार, 21 जुलाई 2009


क्या अब सुरक्षा के दायरे से होकर देश के सबसे प्रतिष्ठित पद को होकर गुजरना पड़ेगा। या फिर देश में राष्ट्रपति जैसे गोरवमय पद का मार्यादा कम हो गया है। तभी तो पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से राजधानी दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट पर जूते तक उतरवा लिए। यही नहीं, मिसाइल मैन का पर्स और मोबाइल भी चैक किया गया।
अमेरिकी मूल की एक एयरलाइंस कंपनी ने सुरक्षा जांच के नाम पर अब्दुल कलाम और पूरे देश के साथ ये भद्दा मजाक नहीं किया?
कलाम के साथ मौजूद प्रोटोकॉल अधिकारी ने कॉन्टीनेंटल एयरलाइंस के अमेरिकी अधिकारियों को बताया कि डॉ. कलाम देश के पूर्व राष्ट्रपति हैं। लेकिन एयरलाइंस के अफसरों ने एक न सुनी।
इसके बाद डॉ. कलाम ने बिना कुछ कहे अपनी तलाशी दी और आज तक किसी से इसकी शिकायत भी नहीं की है।
लेकिन मामले को सामने आते ही देश में हलचल मच गया है। राजनीतिक गलियारों में कोहराम मच गया है। आनन-फानन उडड्यन मंत्रालय हरकत में आया और जांच के आदेश दे दिए। साथ ही केंद्र सरकार आरोपी अमेरिका विमान कंपनी कॉन्टीनेंटल एयरलाइंस को नोटिस जारी करते हुए इस मामले में उसका जवाब मांगा।
लेकिन एयरलाइंस कंपनी का जवाब बेहद गैर-जिम्मेदराना रहा। अमेरिकी एयरलाइंस कंपनी ने गलती मानने से इनकार कर दिया है। एयरलाइंस की ओर से कहा गया कि सुरक्षा को लेकर कोई समझौता नहीं किया जा सकता। अब सरकार एयरलाइंस के खिलाफ केस दर्ज कराएगी।
इस बीच कलाम के अपमान का मामला आज राज्य सभा में भी गूंजा। मामले की गंभीरता को देखते हुए सभी पार्टी के नेताओं ने इसे गलत ठहराया और गहरी निंदा की।

पूरे देश का ध्यान टिका हुआ है कि अब सरकार इसके खिलाफ क्या कदम उठाती है। या फिर एयरलाइंस के सामने घुटने टेक देगी। अगले कुछ दिनों में साफ हो जाएगा।

क्यों टूट रहे हैं शादी के अटूट बंधन?

शुक्रवार, 19 जून 2009

कहते हैं जोड़ियां ईश्वर के दरबार में बनती हैं। पति-पत्नी का अटूट रिश्ता कुदरत पहले से तय कर देता है। शायद इसीलिए इस नाजुक और अटूट रिश्ते को दुनिया का सबसे पवित्र बंधन कहते हैं।

लेकिन बड़े शहरों में जिस तरह हर रोज ईश्वर के बनाए रिश्ते तार-तार हो रहे हैं। पति-पत्नी के जन्मों का साथ अधर में ही छूट रहा है। जिससे शादी का बंधन कमजोर पड़ता जा रहा है। इसके बढ़ते मामले ज्यादातर महानगरों में दिखाई पड़ रही है।

आपको हैरानी होगी कि आईटी सिटी बैंगलोर में रोजाना 20 से भी ज्यादा तलाक के मामले दर्ज हो रहे हैं। 10 हजार शादीशुदा जोड़ों के मामले कोर्ट में सुनवाई की कतार में हैं।

लेकिन आज की इस भागती दौड़ती जिंदगी में इंसानों के लिए शायद ऊपर वाले के बनाए इस रिश्ते के भी कोई मायने नहीं रह गए हैं। जन्म-जन्म तक साथ रहने की कसमें अब छोटी सी बात पर भुला दी जाती है।

देश में प्रतिभावान लोगों का शहर माने जाने वाले आईटी सिटी बैंगलोर की एक कड़वी हकीकत बयां कर रहे हैं। यहां पिछले 6 महीने में 2 हजार से ज्यादा टूटे रिश्ते कुछ ऐसी ही कहानी बयां कर रही है। हैरानी वाली बात ये भी है कि ज्यादातर मामलों में तलाक की पहल पत्नियों की तरफ से की गई है।

शहरों में लगातार बढ़ रहे तलाक के मामले रिश्तों की परीक्षा ले रहे हैं। लेकिन देश की ये पढ़ी-लिखी पीढ़ी इस परीक्षा में फेल होती नजर आ रही है। जानकारों की मानें तो पैसों की चमक ने रिश्तों को कमजोर बना दिया है।

दरअसल आज महिलाएं इतनी आत्मनिर्भर हो चुकी हैं कि वो बिना हमसफर के जिंदगी गुजारने का माद्दा रखती हैं। महीने में लाखों रुपए कमाने वाला शौहर भी अपनी शरीके-हयात की रोज रोज की खिटपिट सुनने का आदी नहीं रहा। यानी दोष न लड़की का है और न लड़के का। दोष है हमारी बदलती हुई लाइफस्टाइल का।

शाइनी ने बॉलीवुड को किया कलंकित

बुधवार, 17 जून 2009

शाइनी आहूजा की पहचान बॉलीवुड में एक गंभीर एक्टर के रूप में हुआ करता है। कहा जाता है कि वो कोई भी काम को प्रोफेशनल तरीके से करते हैं। लेकिन फिलहाल जो धब्बा उनके ऊपर लगता दिख रहा है। वो सारी छवि को धूमिल कर देता है। दरअसल शाइनी पर नौकरानी के साथ बलात्कार का आरोप लगा है। ये वाकया 14 जनवरी का है।
अदालत में शाइनी बलात्कार की बात से मुकर गए लेकिन पुलिस का दावा है कि शाइनी ने अपनी नौकरानी के साथ बलात्कार की बात कबूली है। पुलिस का दावा है कि खुद शाइनी ने पूरी वारदात का खुलासा किया।
पुलिस के मुताबिक मामला पुलिस के पास पहुंचने से पहले ही शाइनी को इस बात का एहसास हो गया था कि उसने बहुत संगीन जुर्म को अंजाम दिया है और उसकी ये करतूत उसके मुंह पर कालिख पोत सकती है। यही वजह है की शाइनी ने नौकरानी को अपना मुंह बंद रखने के लिए उसे मनाने की हर संभव कोशिश की। इसके लिए शाइनी ने सारे हथकंडे अपनाए। खुद को बचाने के लिए और दुनिया के सामने अपनी साफ-सुथरी छवि बनाए रखने के लिए शाइनी अपना सब कुछ लुटाने के लिए तैयार था।
फिल्म एक्टर शाइनी आहूजा ने शायद रियल लाइफ को रील लाइफ की तरह ही समझ लिया था। फिल्मों में वो जितने कॉन्फिडेंट नजर आते हैं असल जिंदगी में भी उन्होंने वही आत्मविश्वास दोहराना चाहा। लेकिन वो भूल गए कि पर्दे की कहानी और असल जिंदगी की कहानी में बहुत फर्क होता है।
पेज-3 पार्टियों और देर रात तक शूटिंग में व्यस्त रहनेवाले शाइनी आहूजा की पुलिस लॉकअप में रातें मुश्किल से बीत रही हैं। जेल में ना तो एयर कन्डीशन की हवा है और न ही मखमली गद्दे। एशोआराम की जिंदगी बिताने वाला सितारा मामूली से जेल में अपना वक्त बिता रहा है।
मंगलवार शाम को शाइनी को अंधेरी थाने के लॉकअप से ओशिवारा पुलिस स्टेशन बुलाया गया। पुलिस शाइनी से बलात्कार के बारे में पूछताछ करती रही। मानसिक तौर पर थकाने के लिए शाइनी से एक बाद एक सैकड़ों सवालों की बौछार कर दी गई। सवाल कई तरीकों से और कई बार पूछे गए। पुलिस ये जानना चाहती थी की शाइनी के जवाब में कहीं विरोधाभास तो नहीं। इस पांच घंटे के दौरान कई पुलिस अफसर बारी-बारी से शाइनी से सवाल दाग रहे थे।
मुंबई पुलिस की फोरेंसिक टीम ने शाइनी के ओशिवारा स्थित फ्लैट से बेड शीट, तकिये का कवर, तौलिया और बाथरूम से साबुन, बाल्टी और शाइनी के कपड़ों के अलावा अंडर गारमेंटस को भी जब्त कर लिया है। पुलिस ने पीड़ित लड़की के कपड़ों को भी फोरेंसिक जांच के लिए भेज दिया है। पुलिस ने शाइनी का ब्लड और यूरिन टेस्ट भी करवाया है।
टेस्ट के नतीजों को फोरेंसिक टीम के द्वारा सीज़ किए उसके कपड़ों और घर से जब्त दूसरी चीजों से मिले नमूनों से मिलान किया जाएगा और अगर ये सारे सबूत शाइनी के खिलाफ जाते हैं तो उसका जुर्म साबित होने में ज्यादा देर नहीं लगेगी।

