इस साल गर्मी निकालेगी तेल, बारिश बिगाड़ेगी खेल

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

आनेवाले सालों में हरियाली भारत के नक्शे से गायब हो सकती है। हिंदुस्तान रेगिस्तान बन सकता है। ये एक ऐसी हकीकत जो बेहद कड़वी है। वैज्ञानिकों ने भारत पर मंडरा रहे खतरे की तरफ इशारा किया है और कहा कि ये डरावना सच 2050 तक हकीकत में तब्दील हो सकता है। पुणे की इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल एंड मेटेरेयोलॉजिकल रिसर्च की एक स्टडी तो यही बता रही है।

ये संस्था भारत में जलवायु परिवर्तन पर नजर रखनेवाली जानीमानी सरकारी संस्थानों में से एक है। इसके तीन वैज्ञानिकों ने अमेरिका, फ्रांस और थाइलैंड के मौसम वैज्ञानिकों के साथ भारत में बदलते तापमान पर शोध किया। नतीजे चौंकाने और डराने वाले हैं। रिसर्च के नतीजों के मुताबिक सदी के अंत तक भारत में तापमान 6 डिग्री तक बढ़ जाएगा। अगले 30-40 साल में तापमान में करीब 4 डिग्री का इजाफा होगा। दिन का न्यूनतम तापमान बढ़ता जाएगा। गर्मियों में रात का तापमान भी दिन की झुलसा देनेवाली तपिश के बराबर होगा। गर्मी का मौसम और लंबा हो जाएगा। यानि हरियाली धीरे-धीरे रेगिस्तान में तब्दील हो जाएगी।

जरा सोचिए कि 50 डिग्री के पार पारा चला गया तो क्या हाल होगा। आपका एयरकंडीशनर तक नकारा हो जाएगा। कूलर का पानी भी खौल उठेगा। बाहर निकलेंगे तो चेहरा झुलस जाएगा।
इन सबकी वजह ग्लोबल वॉर्मिंग है। कारखानों और गाड़ियों के धुएं से फैलता बेकाबू प्रदूषण, जिसके चलते ग्रीन हाउस के प्रभाव से निकलने वाली गैस बेकाबू होती जा रही है। धड़ाधड़ काटे जा रहे पेड़ और इन सबके चलते कुदरत में बदलाव होता जा रहा है।

रिसर्च के मुताबिक पहले तो तापमान 2 डिग्री से 3.5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ेगा और फिर ये वजहें इसे और फैलने का मौका दे देंगी। इसकी बानगी है साल 2009 में भारत में पड़ी बेतहाशा गर्मी। आधिकारिक तौर पर 2009 भारत का अबतक का सबसे गर्म साल रहा है और 2009 में तापमान बाकी सालों के मुकाबले 1 डिग्री सेल्सियस ज्यादा बढ़ गया।

मौसम विभाग के मुताबिक जब गर्मी को लेकर भारत में पिछले 108 सालों का रिकॉर्ड देखा गया तो ये पता चला कि इस दौरान गिने गए कुल 12 सबसे गर्म सालों में से 8 साल सिर्फ साल 1999 से 2009 तक के बीच में थे। यानि पिछले 10 सालों में ही गर्मी ने 108 साल के रिकॉर्ड को धराशाई कर दिया। वहीं पिछले साल यानि 2010 में दुनिया भर में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी ने लोगों को बेहाल करके रख दिया।

वहीं दूसरी तरफ IITM पुणे के वैज्ञानिकों की मानें तो एक तरफ जब तेजी गर्मी का कहर कम होगा तो दूसरी तरफ बारिश कहर बरपाएगा। IITM पुणे की रिसर्च में कुछ ऐसे ही भयंकर तथ्य सामने आए हैं। वैज्ञानिकों की टीम ने इस रिसर्च के जरिए जो आंकड़े हासिल किए हैं। उसके मुताबिक भारत में सालाना औसत बारिश में 8-10 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन बारिश के मामले में समस्या इसके सालाना औसत से नहीं, बल्कि इसकी रफ्तार और मॉनसून की टाइमिंग से है। ऐसे में बारिश हद से ज्यादा मूसलाधार और भारी होगी।

मॉनसून के दिनों में हद से ज्यादा बारिश होने से खेती को काफी नुकसान होगा। मई और अक्टूबर के बीच में होनेवाली बारिश करीब 20 फीसदी तक बढ़ जाएगी। इसकी वजह से करीब 20 फीसदी फसल बर्बाद हो जाएगी। चारों तरफ बाढ़ और बादल फटने का खतरा मंडराने लगेगा। दिल्ली और आसपास न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाएगा।

गौरतलब है कि 5 अगस्त 2010 को लेह में एकाएक बादल फटने से 100 से ज्यादा लोग मौत के आगोश में चले गए। IITM पुणे के मुताबिक मॉनसून के दौरान तापमान में अचानक आई बढ़ोतरी भी लेह त्रासदी की वजह बनी। ये इशारा था कि कुदरत अपने साथ हो रहे खिलवाड़ से किस कदर गुस्से में है। ये सबूत था कि ग्लोबल वॉर्मिग का नतीजा कितना खतरनाक हो सकता है।

इसके बाद नए साल 2011 की शुरुआत में ही ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया में आई भयानक बाढ़। अकेले ब्राजील में ही करीब 700 लोग बाढ़ की चपेट में आकर मारे गए। रिसर्च में जो दावे किए गए उससे तो यही लगता है कि हिंदुस्तान के नक्शे पर एक मौसम में सिर्फ रेत होगी तो दूसरे मौसम में सिर्फ पानी होगा।

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