नीतीश की जीत में कोई रहस्य नहीं..लालू जी!

शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

बार-बार दोहराया जाता है कि बिहार के इतिहास को भुलाया नहीं जा सकता, देश के विकास में बिहार का अहम योगदान रहा है, कई ऐसे महापुरुष थे, जो थे तो बिहार के लेकिन उनकी पहचान बिहार तक ही सीमित नहीं थी। जब भी इतिहास की बात होती तो उनके चर्चे जरूर होते हैं। लेकिन वर्तमान में बिहार और बिहार के लोग अपनी पहचान इतिहास में दर्ज कराने में असफल रहे, या फिर वो उस लायक साबित ही नहीं हुए कि उनका नाम और उनके काम को सराहा जाए।

लेकिन बिहार में 24 अक्टूबर को एक युग का अंत हो गया और उसके साथ ही दूसरे युग ने स्वर्णिम दस्तक दे दी है। भले ही इसे इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाने में अभी वक्त और लगे, लेकिन ऐतिहासिक तो शुरू के दिनों से ही हो गया। सीधे लफ्जों में कहें तो नीतीश ने एक युग का अंत कर दिया है और दूसरे युग में ऐतिहासिक कदम रख दिया है।

जी हां, बिहार चुनाव में नीतीश कुमार ने जो फतह हासिल की है उससे उन्हें ऐतिहासिक विकासपुरुष तो बना ही दिया है। भले ही उनकी इस कामयाबी को इतिहास के पन्नों में तुरंत जगह नहीं मिले। नीतीश ने दिखा दिया कि विकास की पूजा होती है। लोग अब जाति-पाति से ऊपर उठकर सोचने लगे हैं। बीजेपी-जेडीयू गठबंधन ने पिछले 5 सालों में बिहार को एक नई दिशा देने की कोशिश की, जो अपने राह से भटक गई थी।

नीतीश ने लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को जानने की कोशिश की, भले ही उन समस्याओं का समुचित समाधान नहीं हुआ हो, लेकिन लोगों में नीतीश के प्रति विश्वास जगा, लोगों में संदेश गया कि ये नेता हमारे लिए ईमानदारी से कोशिश कर रहा है इसे एक और मौका देना चाहिए। वैसे भी नीतीश चुनावी सभाओं में एक ही बात कहते थे...'जिसने बिहार को बदहाल किया उसे आपने 15 साल दिया और मैं संवारने की कोशिश कर रहा हूं तो मुझे केवल 5 साल ही देंगे'... इस जुमले के बाद सीधे नीतीश कहते थे कि मुझे 5 साल और दीजिए ताकि आपसे किए वादे को पूरी तरह से पूरा कर पाऊं।

लोगों ने भी सोचा चल जब 15 साल तक अपनी बिरादरी या फिर जिसने कोई वादा ही नहीं किया, उन्हें हमने दिया तो फिर इसने तो कुछ किया है और बहुत कुछ करने का हाथ जोड़कर वादा भी कर रहा है। तो क्यों न एक मौका इसे और दिया जाए? मानो इसी बात के साथ बिहार की जनता ने अगल-बगल झांकने के बजाय एकमुश्त जाति-पाति, हिन्दु-मुस्लिम से ऊपर उठकर नीतीश के कंधों पर अपना हाथ रख दिया।

बिहार में इस बीजेपी-जेडीयू की ऐतिहासिक जीत ने अपने पीछे कई सवाल खड़े कर दिए हैं। कुछ के जवाब आने में सालों लग जाएंगे लेकिन कुछ के जवाब तो बीजेपी-जेडीयू गठबंधन के 200 के आंकड़े को पार करते ही तलाश जा रहे हैं। सबसे बड़ा सवाल तो ये है कि क्या लालू युग का अंत हो गया है? अभी लालू 67 साल हैं ऐसे में अगले बिहार चुनाव तक वो 72 के हो जाएंगे, क्या लालू 72 की उम्र में एक बार फिर कोई करिश्मा कर देंगे।

ये सवाल इसलिए उठ रहा है कि बिहार में सबसे ज्यादा युवाओं की तादाद है ऐसे में 72 साल लालू युवाओं को किस तरह अपनी और लुभाएंगे, क्योंकि हर ओर युवा नेता को आगे लाने और उसे कमान सौंपने की बातें चरम पर हैं। तो क्या इस हार के साथ ही बिहार में लालू युग का अंत हो गया है? या फिर लालू अपने बेटे के हाथ में पार्टी का कमान सौंपेंगे, क्योंकि इसका आगाज लालू ने इस चुनाव में कर दिया है। जो भी हो अभी तो लालू को 5 साल की फिर कठोर बनवास मिल ही गया है।

एक और सवाल ये है कि अब पासवान का क्या होगा? क्योंकि वो तो अभी युवा हैं लेकिन करिश्मा नहीं दिखा पा रहे हैं या फिर लोगों ने उन्हें तरजीह ही नहीं देना चाहते। क्या इन्हें भी अब ऐहसास होगा कि अब जिस दलित वोटरों के बल पर वो राज करते आए थे अब पराए हो गए हैं या फिर उसने विकास का स्वाद चखकर नीतीश के पाले में अपनी जगह बना ली। जिसमें सेंधमारी फिलहाल मुमकिन नहीं है।

लालू-पासवान को अपनी हार से ज्यादा एनडीए की जीत रहस्यमय लग रही है। वो इस रहस्य से पर्दा उठाने की बात कर रहे हैं। लेकिन वो भी जानते हैं कि भूखी-प्यासी जनता को नीतीश की आधी रोटी मिल गई थी और वो अब पूरी रोटी खाना चाहती है, इसलिए उनका दामन छोड़ दिया। शायद इस कदर हार की उम्मीद तो जनता ने भी नहीं की होगी तो लालू-पासवान को तुरंत कैसे हजम हो जाएगी। वक्त के साथ सबकुछ ठीक हो जाएगा।