फिजा की गली में फिर चांद दिखा

सोमवार, 15 जून 2009

चांद और फिजा की खत्म होती प्रेम कहानी में एक बार फिर ट्विस्ट आ गया है। रविवार रात फिजा के घर के बाहर चांद समर्थकों और पुलिस के बीच हंगामा हुआ। चांद के समर्थकों का कहना है कि चांद मोहम्मद ने उन्हें एसएमएस किया था कि फिजा ने उन्हें किडनैप कर लिया है और उन्हें मदद चाहिए।चांद के समर्थकों का आरोप है कि वो उनसे मिलने आए थे लेकिन पुलिस ने उनपर गोलियां चलाईं। जो भी इन सबके बीच चांद और फिजा एक बार फिर साथ हो गए हैं। लेकिन अब चांद से मिलने पहुंचे युवकों ने आरोप लगाया है कि चांद मोहम्मद ने खुद को किडनैप किए जाने का मैसेज किया था। साफ है कि इस लव स्टोरी में ड्रामा अभी भी बाकी है।दरअसल हुआ कुछ यूं कि चांद मोहम्मद उर्फ चंद्रमोहन से कुछ युवक रात में ही उनसे मिलने फिजा के मोहाली वाले घर पर पहुंचे। युवक खुद को चंद्रमोहन उर्फ चांद मोहम्मद के समर्थक बता रहे थे। इसी दौरान वहां मौजूद पुलिस ने इन्हें रोक लिया। बहस होते-होते बात बढ़ गई और पुलिसकर्मी इन्हें गाड़ी में बिठाकर थाने ले जाने लगे।इसी बीच पुलिस वैन में ही गोली चली और एक लड़के के पैर में जा लगी। घायल लड़के का आरोप है कि एक पुलिसवाले ने इसके पैर में जानबूझकर गोली मारी। दूसरी तरफ पुलिस का इस मामले में कुछ और ही रुख है। पुलिस के मुताबिक युवकों ने पुलिस के साथ हाथापाई की जिसके दौरान गोली चली और युवक घायल हो गया।

मोहाली पुलिस ने फिज़ा के घर पर हुई फायरिंग के मामले में चार लोगों को गिरफ्तार किया है।
लेकिन आगे की कहानी इससे भी कहीं ज्यादा दिलचस्प है। इन युवकों का कहना है कि चंद्रमोहन ने इन्हें एक मैसेज किया था। मैसेज में चंद्रमोहन ने कहा था कि फिजा ने उन्हें किडनैप कर लिया है और उन्हें मदद की जरूरत है।पुलिस ने इस पूरे मामले के बाद चांद से भी बयान लेने का मन बना लिया है। इधर रविवार को जब चांद और फिजा चंडीगढ़ में मीडिया से रूबरू हुए थे तो चांद का चेहरा बुझा-बुझा सा दिख रहा था। चांद मोहम्मद ने फिजा से माफी मांगी। उन्होंने कहा कि अब वे फिजा को पहले से भी ज्यादा प्यार करेंगे।वहीं फिजा ने कहा कि उन्होंने चांद को माफ करने के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया है। उन्होंने कहा कि चांद के खिलाफ पुलिस में दायर शिकायत को वापस लेने के बारे में भी फिजा ने कहा कि सोचकर बताऊंगी।चांद मोहम्मद ने कहा कि उन्होंने फिजा को तलाक नहीं दिया है। जब उनसे उनके पहले के बयानों के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि वे सब बयान उन्होंने दबाव में दिए थे।

अब वो दिन लदे, खादी पहने और बन गए नेताजी

बुधवार, 10 जून 2009

अब वो दिन गए कि खादी पहना और हाथ में झंडा लिए...और बन गए नेताजी। अब नेता को कसौटी पर खरा उतरना होगा। लगेगी उनकी क्लास और हुए पास तो फिर राजनीति की सफर में उनका स्वागत होगा। दरअसल इसकी शुरूआत छात्र नेता से की जा रही है और ये मिशन राहुल गांधी का है।
भले ही छात्र नेता बनने के लिए लिखित परीक्षा और इंटरव्यू सुनने में अजीब लगे। लेकिन नेशनल स्टूटेंड यूनियन ऑफ इंडिया यानी NSUI में यदि जगह चाहिए तो आपको इस परीक्षा से गुजरना पड़ेगा। जयपुर में शुरू हुआ एनएसयूआई का ये टैलेंट हंट प्रोगाम सफल रहा तो देशभर लागू होगा। ये ही है राहुल गांधी का मिशन यूथ।
चौंकिए मत देश की राजनीति में अभी इतना बड़ा बदलाव तो नहीं आया है। लेकिन बदलाव की शुरुआत जरूर हो चुकी है। अगर कोई छात्र NSUI के जरिए छात्र राजनीति में एक मुकाम हासिल करना चाहता है तो उसे रिटेन इक्जाम और इंटरव्यू से गुजरना होगा।
दरअसल इस इंटरव्यू में नामी-गिरामी इंस्टिट्यूट से पढ़ाई करने के बाद लाखों की नौकरी को छोड़ कर युवा सम्मिलित हो रहे हैं। और ऐसे युवाओं की मानें तो युवाओं का राजनीति में आना जरूरी है, तभी राजनीति में क्रांति आएगी।
इंटरव्यू में भाग लिए एक छात्र के मुताबिक पहले लिखित परीक्षा और फिर इंटरव्यू। इंटरव्यू पैनल में थे दो प्रोफेसर और एनएसयूआई की प्रदेश अध्यक्ष रंजू रामावत। पैनल की ओर से कई सवाल पूछे गए जो कि काफी कठिन और सोचनीय थी।
छात्र राजनीति के जरिए देश का नेता बनने का ख्वाब देखने वाले हर प्रोफेशनल के छात्रों हैं। मैनेजमेंट, बिजनैस एडिमिनेस्ट्रेशन या राजनीतिक से जुड़े छात्र एनएसयूआई में शामिल कर अपनी राजनीतिक भविष्य को तलाश रहे हैं।
परीक्षा में सफल होने वाले छात्रों को एनएसयूआई कार्यकारिणी में जगह दी जाएगी। फिर सबको एक टास्क दिया जाएगा। टास्क को पार करने के बाद रिजल्ट के आधार पर आगे जिम्मेदारी दी जाएगी। इस सबमें सफल होने वाले छात्रों को मिलेगा संगठन में पद। इतना ही नहीं नौकरी की तर्ज पर यहां बाकायदा
प्रमोशन, डिमोशन और डिसीप्लनरी एक्शन होगा। संगठन की प्रदेश अध्यक्ष रंजू रामावत का चयन भी खुद राहुल गांधी ने टैलेंट हंट के तहत ही किया था।
अगर राहुल गांधी का ये मिशन पूरा हुआ तो राजनीति की शक्ल सूरत ही बदल जाएगी। हर होनहार को जात-पांत से ऊपर उठकर देश की राजनीति में सक्रिय भूमिका निभाने का मौका मिल सकता है। मकसद बस एक है जब प्रोफेशनल राजनीति को करियर बनाएंगे तो कई बुराईयां अपने आप ही खत्म हो जाएंगी।

