राजनीति अब वंशवाद की ओर

मंगलवार, 10 मार्च 2009

वंशवाद, परिवारवाद ये सब डिक्शनरी के लफ्ज थे। लेकिन अब इन लफ्जों को बीजेपी ने बड़ी सहजता से अपने पार्टी कल्चर में उतार लिया है। अब दक्षिण भारत में बीजेपी के झंडा बुलंद करने वाले कर्नाटक के पहले भाजपा मुख्यमंत्री येद्युरप्पा को ही लाजिए। अभी मुख्यमंत्री बने नहीं कि विरासत की चिंता सताने लगी। इसलिए मैदान में उतार दिया अपने बेटे राघवेंद्र को। राघवेंद्र कर्नाटक में शिमोगा से बीजेपी के उम्मीदवार हैं।
बीजेपी के दूसरे लाल स्मार्ट, गुडलुकिंग, हैंडसम अनुराग ठाकुर हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के बेटे हैं। राज्य में क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं। लेकिन इससे पेट नहीं भरा। धूमल ने जब हमीरपुर की सीट छोड़ी तो बैट पकड़ा दिया अपने बेटे को। नेता बन गए तो अब बात भी नेताओं की तरह करते हैं। ‘मैं पहले से क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष था और बहुत मेहनत करनी पड़ी है। हमारे यहां जो काम करता है उसे ही टिकट दिया जाता है।“
परिवारवाद पर थूथू करने वाली बीजेपी के सिर्फ यही दो लाल नहीं हैं। वसुंधरा सीएम बनीं तो बेटे दुष्यंत सिंह को झालावाड़ से एमपी बना दिया। वे अब फिर चुनाव लड़ रहे हैं। वसुंधरा ऐसा कर सकती हैं तो जसवंत सिंह क्या राजस्थान के कोई छोटे नेता हैं। खुद राज्यसभा में और उनके लाल मानवेंद्र बाड़मेर से लोकसभा में। मानवेंद्र फिर चुनाव लड़ रहे हैं। उत्तर प्रदेश में बीजेपी की लुटिया डूब गई लेकिन प्रदेश में पार्टी के बड़े नेता ओमप्रकाश सिंह का कुछ नहीं बिगड़ा। खुद विधायक हैं और बेटे को एमपी का टिकट दिलवा दिया।
मेनका गांधी की गांधी परिवार से नहीं बनीं तो उन्होंने अपना रास्ता बदल लिया। रास्ता तो बदला लेकिन गांधी परिवार की तरह डायनेस्टी पोलीटिक्स में उनका विशवास बना रहा। इसलिए वरुण गांधी को राजनीति में उतार दिया। मां मेनका आंवला से तो बेटा वरुण यूपी के पीलीभीत से बीजेपी के उम्मीदवार हैं। ये तो वो हैं जिन्हें चुनाव लड़ने की हरी झंडी मिल गई है। कई कतार में हैं। साहब सिंह वर्मा के बेटे प्रवेश वर्मा। प्रमोद महाजन की बेटी पूनम महाजन। उड़ीसा में देवेंद्र प्रधान के सांसद बेटे धर्मेंद्र प्रधान।