वहीं बिहार में अपनी अस्तित्व को तलाश रही कांग्रेस को फिर मुंह की खानी पड़ी है। राहुल बाबा का जादू बिहार के लिए फ्लॉप शो साबित हुआ, सबने नीतीश को कोसा, लेकिन बिहार की जनता ने तो उनकी बातों को सुनी लेकिन अपने फैसले पर अडिग रही।

आखिर में मैं ये दावे के साथ कह सकता हूं नीतीश ने केवल ऐतिहासिक जीत ही नहीं हासिल की है, ये भी दिखा दिया कि विकास के नाम पर चुनाव जीते भी जाते हैं और वो भी रिकॉर्ड बहुमत के साथ। उन्होंने उन नेताओं और पार्टियों को संदेश भी दे दिया जब बिहार के लोग जाति-पाति से उठकर मतदान कर सकते हैं तो देश के बाकी के हिस्सों में भी इसे दोहराया जा सकता है। बस नेताओं को ईमानदारी से कोशिश करने की जरूरत है। साफ शब्दों में कहें तो नीतीश की जीत ने राजनीति की नई परिभाषा गढ़ दी है।

बिहार, विकास, बिरादर...और वोट

सोमवार, 18 अक्तूबर 2010

विकास तो हुआ है लेकिन उस पैमाने तक नहीं, ताकि वोट बिरादर पर हावी हो। विकास की हवा तो है लेकिन लहर पैदा नहीं हो पाई। वोटर से लेकर नेताजी तक पूरे कंफ्यूज हैं। चुनावी एजेंडा बन ही नहीं पाया। कुल मिलाकर नीतीश अंधेरे में तीर मारने की पूरी जुगत में लगे हैं तो लालू जी तेज आंधी में लालटेन के सहारे नए रास्ते तलाश रहे हैं। यानि बिहार में खिचड़ी चुनाव की तैयारी हो चुकी है।

पांच साल पहले जैसे ही नीतीश की सरकार सत्ता में आई तो 90 दिन के अंदर के कानून-व्यवस्था दुरुस्त करने क बात कही गई, कुछ हद अपराध पर लगाम भी लगे लेकिन समयसीमा फेल हो गई। लालू जी का जंगल राज खत्म हो गया था, एक नए सबेरे के साथ बिहार की फिजाएं बदलने लगी थी। जेपी आंदोलन के दो सिपाही आमने-सामने थे, टक्कर अब भी कांटे की थी। क्योंकि लालू जी ताकत अब भी कम नहीं हुई थी वो रेल पर सवार होकर बिहार की राजनीति कर रहे थे तो नीतीश बिहार को संवारने में लगे थे।

बिहार में जंगलराज स्थापित करने के नाम से बदनाम लालू को रेलवे में इस कदर कामयाबी मिली कि वो आईआईएम से लेकर हॉवर्ड यूनिवर्सिटी तक स्टूडेंटों को मैनेजमेंट का गुर सिखाने लगे। घाटे में चल रहे रेलवे मुनाफे की पटरी पर तेज रफ्तार से दौड़ने लगा। लेकिन बदनामी के दाग धोने के लिए ये काफी नहीं था। लोकसभा चुनाव में नीतीश ने कुछ दिन की सरकार की उपलब्धियों को भुनाते हुए बिहार से लालू राज का खात्मा ही कर दिया। जिस बल पर वो रेल पर काबिज थे, वो ताकत क्षणभर में गायब हो गई। नीतीश ने इस कदर सटीक निशाने पर तीर साधा कि लालू जी के लालटेन की लौ दिखाई ही नहीं देखने लगी। लालू की हर चुनावी दांव फेल हो गया, वोटिंग मशीन दबाने से लेकर चुनावी सभा में चुटकी लेते हुए खैनी मांग कर खाने का शिगूफा वोटरों का खूब मनोरंजन किया, वोटरों ने भी लालू जी से वोटिंग मशीने दबाने का तरकीब तो सीख लिए लेकिन जब दबाने की बारी आई तो वोटरों ने लालटेन नहीं तीर को चुना। लेकिन तब भी लालू हार मानने वाले नहीं थे। उन्हें विश्वास ही नहीं हो रहा था उनका हर दांव फेल हो रहा है और लोगों ने उन्हें नकार दिया है, भला विश्वास हो भी तो कैसे? 15 साल से लालू अपने अंदाज में राज कर रहे थे, जब खुद पर घोटाले का साया आया तो धर्मपत्नी को रातोंरात गद्दी पर बिठा दिया। लालू जी ने प्रदेश में एक जमीन तैयार की थी जिसे उन्हें इतनी जल्दी खोने की उम्मीद नहीं थी।

वहीं नीतीश बिना किसी खींचतान के 5 साल तक बिहार में बने रहे। लालू के हमले से बेपरवाह नीतीश पर इस बीच अपनों ने ही कई हमले किए। पार्टी के कई नेताओं ने नीतीश सरकार के खिलाफ बगावती तेवर अपना लिया, सड़क से लेकर विधानसभा तक नीतीश का विरोध हुआ लेकिन नीतीश टस से मस नहीं हुए। जिसने भी नीतीश पर निशाना साधा उसके पर कतर दिए गए या फिर उन्हें पार्टी में इस कदर अलग-थलग कर दिया गया कि वे खुद दूसरे के हाथ थाम लिए या फिर पंगू बन कर रह गए। एक समय नीतीश के दाहिने हाथ कहे जाने वाले लल्लन सिंह भी नीतीश पर दबाव बनाने के लिए कई हथकंडे अपनाए, लेकिन नीतीश की बिछाए बिसात में वो उलझ कर रह गए। नीतीश अब तक अपनी पहचान विकासपुरूष के रूप में बना चुके थे। आर्थिक जानकार भी बिहार और नीतीश की वाहवाही करने लगे, सारे आंकड़े नीतीश के पक्ष में थे। कामयाबी का श्रेय बीजेपी-जेडीयू गठबंधन की सरकार से ज्यादा नीतीश को मिलने लगा। सबपर भारी नीतीश की रणनीति पड़ी।