प्यार, शादी, जिस्मफरोशी और फिर...मर्डर

सोमवार, 8 जून 2009

शादी सात जन्मों का रिश्ता होता है। लेकिन राजधानी दिल्ली में एक पत्नी ने अपने पति को मौत की नींद सुलाकर इस पवित्र रिश्ते को दागदार किया है। वजह चाहे जो भी हो, लेकिन शादी दो दिलों का मिलन होता है। दोनों साथ जीने-मरने की कसमें खाते हैं। लेकिन ये क्या इन्होंने तो साथ जीने-मरने के बजाय मारने-मरने पर आतुर हो गए।
आखिर सात जन्मों का बंधन इस मुकाम तक कैसे पहुंच गया। कैसे एक महिला ने खुद को अपने ही हाथों विधवा बना डाला। कैसे एक पत्नी ने बेरहमी से अपने ही पति की जान ले ली। दिल्ली के रोहिणी इलाके में एक शख्स की हत्या के बाद हर किसी की जुबान पर बस यही सवाल है।
लेकिन जब इन सवालों के जवाब मिले तो सब भौचक्के रह गए। अनिता ने पुलिस के सामने सरेंडर के बाद खुद ये मान चुकी है कि उसने अपने पति का कत्ल किया।
अनिता से पूछताछ के बाद पुलिस का दावा है कि अनिता के पति ने अपने घर के हालात सुधारने की खातिर शादी के कुछ महीनों बाद ही उसे जिस्मफरोशी के दलदल में धकेल दिया। हर रोज उसका पति नशे में धुत होकर घर आता और कुछ रुपयों के खातिर अपनी पत्नी के जिस्म का सौदा कर देता। लेकिन अनीता सब कुछ सहती रही।
आखिरकर जब उसे लगा कि बड़ी होने पर उसकी मासूम बेटी के साथ भी वही हो सकता है जो उसके साथ हो रहा है तो उसने अपने पति नवीन की चाकुओं से गोद कर उसकी हत्या कर दी।
अनिता के मुताबिक उसने काफी सोचने के बाद वो इस अंजाम तक पहुंचा। अनिता खुद ग्रैजुएट है और वो अपनी 6 साल की बेटी को भी दिल्ली के एक जाने-माने पब्लिक स्कूल में तालीम दिली रही है। हैरानी की बात ये है कि अनीता और नवीन ने लव मैरिज की थी। दोनों एक साथ एक पॉर्लर में काम करते थे और बाद में घरवालों की रजामंदी से शादी की थी।

अनिता की परिवार का अलग रोना है। परिवार के मुताबिक शादी के बाद दोनों ने हरियाणा जाकर एक ब्यूटी पॉर्लर खोला लेकिन जब पॉर्लर नहीं चला तो दोनों दिल्ली वापस आ गए और नवीन ने जल्दी अमीर होने के चक्कर में अपनी पत्नी का इस्तेमाल शुरू कर दिया। जिसका अंजाम ये हुआ।

आडवाणी को बीजेपी और संघ ने हरवाया

रविवार, 7 जून 2009

मजबूत नेता, निर्णायक सरकार...फिर भी करारी हार। हार का पोस्टमार्टम, रिपोर्ट गायब। रुठना, मनाना और फिर हिम्मत जुटाना। जां हां, लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद बीजेपी में घमासान छिड़ गया। जहजाहिर हुआ कि पार्टी के अंदर सबकुछ ठीक नहीं था। कई दौर की बैठकें हुई हार की कारणों पर चर्चा हुई। लेकिन किसी ने खुलकर एक कारण नहीं बताने की हिम्मत जुटा पाई। आखिर अपने तो अपने होते हैं।
लोहपुरुष लालकृष्ण आडवाणी के सलाहकार सुधींद्र कुलकर्णी ने पार्टी के खिलाफ बोलने की हिम्मत जुटा ली। और सुधींद्र कुलकर्णी के बयान से बीजेपी में खलबली है।
टीम आडवाणी के सलाहकार सुधींद्र कुलकर्णी ने बीजेपी की हार की पर्त दर पर्त उधेड़ दी। सुधींद्र कुलकर्णी ने दो कदम आगे बढ़ाते हुए बीजेपी के नेतृत्व पर ही खुला हमला बोल दिया है। सुधींद्र ने ब्लॉग में ये लिखकर सनसनी फैला दी है कि चुनावों में आडवाणी अकेले पड़ गए थे। उन्हें खुद बीजेपी और संघ परिवार ने ही कमजोर दिखा दिया। अटल बिहारी बाजपेयी के साथ आडवाणी ख़डे रहे मगर जब आडवाणी की बारी आई तो तस्वीर बदल चुकी थी।
सुधींद्र ने लिखा है कि 'कैसी विडंबना है। सोनिया गांधी और उनके बेटे राहुल मनमोहन सिंह के साथ इतने मजबूती से खड़े रहे कि एक कमजोर पीएम मजबूत बन गया। जबकि बीजेपी और संघ परिवार ने आडवाणी जैसे मजबूत नेता को कमजोर और लाचार दिखा दिया। पार्टी के कई कार्यकर्ताओं ने अपना दुख इस तरीके से बयां किया कि अटल जी पीएम बनने में इसलिए सफल रहे क्योंकि उसके साथ आडवाणी पूरी निष्ठा और ईमानदारी से खड़े रहे मगर इस बार आडवाणी जी के साथ उसी तरीके से काम करने वाला कोई आडवाणी नहीं था।'
सुधींद्र कुलकर्णी ने तो बीजेपी के हिंदुत्व पर ही सवाल खड़े कर दिए हैं। सुधींद्र के मुताबिक बीजेपी के भीतर विचारधारा को लेकर द्वंद है और ऐसे में पार्टी मुस्लिम और ईसाई की बात तो दूर खुद हिंदुओं के एक बड़े तबके का ही समर्थन हासिल नहीं कर सकती।
दरअसल सुधींद्र कुलकर्णी बीजेपी की हार के लिए पार्टी की नीति और विचारधारा पर सीधा वार कर रहे हैं। उन्होंने बीजेपी और संघ परिवार की मुस्लिम समाज के प्रति अपनाई जा रही नीतियों पर भी करारा वार किया। पार्टी मुस्लिमों के मुद्दे को लेकर बुरी तरह कंफ्यूज्ड है। बीजेपी का सच्चर कमेटी रिपोर्ट को पूरी तरह से दरकिनार करना एक बहुत बड़ी भूल थी। कांग्रेस ने अपने फायदे के लिए इसका गठन किया मगर बीजेपी उसमें कमिंया ही ढूंढती रह गई जबकि उसे इस रिपोर्ट के बहाने मुस्लमों के हित में खड़ी हुई दिखना चाहिए था।
हालांकि सुधींद्र कुलकर्णी खुद ही बीजेपी की चुनावी रणनीति के जिम्मेदार थे लेकिन हैरत की बात ये है कि अव वे उसी रणनीति को कटघरे में खड़ा कर हे हैं। उनके मुताबिक बीजेपी पूरे चुनाव के दौरान यूपीए सरकार की कमियां गिनाने में ही उलझी रही। यहां तक कि सुरक्षा का मुद्दा जो बीजेपी का मजबूत एजेंडा हो सकता था, वहां भी बीजेपी बुरी तरह लड़खड़ा गई। हुआ कुछ यूं कि कांग्रेस ने कंधार एपिसोड भुनाकर बीजेपी को हाशिए पर डाल दिया मगर बीजेपी चुनाव का एजेंडा भी तय नहीं कर सकी।
सुधीन्द्र कुलकर्णी के इस लेख के बाद बीजेपी सकते में है। पार्टी नेताओं की जुबान पर ताला लगा हुआ है और पार्टी के नेता कुलकर्णी के उठाए सवालों से कन्नी काट रहे हैं। ज़ाहिर सी बात है की कोई भी इस कड़वे सच को खुलकर स्वीकारने का साहस नहीं जुटा पा रहा है।
सुधीन्द्र कुलकर्णी के लेख की हकीकत को बीजेपी का एक बड़ा तबका बहुत पहले से महसूस कर रहा है। इससे पहले बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव अरुण जेटली और सांसद प्रभात झा ने भी अपने लेखों में पार्टी की कमियों की तरफ इशारा किया था। मगर कुलकर्णी की तरह खुलकर बोलने का साहस कोई नहीं कर पाया।

