अजूबा, 70 साल से भूखा है प्रह्लादभाई

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010


13 अगस्त 1929 से आज तक 79 साल बीत चुके हैं। प्रह्लादभाई की मानें तो जन्म के 9 साल बाद से उन्होंने न कुछ खाया न पीया। 70 साल से इस शख्स को भूख ही नहीं लगती। सवाल ये कि आखिर क्या कोई दैवीय शक्ति प्रह्लादभाई के साथ चल रही है। आखिर उनके शरीर को शक्ति कहां से मिलती है।
प्रह्लादभाई के मुताबिक भूख न लगना ईश्वर से मिला एक ऐसा आशीर्वाद है जो शायद दुनिया में और किसी को नहीं मिला। ये आशीर्वाद कैसे मिला इसकी भी एक बेहद दिलचस्प कहानी है। प्रह्लादभाई बचपन से श्रीनाथजी की पूजा किया करते थे। एक दिन पूजा करते हुए उन्हें महाकाली दिखने लगीं। भक्त प्रह्लाद ने जब ये बात अपने घरवालों को बताई तो सभी ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।
लेकिन ईश्वर के इस बाल पुजारी को पूजा से कोई रोक नहीं पाया। ऐसे ही एक दिन प्रह्लाद आरती कर रहे थे। तभी वो अचानक बेहोश हो गए। प्रहालादभाई की मानें तो बेहोशी में ही महाकाली ने एक बार फिर दर्शन दिए और अपनी एक उंगली प्रह्लाद भाई की जबान पर रख दी।
प्रहालादभाई की मानें तो ‘ऊंगली रखी उसके बाद सब कुछ छोड़ दिया। मुझे कहा गया तुम योग पर चले जाओ। दरअसल मैं वैष्णव उपासक था। योग पर चला गया उसके बाद याद नहीं आ रहा की पानी क्या है। दूध का स्वाद कैसा होता है।‘
उस दिन के बाद से 70 साल बीत चुके हैं। लेकिन उन्हें न भूख लगी और न प्यास। तब से लेकर आज तक 25 हजार दिन बीत चुके हैं। लेकिन मां काली का आशीर्वाद उनके साथ ही है। दिन हो या रात। कोई भी मौसम हो प्रह्लादभाई को भूख नहीं लगती।
प्रह्लादभाई को जो शक्ति मिली वो आज भी उनके साथ है। हर मौसम में उनके साथ रहती है। लेकिन बचपन में मिली ये ताकत उनके साथ अब तक कैसे है। इसका भी एक राज है। दरअसल प्रहालाद भाई ईश्वर से आशीर्वाद मिलने के बाद हिमालय की ओर चले गए। वहां रहकर 12 साल तक उन्होंने तपस्या की।
भूख पर प्रह्लादभाई की विजय आग की तरह हर गांव और शहर में फैलती जा रही थी। लेकिन इन सबकी परवाह किए बिना वो अपने परिवार को छोड़कर हिमालय की तरफ चले गए। प्रह्लादभाई का कहना है कि वो बारह साल तक कड़कड़ाती ठंड, बर्फीले तूफान में योग करते रहे। मां काली के आशीर्वाद के बाद योग साधना ने धीरे-धीरे उन्हें और मजबूत कर दिया।
भूखे रहकर समाधि दिनों से बढ़कर महीने और महीने से बढ़कर साल तक होती चली गई। वक्त बदलता रहा, मौसम बदलता रहा, लेकिन प्रह्लादभाई ने अपनी तपस्या नहीं छोड़ी। 12 साल हिमालय के बर्फीले मौसम में वक्त गुजारने के बाद वो नर्मदा नदी के पास आ गए। यहां उन्होंने एक और घनघोर तपस्या शुरू की। कई साल तक वो पानी में ही रहकर योग करते रहे। प्रह्लादभाई की मानें तो हिमालय से लौटने के बाद उनके शरीर ने हर तरह के मौसम पर भी विजय हासिल कर ली।
प्रहालादभाई की मानें तो ‘मैं कोई आध्यात्मिक जगह पर नहीं पहुंचा हूं। जंगलों में घूमने वाला हूं। योग के जरिए अभी काफी कुछ हासिल करना है। ऋषि कह गए हैं कि बारह साल में सिद्धि मिलती है। मेरी खोज अभी जारी है। 80 साल से जंगलों में घूम रहा हूं। बुढापा लाना नहीं है।‘
भूख पर विजय हासिल करने के बाद प्रह्लादभाई ने महाराष्ट्र के जंगलों में कई साल तक तपस्या की। 45 साल तक मौनव्रत के चलते उनकी आवाज भी लगभग चली गई थी। डॉक्टरों ने हिदायद दी कि आप कुछ बोलना शुरू करें वर्ना आवाज हमेशा के लिए चली जाएगी। डॉक्टरों की इस हिदायत के बाद उन्होंने कुछ बोलना शुरू किया है। लेकिन अब भी उन्हें दिक्कत होती है।
जैसे-जैसे प्रह्लादभाई का नाम की चर्चा बढ़ती गई। लोगों के साथ ही डॉक्टर भी हैरान होते गए। मेडिकल साइंस के लिए प्रह्लादभाई थे एक जिंदा चुनौती। आखिर कैसे कोई इंसान बिना खाए-पिए जिंदा रह सकता है। इसलिए अहमदाबाद के नामी डॉक्टरों ने प्रह्लादभाई पर रिसर्च करने की ठानी। तीन सौ बड़े डॉक्टरों की एक टीम बनाकर प्रह्लादभाई पर रिसर्च शुरू कर दी गई।