लोगों में चर्चा का विषय गठबंधन सरकार की कामयाबी नहीं विकासपुरूष नीतीश की होने लगी। मैं भी बिहार का रहने वाला हूं लालू युग के करीब सालभर बाद जब बिहार गया तो फिजाएं बदली हुई थी, सोचे थे कि स्टेशन से उतकर घर जाने में ढाई से तीन घंटे तो लगेंगे ही लेकिन सफर इतना आसान था कि महज एक घंटे में ही घर के दरवाजे पर दस्तक दे दी। बिहार में हेमामालिनी के गाल जैसी सड़क बनाने की बात करने वाले लालू जी ना सही, नीतीश ने वो कर दिखाया। सड़कों पर महानगरों की तरह गाड़ियां दौड़ती नजर आईं। जहां लोग हिचकोले के आदी हो गए थे। नीतीश के विकास का वादा सड़क पर पूरे रंग में दिखा, लेकिन शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में कुछ खास प्रभाव नहीं छोड़ पाए।

आज नीतीश अपना कार्यकाल पूरा कर चुके हैं फिर मैदान में हैं लेकिन कंफ्यूज हैं। राजनीतिक समीकरण बिगड़ा हुआ है केवल विकास के एजेंडे के साथ नैय्या पार लगना मुश्किल लगता है। पिछले चुनाव के तरह बदलाव के भी बयार नहीं है। जाति समीकरण फिर हावी है। सालों पहले अपनों ने जो बगावत किया था वो आज ताल ठोंक रहे हैं, चुनौती दे रहे हैं कि देखते हैं कि किसमें कितना है दम, खास बात ये है कि वो अलग-अलग जाति से हैं। और वो ही नीतीश को सत्ता से बेदखल करने में लगे हैं। इस बीच लालू और पासवान एक होकर नीतीश पर निशाना साध रहे हैं, एक साथ नीतीश पर कई हमले हो रहे हैं। विपक्ष विकास के दावे को खोखला करार दे रहा है और जनता से एक मौका मांग रहा है। भले ही लालू की ताकत कम हो गई हो लेकिन राजनीतिक अनुभव तो आज भी उनके साथ है। अगड़ी जाति को दुत्कारने वाले लालू का अब नारा ही बदल गया है। एक समय ‘भूरा बाल साफ करो’ का नारा देने वाले लालू अगड़ी जाति को अब 10 फीसदी आरक्षण देने की बात कह रहे हैं। यही नहीं, बिहार को रेलवे की तरह एक नई पहचान देने का वादा कर रहे हैं।

लेकिन इन सबके बीच अब भी नीतीश की फुफकार कम नहीं हुई है भले ही कंफ्यूज हैं लेकिन विकास को ही वो प्राथमिकता दे रहे हैं। बीजेपी अब भी नीतीश की पीछे-पीछे जी-हुजुरी कर रही है। बीजेपी के स्टार प्रचारक मोदी और बरुण गांधी को चुनावी समर में नीतीश की नो एंट्री के आगे बीजेपी भी नतमस्तक हो गई है। सभी दल चुनाव प्रचार में अपनी सारी ताकत झोंक दी है, हर दिन कई रैलियां हो रही हैं। अगर नीतीश विकास के दम अपनी नैय्या पार लगा लेते हैं तो निश्चित ही उनका कद गठबंधन से बड़ा हो जाएगा, अगर असफल हुए तो लालू की वापसी होगी। परंतु एक बात तो साफ है कि अब लोग मसकरी नहीं विकास को देखकर वोट डालने लगे हैं, राज्य का एक बड़ा तबका विकास का रास्ता चुन चुका है। जो भी हो बिहार में जिसकी भी सरकार बने, उसे काम करके दिखाना होगा, क्योंकि बिहार में विकास की तेज लहर न सही, हवा तो चल ही चुकी है...।

टाइटैनिक जहाज के डूबने का खुला राज

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

कई मंजिला जहाज समुंद्र में डूब गया और साथ में दे गया जलसमाधि 1517 लोगों को। टाइटैनिक डूबने के करीब 100 साल बाद इस त्रासदी का सच सामने आया है। टाइटैनिक पर छपी नई किताब में दावा किया गया है कि जहाज के डूबने के लिए दुर्घटना नहीं बल्कि चालक दल की गलती जिम्मेदार थी। यही नहीं, किताब के मुताबिक हिमखंड यानि आईसबर्ग से टक्कर के बाद भी जहाज पर सवार यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी।

अब तक यही माना जाता रहा है कि 14 अप्रैल 1912 को दुर्घटना के वक्त टाइटैनिक जहाज तेज गति से चल रहा था और चालक दल हिमखंड को देख नहीं पाया और इसी हिमखंड से टकराकर जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। लेकिन टाइटैनिक डूबने की असली वजह यह नहीं थी बल्कि टाइटैनिक का डूबना चालक दल की गलती का नतीजा था।

ये खुलासा टाइटैनिक के बारे में छपी 'गुड एज गोल्ड' नाम की नई किताब में किया गया है। इस किताब में दावा किया गया है कि चालक दल चाहता तो इस भयानक त्रासदी को टाला जा सकता था। द टेलिग्राफ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना के सौ साल बाद इस पुस्तक में कहा गया है कि हिमखंड को देखने के बाद चालक दल के पास काफी समय था और वे टाइटैनिक को उससे टकराने से बचा सकते थे। लेकिन वे इस कदर भयभीत हो गए कि जहाज को उन्होंने उसी दिशा में मोड़ दिया। जब तक गलती का पता चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

दरअसल दुनिया का सबसे बड़ा जहाज टाइटैनिक 10 अप्रैल 1912 को साउथंपटन से न्यूयॉर्क के लिए अपनी पहली यात्रा पर निकला था लेकिन चालक दल की गलती की वजह से समंदर में समा गया। टाइटैनिक को अभेद्ध समझा जाता था, कहा जाता था कि ये जहाज कभी डूब नहीं सकता। टाइटैनिक पर दो तरह के स्टियरिंग सिस्टम काम कर रहे थे। जहाज पर मौजूद चालक दल के कुछ सदस्यों को एक सिस्टम की जानकारी थी तो बाकी को दूसरे सिस्टम की। लेकिन अचानक इन दोनों सिस्टम के बीच तालमेल टूट गया और हिमखंड से टक्कर के बाद दोनों सिस्टम के चालक दल अलग-अलग दिशा में काम करने लगे और टाइटैनिक समंदर के आगोश में समा गया।