फेडरर बने फ्रेंच ओपन के सरताज

विश्व के दूसरी वरीयता प्राप्त टेनिस खिलाड़ी स्विट्जरलैंड के रोजर फेडरर ने साल के दूसरे ग्रैंड स्लैम फ्रेंच ओपन के फाइनल में रविवार को स्वीडन के रोबिन सोडरलिंग को हराकर टेनिस के इतिहास में चारों ग्रैंड स्लैम खिताब अपने नाम कर लिया है। ये कारनाम करनेवाले फेडरर विश्व के छठे खिलाड़ी हो गए हैं।
फेडरर ने फाइनल में सोडरलिंग को 6-1, 7-6, 6-4 से हराया। इसके साथ ही उन्होंने अमेरिका के पीट सैंप्रास के सर्वाधिक ग्रैंड स्लैम खिताब जीतने के रिकार्ड की बराबरी कर ली।
सेमीफाइनल मुकाबले में फेडरर ने अर्जेटीना के जुआन डेल पोत्रो को 3-6, 7-6, 2-6, 6-1, 6-4 से मात दी थी।
विश्व के महानतम टेनिस खिलाड़ियों में शुमार सैंप्रास ने अपने टेनिस करियर के दौरान कुल 14 ग्रैंड स्लैम एकल खिताब जीते थे। अब फेडरर के नाम भी 14 खिताब दर्ज हो गए।
हालांकि फेडरर के लिए 2008 अच्छा नहीं रहा था। इस साल स्पेन के राफेल नडाल ने उन्हें सिर्फ एक ग्रैंड स्लैम (अमेरिकी ओपन) जीतने दिया था।
इस बार नडाल क्वॉर्टर फाइनल मुकाबले में ही बाहर हो चुके थे। लिहाजा इस बार फेडरर के पास सैंप्रास के रिकार्ड की बराबरी करने का सुनहरा अवसर था। नडाल को सोडरलिंग ने हराया था।

फेडरर अब साल के तीसरे ग्रैंड स्लैम विंबलडन का खिताब जीतकर सैंप्रास को पीछे भी छोड़ सकते हैं क्योंकि उन्हें ग्रास कोर्ट का बेताज बादशाह माना जाता है, जबकि नडाल क्लेकोर्ट पर ही अपने सर्वश्रेष्ठ फार्म में होते हैं।

लोभ में बिके बीवी, बच्चे और ईमान

बुधवार, 3 जून 2009


लालच बुरी बला है। ये कहावत तो आपने कई बार सुनी होगी। लेकिन लालच के चलते कोई अपने बच्चों को ही गिरवी रख दे ये शायद आपने नहीं सुना होगा।
एक का तीन गुना करने के चक्कर में एक औरत ने एक दो नहीं, अपने तीन बच्चों को गवां बैठीं। जी हां, हिंदुस्तान के सबसे बड़े नटवरलाल के एक के बदले तीन नोट के ऑफर के चक्कर में जयपुर के मदरामपुरा की इंद्रा देवी ने अपने तीन बच्चों को गिरवी रख दिया।
इंद्रा देवी ने लोगों से महाठग अशोक जडेजा के चमत्कार की कहानी सुन रखी थी। इंद्रा देवी भी एक लाख का तीन लाख पाने की कोशिश में जुट गई। इंद्रा ने एक लाख रुपयों के बदले अपने बच्चों को एक रिश्तेदार के पास गिरवी रखने का फैसला किया। करार के मुताबिक इंद्रा की दो बेटियां और तीन साल का एक बेटा उसके रिश्तेदार के पास रहेंगे। पैसा चुकाकर वो अपने बच्चों को ले जा सकेगी।
इसके बाद इंद्रा ने एक लाख रुपए तीन महीने के लिए अशोक जडेजा के हवाले कर दिए। लेकिन जब तय तारीख पर वो पैसे लेने पहुंचे तो जडेजा पैसे लेकर फरार हो चुका था। इसके बाद रिश्तेदार ने जिद पकड़ ली कि पहले पैसे लाओ तब बच्चे मिलेंगे।
अब वो किसी भी तरह अपने बच्चों को वापस पाना चाहती है। अब बड़ा सवाल ये है कि एक लाख रुपए कहां से आएंगे। पैसों के लालच में ममता को दांव पर लगाने वाली इंद्रा को अपने किए पर भारी पछतावा हो रहा है। वो हर हाल में अपने बच्चों से मिलना चाहती है, लेकिन उसके पास कोई चारा नहीं है।
अशोक जडेजा के मायाजाल में फंसकर अपनों को दांव पर लगाने वालों में सिर्फ इंद्रा ही नहीं है। जयपुर के मुहाना में रह रही एक महिला के मुताबिक उसे उसके पति ने पैसों की खातिर 50 हजार रुपयों में गिरवी रख दिया। करार के मुताबिक अगर तय वक्त तक रेखा का पति उधार नहीं चुकाया तो लेनदार रेखा को ले जाएंगे।

'घर घऱ से एक नौजवान चाहिए'