लुईस पैटन के मुताबिक उनके दादा लाइटोलर को इस गलती का एहसास हो गया था। जहाज डूबने से पहले उन्होंने चार वरिष्ठ अधिकारियों के साथ फर्स्ट ऑफिसर्स केबिन में एक अंतिम बैठक भी की थी। इस बैठक में जहाज को डूबने से बचाने की हर कोशिश पर चर्चा हुई। लुईस पैटन ने अपनी किताब में यह भी दावा किया है कि टक्कर के बाद यात्रियों को डूबने से बचाया जा सकता था अगर जहाज को टक्कर के बाद उल्टी दिशा में न चलाकर वहीं स्थिर खड़ा कर दिया जाता।

दरअसल टाइटैनिक बनाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार लाइन के चेयरमैन ने टक्कर के बाद भी कैप्टन से जहाज को धीमी गति से आगे चलाते रहने की जिद की। करीब दस मिनट तक चलने के बाद जहाज की पेंद में घुस रहे पानी का दबाव बढ़ गया जिसकी वजह से टाइटैनिक जल्दी डूब गया। अगर जहाज को टक्कर के बाद पानी में स्थिर खड़ा रखा जाता तो ये कई घंटों बाद पानी में डूबता जिससे चार घंटे की दूरी पर खड़े दूसरे जहाज से मदद मिल सकती थी और हादसे का शिकार हुए 1517 लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

लुईस पैटन के मुताबिक उनके दादा ने ये राज सिर्फ अपनी पत्नी को बताया था। दादी ने यही राज अपनी पोती पैटन के सामने उजागर कर दिया। हालांकि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि वो ये राज अपने सीने में ही दफन रखे। लेकिन दादी की मौत के 40 साल बाद पैटन को लगा कि टाइटैनिक जल त्रासदी से जुड़ा ये राज अब सिर्फ उन्हीं तक सीमित ना रहे बल्कि दुनिया को भी पता चले की टाइटेनिक डूबने की असली वजह हादसा नहीं, बल्कि एक गलती थी।

माइकल जैक्सन बने CNN म्यूजिक आइकन

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

माइकल जैक्सन को दुनिया भर के लोगों ने सबसे चहेता सिंगर बनाया है। सीएनएन की एक पोल में दुनियाभर के 20 गायकों को चुना गया था, जिसमें आशा भोसले का भी नाम था। लेकिन आखिरी 5 में आशा ताई अपनी जगह नहीं बना पाईं। सीएनएन के पोल में दुनिया भर से करीब 1 लाख लोगों ने वोट किया।

टॉप 5 गायकों की सूची इस तरह से है। नंबर वन पर रहे किंग ऑफ पॉप माइकल जैक्सन, जिनकी पिछले साल जून में अचानक मृत्यु हो गई थी। दूसरे नंबर पर मशहूर ब्रिटिश बैंड बीटल्स, तीसरे स्थान पर लेसली, चौथे पायदान पर एलविस प्रेसली और पांचवें स्थान पर बॉब मार्ले रहे। हालांकि टॉप 5 में किसी महिला सिंगर को जगह नहीं मिली। मडोना कुछ वोट से छठे स्थान पर रहीं।

पॉप की दुनिया के बेताज बादशाह माइकल जैक्सन, जिनसे डांस स्टाइल का हर कोई दीवाना है। जैक्सन को दुनिया का सबसे कामयाब गायक माना जाता है। उन्होंने करीब चालीस साल तक पॉप की दुनिया पर राज किया। जैको का नाम कई बार गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में लिखा जा चुका है। उन्होंने सबसे ज्यादा 13 बार ग्रैमी अवॉर्ड भी जीता। यही वजह है कि माइकल की मौत के बाद भी वो चाहने वालों के दिलों में जिंदा हैं।

घटिया प्रदर्शन जारी, भारत टी-20 वर्ल्ड कप से बाहर

रविवार, 9 मई 2010

टीम इंडिया का वर्ल्ड कप में शर्मनाक प्रदर्शन जारी है। ऑस्ट्रेलिया से हारने के बाद टीम इंडिया अब वेस्टइंडीज से भी हार गई। यानी टीम इंडिया 2010 टी-20 वर्ल्ड कप से बाहर हो चुकी है। अब कोई करिश्मा ही भारत को सेमीफाइनल की दौड़ में वापस ला सकती है। वेस्टइडीज के खिलाफ 170 रनों के लक्ष्य का पीछा करने उतरी टीम इंडिया सिर्फ 155 रन ही बना पाई। वेस्टइंडीज के खिलाफ मैच में एक भी भारतीय बल्लेबाज नहीं चला।

किंग्सटन ओवल में रविवार को खेले गए ट्वेंटी-20 विश्व कप के सुपर-8 मुकाबले में वेस्टइंडीज ने भारत को 14 रनों से हरा दिया।

वेस्टइंडीज द्वारा पेश किए गए 170 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए भारतीय टीम 20 ओवरों में नौ विकेट पर 155 रन ही बना सकी।

भारत की तरफ से सुरेश रैना सबसे ज्यादा 32 रन बनाकर आउट हुए। वहीं, मुरली विजय सात, गौतम गंभीर 15, रोहित शर्मा पांच, युवराज सिंह 12, यूसुफ पठान 17, महेंद्र सिंह धौनी 29, हरभजन सिंह 14 और आशीष नेहरा शून्य बनाकर पेवेलियन लौट गए।