सोमवार, 1 जून 2009

पाकिस्तानी सेना की लगातार कार्रवाई से तालिबान बौखला गया है। पाक फौजें लगातार तालिबान के कब्जे वाले इलाकों को आजाद कराती जा रही हैं। इस लड़ाई में तालिबान के सैकड़ों लड़ाके मारे जा चुके हैं। ऐसे में तालिबान अपनी ताकत को बढ़ाने के लिए नए-नए हथकंडे अपना रहा है।
तालिबान ने स्वात घाटी में एक नया फरमान जारी कर दिया है। तालिबान को अब हर घर से एक नौजवान की जरूरत है जो उसके लिए अपनी जान दे सके। तालिबान ने अपने इस नए फरमान में स्वात में रह रहे लोगों से कहा है कि अगर स्वात में रहना है तो हर घर से जिहाद के लिए एक नौजवान दे दिया जाए। तालिबान को ऐसे नौजवान चाहिए जो जेहाद के नाम पर खुद को मिटाने को तैयार हों।
दरअसल स्वात घाटी में तालिबान और पाकिस्तानी फौज में भीषण संघर्ष पिछले 35 दिनों से जारी है। पाकिस्तान का दावा है कि उसने तालिबान के सैकड़ों लड़ाकों को मार गिराया। एक-एक कर तालिबान के कब्जे वाले इलाकों पर पाकिस्तानी फौज का कब्जा होता जा रहा है। पाकिस्तान के सबसे अहम इलाके मिंगोरा से भी तालिबानियों को खदेड़ने का काम शुरू हो चुका है।
लेकिन आमने-सामने की जंग में हारते तालिबान ने अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के मांग रहा है स्वात घाटी के हर घर से एक नौजवान। तालिबान के इस खूंखार इरादे को अंजाम दे रहा है मौलाना फजलुल्लाह। वहीं मौलाना फजलुल्लाह जिस पर 5 करोड़ का इनाम रखा गया है। मौलाना फजलुल्लाह जिंदा बम तैयार करने की बात बड़े गर्व से मानता है।
बच्चों को जिंदा बम के तौर पर इस्तेमाल करने वाला तालिबान अपने खतरनाक मंसूबों अंजाम देने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। फिर वो बच्चों को जिंदा बम में तब्दील करना हो या घाटी के हर घर से एक आदमी की मांग हो। इतना ही नहीं पाकिस्तानी फौज से बुरी तरह मार खाने वाले तालिबान ने पाकिस्तानी फौज के लड़ाकों के घर वालों को भी निशाना बनाने का आदेश दे दिया है।
ऐसे में अगर पाकिस्तान से जल्द से जल्द तालिबान का सफाया न किया गया तो आने वाले दिनों में हालात और बदतर हो सकते हैं। तालिबान की नौजवानों की ये मांग नई नहीं है। पहले भी तालिबानी आतंकी बच्चों को अपने संगठन में शामिल करते रहे हैं।

कब सुधरेगा श्रीशांत, अब रैना को दी गाली

गुरुवार, 21 मई 2009


क्या तेज गेंदबाज एस. श्रीशांत ने कभी न सुधरने की कसम खा ली है? बुधवार को चेन्नई सुपर किंग्स के खिलाफ मैच में किंग्स-11 पंजाब के तेज गेंदबाज श्रीशांत अपना आपा खो बैठे। सुरेश रैना से चौका खाने के बाद श्रीशांत ने बौखलाकर गालियां दे दी। परंतु रैना ने संयम बरता और श्रीशांत से कहा कि उन्हें कुछ भी कह लें मगर गाली न दें।
ये पूरा वाकया स्टंप माइक्रोफोन पर रिकॉर्ड हुई थी। कमेंट्री बॉक्स में जब कमेंटेटर्स ने श्रीशांत की आवाज सुनी तो वो उनकी हरकत पर हैरान रह गए। उस वक्त कमेंट्री कर रहे सुनील गावस्कर ने पूरा वाकया दर्शकों को समझाया कि आखिर हुआ क्या था?
आईपीएल-2 में श्रीशांत ने दूसरी बार अपना गुस्सा दिखाया। इससे पहले IPL के अपने दूसरे मैच में ही श्रीशंत अपने रंग में लौट आए। श्रीशांत ने चेन्नई सुपर किंग्स के सलामी बल्लेबाज मैथ्यू हेडन पर गुस्सा दिखाया था। बाद में हेडन ने उन्हें ओवर रेटेड गेंदबाज कहा था। श्रीशांत की गुस्से की वजह थी हेडन की धमाकेदार पारी।
दरअसल पारी के आखिरी ओवर में श्रीशांत के गेंद पर हेडन ने एक दो नहीं पूरे तीन छक्के जड़ दिए। पांचवीं गेंद पर श्रीशांत ने चार रन लेग बाई के तौर पर भी दिए। श्रीशांत की बौखलाहट साफ देखी जा सकती थी। आखिरी गेंद पर श्रीशांत ने हेडन को आउट कर दिया और फिर हमेशा की तरह श्रीशांत बड़बड़ाते दिखाई दिए। लेकिन हेडन शांत हो कर बिना पलटे पवेलियन की ओर चल पड़े। हेडन ने अपना गुस्सा प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिखाया। उन्होंने कहा कि श्रीशांत ओवर रेटेड गेंदबाज हैं।
मालूम हो कि मैदान पर उलझना श्रीशांत की पुरानी आदत रही है। पिछले साल थप्पड़ विवाद आप नहीं भूले होंगे। जब हरभजन ने श्रीशांत को मैच के बाद जोरदार थप्पड़ जड़ दिया था। इस बार अनिफट होने के कारण शुरुआती मैचों से श्रीशांत बाहर थे। लेकिन मैदान पर जैसे ही आए अपनी पुरानी आदतों से बाज नहीं आए।

मंत्रियों को लालबत्ती में जनता घुमाती है

रविवार, 17 मई 2009


लालबत्तियों में घुमने वाले डेढ़ दर्जन से अधिक मंत्रियों को इस लोकसभा चुनाव में हार का मुंह देखना पड़ा है। केंद्रीय ऊर्वरक और रसायन मंत्री रामविलास पासवान जैसे दिग्गज चुनाव हार गए।
पासवान ने बिहार के हाजीपुर से लोकसभा का चुनाव एक दफा साढ़े चार लाख से अधिक मतों से जीतकर कीर्तिमान स्थापित किया था लेकिन इस बार वह अपनी परम्परागत सीट भी नहीं बचा सके। उनकी पार्टी का तो बिहार से सूपड़ा ही साफ हो गया।
चुनाव हारने वाले मंत्रियों में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ए. आर. अंतुले, कपड़ा मंत्री शंकरसिंह बाघेला, भारी उद्योग मंत्री संतोष मोहन देव, पंचायती राज मंत्री मणिशंकर अय्यर, महिला व बाल विकास मंत्री रेणुका चौधरी, रेल राज्यमंत्री नारनभाई राठवा, गृह राज्यमंत्री शकील अहमद, कृषि राज्यमंत्री तसलीमुद्दीन, मानव संसाधन राज्यमंत्री अली. अशरफ फातमी, पर्यटन राज्य मंत्री कांति सिंह, जल संसाधन राज्यमंत्री जयप्रकाश नारायण यादव, कृषि राज्यमंत्री अखिलेश प्रसाद सिंह, पेट्रोलियम राज्यमंत्री दिनशॉ पटेल, भारी उद्योग राज्यमंत्री रघुनाथ झा, जनजातीय मामलों के राज्यमंत्री रामेश्वर ऊरांव, सूचना व प्रसारण राज्यमंत्री एम. एच. अंबरीश और ग्रामीण विकास राज्यमंत्री चंद्रशेखर साहू शामिल हैं।
रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने सारण और पाटलिपुत्र से चुनाव लड़ा था। सारण से तो वह जीत गए लेकिन पाटलीपुत्र सीट नहीं बचा सके। गृह मंत्री पी. चिदम्बरम पहले तो हार ही गए थे लेकिन पुनर्मतगणना के बाद वह जीते।
जनता के जनादेश ने इन मंत्रियों से लालबत्ती छीन ली है। इन मंत्रियों ने भले ही अपने-अपने विभाग की जिम्मेदारी अच्छे से निभाई हो लेकिन कहीं न कहीं वे अपने क्षेत्र की जनता को खुश नहीं रख पाए। इतनी भारी संख्या में मंत्रियों का हारना भी अपने आप में बहुत कुछ बयां करता है।

तीन देवियां के बीच टिकी सरकार की राह

गुरुवार, 14 मई 2009


अंतिम और पांचवें चरण के चुनाव संपन्न होते ही जोड़तोड़ का गणित शुरू हो गई है। मतगणना तो 16 मई को होगी लेकिन रूठने-मनाने का दौर शुरू हो गया है। देश की दो बड़ी पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस जादूई आंकड़ा 272 को स्पर्श करने के लिए अन्य साथियों को अपने पाले में लेने के लिए कोशिश तेज कर दी हैं।
इस कड़ी में आज सोनिया गांधी के घर पर कांग्रेस महासचिवों की बैठक हो रही है। देर शाम को एक और कोर कमिटी की बैठक हो सकती है।
कांग्रेस को आंकड़े तक पहुंचने के लिए राजनीति की तीन देवियां यानी माया, जया और ममता का साथ चाहिए। ममता तो कांग्रेस के खेमे में शामिल हैं लेकिन माया और जया से अभी तक कांग्रेस की दूरी बनी हुई है। ये दूरी 16 मई तक रहेगी। 16 मई के बाद अगर ये तीनों देवियां कांग्रेस के साथ होंगी तो सत्ता में फिर से यूपीए काबिज हो सकता है। लेकिन वामदलों से कांग्रेस की नजदीकियां बढ़ते ही ममता से दूरियां बढ़ जाएगी।
पांचवें और अंतिम चरण के बाद आईबीएन7 और दैनिक भास्कर ने सीएसडीएस के साथ मिलकर वोटरों की नब्ज को टटोलने के लिए एक सर्वे किय़ा। सर्वे की मानें तो कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर रही है। जबकि अगर यूपीए की बात करें तो यूपीए के खाते में 185 से 205 सीटें जाते दिख रही हैं।
इस आंकड़े को आधार मानकर चलें तो यूपीए को सरकार बनाने के लिए कुल 272 सीटें चाहिए यानी यूपीए को सत्ता में फिर से काबिज होने के लिए 67 से 87 सांसदों को अपने पाले में लेने होंगे।
अब ये सीटें कहां से आएंगीं इस पर एक नजर डालते हैं। तमिलनाडु में डीएमके यूपीए के साथ है लेकिन अगर एआईएडीएमके को चुनाव के बाद पलड़ा भारी होता है तो फिर क्या तस्वीर बनकर उभरेगी। फिलहाल तो कांग्रेस प्रवक्ता जयंती नटराजन की ओर से कहा जा रहा है कि कांग्रेस डीएमके से अपना समर्थन वापस नहीं लेगी।
अगर देश के सबसे बड़े राज्य य़ूपी की बात करें तो यहां सपा और कांग्रेस दोनों चुनाव मैदान में अलग-अलग हैं। लेकिन चुनाव के बाद दोनों को साथ आना दोनों की मजबूरी है। वैसे कांग्रेस सपा को बॉय-बॉय कर बीएसपी से हाथ मिलाने में भी नहीं हिचकेगी। क्योंकि सूबे में सपा की जमीन खिसकती नजर आ रही है। वहीं मायावती को बढ़त मिलने के आसार है। ऐसे में कांग्रेस सपा और बीएसपी दोनों में से किसी की भी सवारी कर सकती है। लेकिन मायावती की नजर तो पीएम की कुर्सी पर है। वहीं मुलायम का कहना है कि नतीजे आने पर ही आगे की रणनीति बनाएंगे। यानी खेल अभी बाकी है। लेकिन मैदान तैयार है।
अगर बिहार में लालू-पासवान की बात करें तो दोनों की राजनीतिक जमीन पर नीतीश ने दस्तक दे दी है। दोनों दबी जुबान यूपीए के साथ होने की बात करते हैं पर कांग्रेस की नजर तो नीतीश पर है। गाहे-बगाहे सोनिया-राहुल नीतीश के बखान करते रहते हैं। लेकिन नीतीश ने एनडीए के साथ ही रहने का भरोसा दिलाया है। ऐसे में कांग्रेस के लिए वहां लालू-पासवान को साथ लेना एक मजबूरी है।
वैसे, लालू यादव यादव का कहना है कि मीडिया में जो दिखाया जा रहा है वो सच नहीं है। वो 16 मई के बाद ही पटना से दिल्ली आएंगे और अपना पत्ता खोलेंगे।
बिहार से हटकर पश्चिम बंगाल पर नजर डालें तो वहां कांग्रेस के साथ ममता बनर्जी है। अगर कांग्रेस वाम दलों को साथ लेता है तो ममता से किनारा करना होगा। लेकिन वाम दल कांग्रेस से खफा हैं। वहीं उड़ीसा में बीजेडी पर कांग्रेस की नजर है। लेकिन सारा खेल 16 मई को ही शुरू होगा। सबकुछ चुनावी नतीजे पर निर्भर करेगा। कांग्रेस के लिए एक बड़ी समस्या ये है कि किस पार्टी की सवारी कर नैय्या पार की जाए। क्योंकि ये तो जोड़तोड़ की राजनीति है।

‘स्लमडॉग’ बाल कलाकार रुबीना की बोली लगी!

सोमवार, 20 अप्रैल 2009


मुंबई के झुग्गी-झोपड़ियों पर आधारित बनी फिल्म ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ की मशहूर बाल कलाकार रुबीना अली को उसके बाप के ऊपर ही बेचने का आरोप लगा है। क्या ऐसा हो सकता है।
दरअसल लंदन की एक वेबसाइट ने ये सनसनीखेज खुलासा किया कि रुबीना के पिता उसे बेचने की पूरी तैयारी कर ली थी। सबूत के तौर वेबसाइट ने एक स्टिंग ऑपरेशन भी जारी किया। वेबसाइट के मुताबिक स्टिंग के जरिए रुबीना के पिता को रंगे हाथों कैमरे में कैद किया है।
बेबसाइट का दावा है कि रुबीना के पिता रफीक ने रुबीना को बेचने के ऐवज में 2 लाख पाउंड यानी करीब 1 करो़ड़ 80 लाख रुपए की मांग की।
वेबसाइट के मानें तो रफीक ने स्टिंग के दौरान ये बार-बार कह रहा था कि रुबीना के बेचे जाने के लिए हॉलीवुड के डॉयरेक्टर जिम्मेदार हैं। स्टिंग में रुबीना के पिता के साथ उसके चाचा भी इस ड़ील में हिस्सा लेते देखे गए।
वेवसाइट ‘न्यूज ऑफ द वर्ल्ड’ में मुताबिक रिपोर्टर ने अपना नाम बदलकर दुबई के शेख बनकर रुबीना के पिता से मिले और रुबीना को गोद लेने की बात की।
अगर वेबसाइट के दावे पूरी तरह से सच निकले तो इससे घिनौनी करतूत एक पिता के लिए और कुछ नहीं हो सकती। जिसे कतई माफी नहीं दी जा सकती।

सौरव हुए फिर साजिश के शिकार

शुक्रवार, 17 अप्रैल 2009


देश हो या विदेश सौरव गांगुली के क्रिकेट का सफर हमेशा से चुनौतियों से भरा रहा है। लेकिन हमेशा सौरव से चुनौतियां का डटकर सामना किया है और मुंहतोड़ जवाब दिया है। यूं कहें दादा का एक खिलाड़ी के तौर पर, एक कप्तान के तौर पर हमेशा चुनौतियां से चोली-दामन का रिश्ता रहा हो। एकदिवयसीय और टेस्ट से विदाई के बाद अब दादा को आईपीएल से भी किनारा करने की रोटियां पक रही है। जब दादा भारत से दक्षिण अफ्रीका रवाना हुए थे तो एक कप्तान की भूमिका को साथ लिए। लेकिन साजिश ने उनका साथ विदेशों में भी नहीं छोड़ा। दरअसल कोलकाता नाइटराइडर्स की कप्तानी से सौरव गांगुली की छुट्टी कर दी गई है। उनकी जगह न्यूजीलैंड के ब्रैंडन मैक्कलम को टीम का नया कप्तान बनाया गया है।
इसकी खबर की पुष्टि करते हुए टीम के कोच जॉन बुकानन ने कहा कि मैक्कलम टीम के लिए सबसे बेहतर हैं। विरोधियों से बचने के लिए बुकानन से कहा हम कोलकाता के लोगों की नाराजगी समझते हैं लेकिन हमने टीम के हित में फैसला लिया हूं।