वेस्टइंडीज की तरफ से केमर रॉच ने दो विकेट लिए। इसके अलावा डरेन सैमी, जेरोम टेलर, ड्वेन ब्रावो, कीरोन पोलार्ड, क्रिस गेल और सुलेमान बेन ने एक-एक खिलाड़ी को आउट किया।

टॉस हारने के बाद पहले बल्लेबाजी करते हुए वेस्टइंडीज ने निर्धारित 20 ओवरों में छह विकेट के नुकसान पर 169 रन बनाए।

वेस्टइंडीज की तरफ से कप्तान क्रिस गेल ने सबसे ज्यादा 98 रन बनाए। उन्होंने 66 गेंदों का सामना करते हुए पांच चौके और सात छक्के लगाए लेकिन शतक बनाने से चूक गए।

टीम का पहला विकेट 80 रन के स्कोर पर शिवनारायण चंद्रपाल के रूप में गिरा। चंद्रपाल 29 गेंद पर 23 रन बनाकर नेहरा की गेंद पर आउट हुए। धौनी को कैच थमाने से पहले उन्होंने अपनी पारी में दो चौके लगाए। इसके बाद 119 के स्कोर पर सैमी आउट हुए। उन्होंने 10 गेंद पर 19 रन बनाए जिसमें दो चौके और एक छक्का शामिल था।

वेस्टइंडीज को तीसरा झटका 160 रन के स्कोर पर लगा जब कीरोन पोलार्ड 11 गेंद पर 17 रन बनाकर आउट हुए इस पारी में उन्होंने दो छक्के लगाए। अंतिम ओवर में वेस्टइंडीज का चौथा विकेट 163 रन के स्कोर पर गिरा जब ड्वेन ब्राओ एक रन बनाकर आउट हुए।

पांचवें विकेट के रूप में राम नरेश सरवन बिना खाता खोले आउट हुए उस समय टीम का स्कोर 164 रन था। छठा विकेट कप्तान क्रिस गेल के रूप में गिरा। वह रन आउट हुए उस समय टीम का स्कोर 165 रन था।

भारत की तरफ से आशीष नेहरा ने 35 रन देकर तीन खिलाड़ियों को आउट किया। वहीं जहीर खान और रवींद्र जडेजा को एक-एक विकेट मिला।

पिच गीली होने के कारण मैच आधा घंटा विलंब से शुरू हुआ। टॉस से ठीक पहले अचानक आई बारिश ने पिच को गीला कर दिया था। इसके बावजूद मैच को 20-20 ओवरों का कराने का फैसला किया गया।

IAS टॉपर बने शाह फैसल

गुरुवार, 6 मई 2010

श्रीनगर के डॉक्टर शाह फैसल ने सिविल सर्विस परीक्षा-2009 में सर्वोच्च स्थान हासिल कर साबित कर दिया है कि मेहनत ही सफलता कुंजी है। उन्होंने ये मुकाम प्रथम प्रयास में ही हासिल कर लिया। शाह फैसल के पिता आतंक हमले के शिकार हो गए थे।
संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) में इस बार कुल 875 उम्मीदवरों में से 680 पुरुष और 195 महिलाओं को प्रतिष्ठित भारतीय प्रशासनिक सेवा, भारतीय विदेश सेवा, भारतीय पुलिस सेवा और अन्य केंद्रीय सेवाओं के लिए चयनित किया गया।
फैशल ने श्रीनगर से एमबीबीएस किया और उन्होंने पहले प्रयास में ही यह सफलता हासिल की है। उन्होंने एमबीबीएस की डिग्री हासिल करने के बाद आईएएस की तैयारी में जुट गए। और प्रथम प्रयास में ही मुकाम को पा लिया। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली से बीटेक करने वाले प्राकाश राजपुरोहित ने दूसरा स्थान हासिल किया, वहीं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की इवा सहाय तीसरा स्थान हासिल करने में सफल रहीं। सहाय महिला उम्मीदवारों में शीर्ष पर हैं।
यूपीएससी के मुताबिक टॉप करने वाले 25 लोगों में से 15 पुरुष और 10 महिलाएं शामिल हैं।
सिविल सेवा परीक्षा-2009 के लिए कुल 409,101 उम्मीदवारों ने आवेदन किया था। प्रारंभिक परीक्षा में 193,091 उम्मीदवार शामिल हुए थे और 12,026 परीक्षार्थी मुख्य परीक्षा के लिए सफल हुए थे।
मार्च-अप्रैल 2010 के दौरान साक्षात्कार के लिए कुल 2,432 उम्मीदवारों का चयन किया गया था।

निरुपमा के नाम पिता का खत

बुधवार, 5 मई 2010

महिला पत्रकार निरुपमा की हत्या की गुत्थी उलझती जा रही है। इस बीच एक खत सामने आया है। जो निरुपमा के पिता ने निरुपमा के नाम लिखा है। जिसमें कई राज छुपे हैं। चिट्ठी में निरुपमा के नाम से उसके पिता ने शुरू किया है.....
तुम्हारा नाम मैंने निरुपमा रखा था जिसका अर्थ है जिसकी कोई उपमा न दी जा सके। ये शब्द शंकराचार्य जी के क्षमापनस्त्रोत्रम से मैंने लिया था। वाक्य है- मयि निरुपम यत्प्रकुरुषे। तुमने जो कदम उठाया है या उठाने जा रही हो, मैं कहूंगा कि सनातन धर्म के विपरीत कदम है। आदमी जब धर्म के अनुकूल आचरण करता है तो धर्म उसकी रक्षा करता है और जब धर्म के प्रतिकूल आचरण करता है तो धर्म उसका विनाश कर देता है।
पिता ने आगे लिखा- भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि वयस्क लोग अपनी मर्जी से विवाह के बंधन में बंध सकते हैं। लेकिन हमारे संविधान को बने महज 60 साल ही हुए हैं इसके विपरीत हमारा धर्म सनातन कितना पुराना है कोई बता नहीं सकता है। अपने धर्म एवं संस्कृति के अनुसार उच्च वर्ण की कन्या निम्न वर्ण के वर के साथ व्याही नहीं जा सकती है। इसका प्रभाव हमेशा अनिष्टकर होता है। थोड़ी देर तक तो यह सब अच्छा लगता है लेकिन बाद में समाज, परिवार के ताने जब सुनने पड़ते हैं तो पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं मिलता है। इस तरह के कदम से लड़का लड़की दोनों के परिवार दुखी होते हैं। मां, बाप, भाई, बहन जब दुखी होते हैं तो उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करनेवाला जीवन में कभी सुखी नहीं होगा। ये सब चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात वाली कहावत के समान है।
धमेन्द्र पाठक