ब्रैंडन मैक्कलम न्यूजीलैंड टीम के बल्लेबाज हैं। टी-20 फॉर्मेट में अच्छे फिट बैठते हैं। टी-20 में सबसे तेज शतक जमाने का रिकॉर्ड मैक्कलम के ही नाम है। शायद इस बड़ा उलटफेर की बुनियाद भारत में ही रची गई होगी। विरोध से बचने के लिए दक्षिण अफ्रीका में ये शिगूफा छोड़ा गया।
गांगुली की कप्तानी छीनने को टीम के मालिक शाहरुख खान ने टीम हित में बताते हुए कहा कि हर इंसान का एक दौर होता है और उसके बाद उसकी भूमिका बदल जाती है। सौरव अब नई भूमिका में नजर आएंगे। लेकिन वो भूमिका क्या होगी इसका उन्होंने खुलासा नहीं किया।
जो भी सौरव देश की जनता के दिलों में हमेशा बने रहेंगे। उन्होंने क्रिकेट को एक नया आयाम दिया है। सौरव से बेहतर कप्तानी पूरी दुनिया ने देखी है और वो एक सफल कप्तान हैं।

हॉट फ्रीडा पिंटो का जादू नहीं चला


ग्लैमरस, फैशन और फिल्म जगत की फेसम मैगजीन 'वैनेटी फेयर' ने हॉलीवुड एक्ट्रेस एंजेलिना जॉली को विश्व की सबसे सुंदर महिला चुना है। इस कम्पीटिशन में विश्व के तमाम देशों सुन्दरियां भी थीं। भारत की ओर से इस दौड़ में फिल्म ‘स्लमडॉग मिलेनियर’ से सुर्खियों में आई हॉट अभिनेत्री फ्रीडा पिंटो भी थीं। लेकिन अंतिम दौर तक नहीं पहुंच पाईं। फ्रीडा पिंटो संयुक्त रूप से पांचवें स्थान पर रहीं।
मैगजीन द्वारा कराए गए सर्वे के मुताबिक चर्चित हॉलीवुड एक्ट्रेस एंजेलिना जॉली को 58 फीसदी लोगों ने सबसे सुंदर महिला के लिए वोटिंग किया। जबकि सुपरमॉडल गिसेले बंडकेन को महज नौ फीसदी वोट मिले। वहीं बंडकेन दूसरे स्थान पर रहीं।
हॉलीवुड की एक अन्य चर्चित एक्ट्रेस हेली बेरी तीन फीसदी मत के साथ तीसरे पायदान हासिल कीं।

इन सबके बीच मुंबई की झुग्गी-झोपड़ियों पर बनी फिल्म 'स्लमडॉग मिलियनेयर' की अभिनेत्री फ्रीडा पिटों, कैथरीन डेनेव्यू, नातालिया वोदियानोवा, जियी झांग, बियोंसे नोल्स और केट ब्लिंकेट के साथ पांचवें स्थान पर रहीं।

भूखी आधी आबादी है। ये कैसी आजादी है?

मंगलवार, 14 अप्रैल 2009

भूखी जनता सूखे खेत, वादों से नहीं भरता पेट।
जनता हो गई होशियार, वादा नहीं चाहिए रोजगार।।

5 साल बाद फिर आई है जनता की बारी।
केवल वादे करने वाले, कर लें जाने की तैयारी।।

अब ना चलेगी किसी तरह की कोई मनमानी।
क्योंकि देश की जनता ने सबक सिखाने को ठानी।।

आने वाले ने नए चेहरों से भी यही है कहना।
जनता की मांगों पर सबसे पहले गौर करना।।

जनता नहीं चाहती नारे और शोर।
वरना खींच डालेगी की कुर्सी की डोर।।

हर पार्टी से जनता की है गहरी नाता।
चुनाव-चिह्न नहीं, उन्हें रोटी और रोजगार भाता।।

देश की जनता से भी एक अर्जी।
वोट डालकर, जाहिर कर देना अपनी मर्जी।।

क्योंकि...भूखी आधी आबादी है। ये कैसी आजादी है?

मां का दर्द

मंगलवार, 7 अप्रैल 2009

वरुण गांधी आज एक ऐसा चेहरा बन गया है। जो इस चुनावी-संग्राम में पक्ष-विपक्ष के लिए सबसे पहला मुद्दा है।
वरुण के जह्न में भी कभी नहीं आया होगा कि उनका बयान उन्हें हीरो और विलेन दोनों रूप में प्रस्तुत करेगा। एक छोटी से लेकर बड़ी राजनीतिक पार्टियां वरुण मुद्दे को भुनाने में लगी है। दरअसल पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार ने चुप्पी साध रखी। लेकिन जब चुप्पी तोड़ी तो एक नया रूप देखने को मिला। दरअसल राज्य सरकार के समक्ष एक समस्या आ गई कि इस मुद्दे पर अगर कड़े कदम नहीं उठाए गए तो जनाधार में बट्टा लग सकता है और आनन-फानन में वरुण रासुका लगा दिया गया।

वहीं समाजवादी पार्टी और कांग्रेस एक ही राग जप रही है कि इसके पीछे बसपा और बीजेपी की मिलीभगत है। खुद बीजेपी वरुण को लेकर पशोपेश में पड़ी है। उसे ये भी पता है कि वरुण मुद्दे पर पीलीभीत के हिन्दुओं की ही नहीं पूरे सूबे में अपना खोया जनाधार को फिर से पाया जा सकता है।
लेकिन राष्ट्रीय मुद्दा बनाने में हिचकिचा रही है। क्योंकि कहीं सहयोगी रूठ न जाएं।
मालूम हो कि वरुण मामले पर जदयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। जबकि दूसरी ओर मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अलपसंख्यकों को अपने वोट वैंक की कतार में जोड़ने में लगे हैं। और उन्होंने ऐलान कर दिया है कि उन्हें मध्यप्रदेश ना तो वरुण चाहिए ना ही वरुण का बयान उनके लिए कोई मुद्दा है।

लेकिन इन सबके बीच गांधी परिवार के लाडले वरुण कानून के शिकंजे में घिरते जा रहे हैं। उन्हें राजनीतिक कारणों से या सुरक्षा को ध्यान में ऱखते हुए पीलीभीत की जेल से एटा जेल में शिफ्ट कर दी गई है। जहां उन्हें कई बंदिशों का सामना करना पड़ रहा है। एक आम कैदी की तरह जेल के खान-पान से ही संतुष्ठ होना पड़ रहा है। देखिए, मौके की नजाकत को भांपते हुए शिवसेना ने तो यहां तक कह दिया कि वरुण में संजय गांधी की झलक दिखती है और हिन्दुओं के लिए ये गौरव की बात है।

लेकिन एक मां दर्द.. जी हां, मेनका गांधी कहती हैं कि सूबे की मुख्यमंत्री क्या जानें एक मा का दर्द। मेनका को लगता है कि उनके लाडले को राजनीतिक साजिश की तहत जेल में डाला गया है और रासुका जैसा कानून लगाया है। मेनका के इस बयान पर सूबे की मुखिया ने चुप्पी तोड़ी और पलटवार करते हुए कहा कि मेनका को एक बेटे का ख्याल है। लेकिन वो तो पूरे देश के मांओं की दर्द को समझती हैं। मायावती ने मेनका को नसीहत देते हुए कहा कि अगर केवल जन्म देने से मां का ममता एहसास होता तो आज मदर टेरेसा पूरे विश्व के लिए ममता और प्यार के लिए नहीं जानी जातीं। माया ने वरुण के परवरिश पर ही सवाल खड़े कर दिए, कहा- अगर वरुण को सही परवरिश दी गई होती हो वो इस तरह के सांप्रदायिक बयान नहीं देते।
जो भी इस पूरे खेल में गांधी परिवार, राजनीति, कानून और मां का दर्द साफ-साफ छलकता है।

पद्मश्री या शर्मश्री अक्षय कुमार?