‘कसाब शैतान का नुमाइंदा है’

मंगलवार, 4 मई 2010

मुंबई हमले के गुनहगार पाकिस्तानी आतंकवादी आमिर अजमल कसाब की जिंदगी और मौत का फैसला चंद घंटों बाद हो जाएगा। सरकारी वकील उज्जवल निकम की मानें तो कसाब पर नरमी बरतना भारी गलती होगी। निकम तो एक ही रट लगा रहे हैं कि कसाब को फांसी की सजा दी जाए। अदालत में अपनी दलील रखते हुए निकम ने कसाब को शैतान का नुमाइंदा और किलिंग मशीन तक करार दिया।
दरअसल मुंबई पर 26/11 के आतंकी हमलों को अंजाम देने के सभी आरोपों में दोषी ठहराए गए पाकिस्तानी आतंकवादी मोहम्मद अजमल आमिर कसाब को अभियोजन पक्ष के वकील उज्जवल निकम ने 'शैतान का नुमाइंदा' और 'हत्या की मशीन' करार दिया।
निकम की मानें तो "कसाब के लिए अधिकतम सजा मृत्युदंड और न्यूनतम आजीवन कारावास है।"
निकम ने कहा, "मैं कसाब के लिए सजा-ए-मौत चाहूंगा। यह बदले की भावना नहीं है और न ही हम बर्बर न्याय चाहते हैं। बल्कि न्याय मिलना चाहिए।"
कसाब के मामले में निकम ने कहा यह सिर्फ लोगों की हत्या का मामला नहीं है बल्कि जिस बर्बर तरीके से इसे अंजाम दिया गया उसने समाज के सामूहिक चेतना को हिलाकर रख दिया।
उन्होंने कहा कि कसाब ने लोगों की केवल हत्या ही नहीं की बल्कि इस कृत्य का मजा भी ले रहा था। यह उसके अनैतिक व्यवहार और मानव जीवन की पूर्ण उपेक्षा को दर्शाता है।
वकील ने कसाब आदमी के वेष में जहरीला सांप है जो बार-बार काटना चाहता है। इसकी तुलना किसी से करना गलत होगा। ये मानवता के नाम पर कलंक है।

दरअसल 26 नवंबर 2008 की रात जब वह छत्रपति शिवाजी टर्मिनस पहुंचा तो ज्यादा भीड़ न देखकर दुखी हो गया।
उन्होंने कहा कि कसाब और उसका सहयोगी अबू इस्माइल ज्यादा से ज्यादा लोगों को मारना चाहते थे लेकिन उनकी यह इच्छा पूरी नहीं हुई। इसलिए वह दुखी हो गए थे। यह उनके अंदर 'पशु की भावना' को प्रदर्शित करती है।
मालूम हो कि 26 नवंबर, 2008 की रात पाकिस्तान से आए 10 आतंकवादियों ने मुंबई के विभिन्न स्थानों पर हमला बोला था। लगभग 60 घंटे तक इन आतंकवादियों और सुरक्षाकर्मियों के बीच चले संघर्ष में 166 लोगों की मौत हो गई थी जबकि 244 घायल हो गए थे।

‘मनु शर्मा को उम्रकैद की सजा गलत’

रविवार, 2 मई 2010


जेसिका लाल हत्याकांड के मुख्य दोषी मनु शर्मा को उम्रकैद की सजा सुनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पास पुख्ता सबूत नहीं था। सरकार ने मनु शर्मा के खिलाफ झूठे गवाह बनाए। मनु शर्मा ने किसी भी सबूत के साथ छेड़छाड़ नहीं की। ये कहना पूर्व कानून मंत्री और जाने-माने वकील राम जेठमलानी का है। न्यूज चैनल आईबीएन7 से खास बातचीत में जेठमलानी ने ये बातें कही।
जेठमलानी की मानें तो उन्होंने कभी नैतिकता से समझौता नहीं किया, विवेक ने जो कहा वो कदम उन्होंने उठाया। उनका कहना है कि जनता वकालत के बारे में नहीं जानती, वो केवल भावनाओं के पीछे भागती है। मीडिया जो दिखाती है जनता उसी को सच मान लेती है, जो कि गलत है।
जब उनसे पूछा गया कि मनु शर्मा को हरएक जनता दोषी मान रही है तो फिर आपकी नजर में मनु कैसे निर्दोष है। इस सवाल के जवाब में जेठमलानी ने कहा कि मनु शर्मा के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं था कि उसने सबूत के साथ छेड़छाड़ की। मनु के खिलाफ सरकार से झूठे गवाह तैयार किए। यही नहीं, जेठमलानी मनु की उम्रकैद की सजा को सही नहीं मानते।
वहीं चर्चित रुचिका केस के बारे में जेठमलानी का कहना है कि 19 साल बाद फिर से ऱाठौर के खिलाफ केस दर्ज करना गलत है। उन्होंने कहा कि राठौर ने कोई रेप किया था वो केवल छेड़छाड़ का मामला था।
इसके अलावा गोधरा केस के बारे में जेठमलानी का तर्क है कि उन्होंने उस केस को गुजरात से बाहर इसलिए सुनवाई की मांग की, क्योंकि वहां कुछ पुलिस अधिकारी केस को प्रभावित करने में लगे थे। उन्होंने कहा कि केन्द्र सरकार एसआईटी में फेरबदल चाहती थी, जो कि गलत है। एसआईटी सही जांच कर रही है।
आखिर में उनसे पूछा गया कि आप केवल विवादित केस ही क्यों लड़ते हैं, क्या आप पैसों के खातिर और सुर्खियों में बने रहने के लिए ये सब करते हैं? इस सवाल के जवाब में जेठमलानी ने कहा कि उन्हें पब्लिसिटी की जरूरत नहीं है। जहां तक पैसे कमाने की बात है तो वो 90 फीसदी केस मुफ्त में लड़ते हैं।