मंगलवार, 31 मार्च 2009

बॉलीवुड का खिलाड़ी कहें, बॉलीवुड का किंग कहें, या फिर स्टंटमैन कहें....जो भी कहें अक्षय कुमार के सितारे मौजूदा दौर में बुलंदी पर है। लगातार कामयाबियां उनकी कदम चूम रही है। एक पर एक फिल्में हिट हो रही है।
अक्की बॉलीवुड के ऐसे सितारे हैं जो चहेतों के लिए आंखों के तारे हैं। ऐसे में अक्की मुंबई फैशन वीक में रैंप पर जो कुछ कर गए। वो एक भारतीय के लिए शोभा नहीं देता और हमारी सभ्यता में इसे शर्म की निगाहों से देखी जाती है।
एक ओर भारत सरकार द्वारा अक्की को पद्मश्री जैसे गौरवपूर्ण सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है। ये पुरस्कार ऐसे लोगों को दिया जाता है। जो अपने-अपने क्षेत्र में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया हो। ऐसे में सैकड़ों लोगों के बीच अपनी पत्नी से जींस का बटन खोलवाने से पहले में पहले एक बार भी इस बारे में नहीं सोचे होंगे। क्या जरा भी ख्याल नहीं आया कि पूरी दुनिया की निगाहें उनपर है।

अगर अक्की पब्लिसिटी के लिए ये सबकुछ किए तो इससे बड़ी शर्मनाक बातें नहीं हो सकती। इससे प्रशंसा तो कतई नहीं बटौरी जा सकती है। हां, ये जरूर है कि मीडिया ने टीआरपी के चक्कर में बार-बार ऐरो लगाकर बटन खुलवाने वाली सीन को दिखाकर लोगों से भी राय़ मांगी।
रैंप में जलवे बिखेरने उतरे अक्की ने पहले तो एक मॉडल के साथ रोमांस किया। लेकिन इतने से ही उनका दिल नहीं भरा। इसके बाद सीधे-साधे अक्षय रैंप से नीचे उतर कर पहुंच गए अपनी पत्नी ट्विंकल खन्ना के पास और फिर जो हुआ उसे लोग देखते ही रह गए।
दरअसल अक्षय ने सैकड़ों लोगों के सामने ही अपनी पत्नी ट्विंकल से अपनी जींस खुलवाकर सबको चौंका दिया। इस मामले पर अक्षय कुमार का कहना है कि जीन्स में जिप नहीं होती और बटन होते हैं इसलिए इसे अनबटन करवाया जाता है तो इसमें हर्ज ही क्या है।
लगता है लोगों के बीच अक्षय अपनी पैंट खोलने की आदत सी पड़ चुकी है। तभी तो खिलाड़ी कुमार ने पिछले साल अपनी जींस को खुद अनबटन किया ता तो इस साल एक कदम आगे बढ़कर ये काम अपनी धर्मपत्नी से करवाया। हम तो यही कहेंगे कि लोगों अर्श से फर्श पर और फर्श से अर्श पर पहुंचने में देर नहीं लगती है।

16 साल की लड़की की खूनी प्रेम कहानी

बुधवार, 25 मार्च 2009

गुजरात के पोरबंदर में मार्च के पहले दिन जो कुछ हुआ उसे लोग सालों तक नहीं भूल पाएंगे। एक ही परिवार के 3 सदस्यों की लाश मिलने से पूरे इलाके में सनसनी फैल गई थी।

पहली नजर में सभी ने आशंका जताई की ये खुदकुशी हो सकती है। और शुरुआती जांच में ऐसा लग रहा था कि आर्थिक तंगी के चलते पूरे परिवार ने खुदकुशी की। परिवार में कुल 5 सदस्य थे। पति-पत्नी और तीन बच्चे। तीन बच्चों में एक 16 साल लड़की है। पिता पुलिस कांस्टेबल था। इस वारदात की सुराग तलाशने में पुलिस जोर-शोर से लगी थी।
जब कातिल और कत्ल का मकसद पता चला तो लोग सकते में आ गए। रिश्ते तार-तार हो गए। एक ऐसी प्रेम कहानी सामने आई जिसमें प्यार को अपराध के रास्ते चलकर हासिल करने की कोशिश की जा रही थी। पुलिस के मुताबिक 16 साल की लड़की ने ही अपने प्रेमी के साथ मिलकर पूरे परिवार को इस तरह से मारा कि सभी को खुदकुशी लगे। मामले से पर्दा हटते ही पुलिस ने लड़की औऱ प्रेमी को गिरफ्तार कर लिया है।
दरअसल परिवार वाले इन दोनों के रिश्ते का विरोध करते थे। प्यार में पागल लड़की ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर सबसे पहले खौफनाक साजिश का निशाना बनाया अपनी ही मां और 2 छोटे भाइयों को जिन्हें बाहर घुमाने के बहाने से वे किसी सुनसान इलाके में लेकर गए और गला घोंट दिया। लड़की के पिता खुद क्राइम ब्रांच में पुलिस कांस्टेबल थे। लड़की का अगला निशाना वही थे।
बेटी ने उन्हें उनकी ही सर्विस रिवाल्वर से गोली मार कर उनकी हत्या कर दी। लड़की का प्रेमी स्कूल में मारुति वैन से बच्चों को लाने ले जाने का काम करता है। लड़की का पिता कार्सन भाई इस प्रेम के विरुद्ध थे। दोनों ने रास्ते से पूरे परिवार को ही हटाकर शादी रचाने वाले थे।
यह मामला तब खुला जब लड़की के दो भाइयों में से एक जिंदा बच गया और उसने होश में आते ही पुलिस को सारी कहानी सुना डाली। लड़के ने बताया कि वे लोग अपनी बहन के प्रेमी की गाड़ी में घूमने गए थे वहीं उनपर हमला हुआ।
वहीं लड़की के प्रेमी के घरवालों की किस्मत अच्छी थी जो वो पुलिस की गिरफ्त में है क्योंकि उसने भी अपनी प्रेमिका के साथ मिलकर अपनी पत्नी और अपनी मासूम बेटी की हत्या की साजिश रची थी जिसमें वो कामयाब नहीं हो पाया। यानी अगला निशाना लड़के के परिवार वाले थे। गांधी की जन्मस्थली पोरबंदर में एक नाबालिग लड़की की इस वहशियाना हरकत से पूरा शहर सकते में है।
पूरी वारदात में एक 16 साल की लड़की और एक शादीशुदा लड़का। जिसके परिवार में बीबी, बच्चे हैं। लेकिन दोनों प्य़ार में इस कदर पागल हो गए कि अपराधी बन बैठे। जिस मां-बाप ने लाखों अरमानों के साथ लड़की को 16 साल तक पाला। जिससे खून का रिश्ता था। जिसे मां-बाप अपनी बगिय़ां की कली मानकर खुश थे। लेकिन कली अपने ही मां-बाप और भाई यानी पूरे परिवार को मौत की नींद सुलाकर एक ऐसा प्यार हासिल करना चाहती थी। जिसकी कहानी खून से लिखी गई हो। क्या लोग के बीच प्यार को पाने के लिए बस अब यही रास्ता बच गया है। प्यार तो पवित्र बंधन होता है। लेकिन इन दोनों ने जिस रास्ते पर चलकर अंधा प्यार पाने की कोशिश की। ये कतई माफी के लायक नहीं है। दोनों ने प्यार नाम के पवित्र शब्द को कलंकित किया है।