अजूबा, 70 साल से भूखा है प्रह्लादभाई

गुरुवार, 29 अप्रैल 2010


13 अगस्त 1929 से आज तक 79 साल बीत चुके हैं। प्रह्लादभाई की मानें तो जन्म के 9 साल बाद से उन्होंने न कुछ खाया न पीया। 70 साल से इस शख्स को भूख ही नहीं लगती। सवाल ये कि आखिर क्या कोई दैवीय शक्ति प्रह्लादभाई के साथ चल रही है। आखिर उनके शरीर को शक्ति कहां से मिलती है।
प्रह्लादभाई के मुताबिक भूख न लगना ईश्वर से मिला एक ऐसा आशीर्वाद है जो शायद दुनिया में और किसी को नहीं मिला। ये आशीर्वाद कैसे मिला इसकी भी एक बेहद दिलचस्प कहानी है। प्रह्लादभाई बचपन से श्रीनाथजी की पूजा किया करते थे। एक दिन पूजा करते हुए उन्हें महाकाली दिखने लगीं। भक्त प्रह्लाद ने जब ये बात अपने घरवालों को बताई तो सभी ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया।
लेकिन ईश्वर के इस बाल पुजारी को पूजा से कोई रोक नहीं पाया। ऐसे ही एक दिन प्रह्लाद आरती कर रहे थे। तभी वो अचानक बेहोश हो गए। प्रहालादभाई की मानें तो बेहोशी में ही महाकाली ने एक बार फिर दर्शन दिए और अपनी एक उंगली प्रह्लाद भाई की जबान पर रख दी।
प्रहालादभाई की मानें तो ‘ऊंगली रखी उसके बाद सब कुछ छोड़ दिया। मुझे कहा गया तुम योग पर चले जाओ। दरअसल मैं वैष्णव उपासक था। योग पर चला गया उसके बाद याद नहीं आ रहा की पानी क्या है। दूध का स्वाद कैसा होता है।‘
उस दिन के बाद से 70 साल बीत चुके हैं। लेकिन उन्हें न भूख लगी और न प्यास। तब से लेकर आज तक 25 हजार दिन बीत चुके हैं। लेकिन मां काली का आशीर्वाद उनके साथ ही है। दिन हो या रात। कोई भी मौसम हो प्रह्लादभाई को भूख नहीं लगती।
प्रह्लादभाई को जो शक्ति मिली वो आज भी उनके साथ है। हर मौसम में उनके साथ रहती है। लेकिन बचपन में मिली ये ताकत उनके साथ अब तक कैसे है। इसका भी एक राज है। दरअसल प्रहालाद भाई ईश्वर से आशीर्वाद मिलने के बाद हिमालय की ओर चले गए। वहां रहकर 12 साल तक उन्होंने तपस्या की।
भूख पर प्रह्लादभाई की विजय आग की तरह हर गांव और शहर में फैलती जा रही थी। लेकिन इन सबकी परवाह किए बिना वो अपने परिवार को छोड़कर हिमालय की तरफ चले गए। प्रह्लादभाई का कहना है कि वो बारह साल तक कड़कड़ाती ठंड, बर्फीले तूफान में योग करते रहे। मां काली के आशीर्वाद के बाद योग साधना ने धीरे-धीरे उन्हें और मजबूत कर दिया।
भूखे रहकर समाधि दिनों से बढ़कर महीने और महीने से बढ़कर साल तक होती चली गई। वक्त बदलता रहा, मौसम बदलता रहा, लेकिन प्रह्लादभाई ने अपनी तपस्या नहीं छोड़ी। 12 साल हिमालय के बर्फीले मौसम में वक्त गुजारने के बाद वो नर्मदा नदी के पास आ गए। यहां उन्होंने एक और घनघोर तपस्या शुरू की। कई साल तक वो पानी में ही रहकर योग करते रहे। प्रह्लादभाई की मानें तो हिमालय से लौटने के बाद उनके शरीर ने हर तरह के मौसम पर भी विजय हासिल कर ली।
प्रहालादभाई की मानें तो ‘मैं कोई आध्यात्मिक जगह पर नहीं पहुंचा हूं। जंगलों में घूमने वाला हूं। योग के जरिए अभी काफी कुछ हासिल करना है। ऋषि कह गए हैं कि बारह साल में सिद्धि मिलती है। मेरी खोज अभी जारी है। 80 साल से जंगलों में घूम रहा हूं। बुढापा लाना नहीं है।‘
भूख पर विजय हासिल करने के बाद प्रह्लादभाई ने महाराष्ट्र के जंगलों में कई साल तक तपस्या की। 45 साल तक मौनव्रत के चलते उनकी आवाज भी लगभग चली गई थी। डॉक्टरों ने हिदायद दी कि आप कुछ बोलना शुरू करें वर्ना आवाज हमेशा के लिए चली जाएगी। डॉक्टरों की इस हिदायत के बाद उन्होंने कुछ बोलना शुरू किया है। लेकिन अब भी उन्हें दिक्कत होती है।
जैसे-जैसे प्रह्लादभाई का नाम की चर्चा बढ़ती गई। लोगों के साथ ही डॉक्टर भी हैरान होते गए। मेडिकल साइंस के लिए प्रह्लादभाई थे एक जिंदा चुनौती। आखिर कैसे कोई इंसान बिना खाए-पिए जिंदा रह सकता है। इसलिए अहमदाबाद के नामी डॉक्टरों ने प्रह्लादभाई पर रिसर्च करने की ठानी। तीन सौ बड़े डॉक्टरों की एक टीम बनाकर प्रह्लादभाई पर रिसर्च शुरू कर दी गई।

मेरे पास अमिताभ है...!

शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2010

एक नाम जो कई माइने-आइने दिखाता है, वो नाम हर वो बोली बोलता है। कभी दहाड़ता है तो कभी झुककर अभिवादन भी करता है। कहावत है कि एक सिक्के के दो पहलू होते हैं, परंतु इसे सिक्के में दो पहलू तो हैं लेकिन दोनों एक जैसे!

इनकी ऐसी सधी चाल जिसमें अगर जीत पक्की ना हो, लेकिन हार भी नहीं होती। भले ही इस दामन पर कुछ बदनुमा दाग हो, लेकिन फिर भी इनके आगे विरोधी नहीं टिकते, अपनों ने तो मानो घुटने की टेक दिए हों। जी हां, हम बात करे रहे हैं राजनीति के धुरंधर नरेन्द्र मोदी की।

मोदी वैसे तो पर्दे पर दहाड़ने और विरोधियों पर तीखे प्रहार के लिए जाने जाते हैं। लेकिन कभी-कभी ये पर्दे के पीछे से भी ऐसा तीर चलाते हैं। जिससे विरोधी घायल ही नहीं, चीखने लगता है। आखिर चीखे भी क्यों नहीं! मोदी ऐसी चाल ही चलते हैं जिससे सामने वाले को डंक लग जाता है। और फिर दुहाई का सिलसिला चलता है। लेकिन बेफ्रिक मोदी जोर का झटका जोर से ही देते हैं।

हाल ही में मोदी ने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन को अपने कारवां में शामिल कर शतरंज की नई बिसात रच दी है। मोदी के आमंत्रण पर अमिताभ बच्चन गुजरात टूरिज्म के ब्रांड एम्बेसडर बनने को तैयार हो गए हैं। जल्द ही अमिताभ मोदी सरकार का गुणगान करते नजर आएंगे। यानी मोदी की धुन पर बिग बी थिरकने वाले हैं।

मोदी के नगर में अमिताभ की डगर को देख विरोधियों ने दुहाई देने का सिलसिला शुरू भी कर दिया है। आखिर लड़ाई की धुरी में अमिताभ बच्चन जो हैं। कांग्रेस ने तो यहां तक कह डाला कि अमिताभ गलत जगह फंस गए हैं। मोदी अपनी दागदार छवि को सुधारने के लिए अमिताभ को मोहरा बनाया है। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर कांग्रेस को ये सब कहने की जरूरत क्यों आन पड़ी?

क्या ये कांग्रेस की झुंझलाहट नहीं है। हां, झुंझलाहट होना लाजिमी है, बात जो अमिताभ बच्चन की है। जो कभी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बेहद करीबी माने जाते थे। लेकिन समय के साथ सबकुछ बदल गया, राजनीति, किरदार और तो और दोस्ती के मायने भी बदल गए। आज अमिताभ सबसे बड़े सुपरस्टार हैं लेकिन कांग्रेस के हाथ के साथ नहीं हैं।

अमिताभ का मशहूर डायलॉग 'मैं जहां पे खड़ा होता हूं लाइन वहीं से शुरू होती है' आज के अमिताभ के किरदार के साथ बिल्कुल फिट बैठता है। क्योंकि आज अमिताभ जहां खड़े होते हैं बॉलीवुड वहीं से शुरू होता है। यूं कहें एक कुली, दीवार और जंजीर को तोड़ते हुए नि:शब्द होकर सरकार की परवाह किए बिना शोले, वक्त और आग पर चलते हुए एक मासूम की किरदार में प्रकट होते हैं। आज वो हर एक किरदार जो अमिताभ से होकर ही गुजरता है। गुजरे भी कैसे नहीं, 40 साल की कड़ी मेहनत जो है इसके पीछे।

ये तो बात हुई अमिताभ की जो बॉलीवुड में प्रयोग के लिए जाने जाते हैं। लेकिन राजनीति में मोदी भी अमिताभ से कुछ कम नहीं। भले ही राजनीति में मोदी की लकीर ना हों। लेकिन मोदी को राजनीति को नया मोड़ देने में महारत हासिल है। मौका देखकर चौका लगाना वो अच्छी तरह से जानते हैं। ऐसा चौका जिसको मारने में कोई खतरा नहीं। क्योंकि मोदी राजनीति के अखाड़े से इतनी तो कल्पना कर ही लेते हैं कि अगर गेंद कुछ देर और हवा में होती तो शायद छक्का ही होता। यानी मोदी की एक ऐसी शॉट जिसपर आउट होने का कोई खतरा नहीं।

साफ शब्दों में कहें तो मोदी ने अमिताभ को ब्रांड एम्बेसडर के लिए राजी कर राजनीति के अखाड़े में एक जोरदार शॉट लगाया है। जिसके पीछे कांग्रेस भाग रही है लेकिन उसके हाथ कुछ भी नहीं आएगी। कोई कुछ कहे, लेकिन मोदी कभी-कभी अपनी अकेले की चाल से कांग्रेस पर भारी पड़ जाते हैं।

दरअसल मोदी ने 'पा' क्या देखी ऑरो को ही गोद ले लिया। और राजनीति के गलियारों में हलचल मच गई। लेकिन इस हलचल से अमिताभ और मोदी दोनों बेफ्रिक हैं। मानो दो बिछड़े एक-दूसरे के सहारे के लिए साथ हो गए हैं। आखिर ये तो होना ही था। क्योंकि अमिताभ के मुंहबोले छोटे भाई अमर सिंह खुद साइकिल से उतर चुके हैं तो वहां अमिताभ की क्या पूछ। अमिताभ भी कहते हैं वो तो बस एक कलाकार हैं और लोगों का मनोरंजन करते हैं। हां, ये अलग बात है कि कुछ साल पहले ये साइकिल पर सवार होकर यूपी में जुर्म करने होने का ऐलान किया करते थे। और अब मोदी का भगवा झंडा बुलंद करेंगे। किसी ने सच ही कहा है कि समय बड़ा बलवान होता है।