टाइटैनिक जहाज के डूबने का खुला राज

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

कई मंजिला जहाज समुंद्र में डूब गया और साथ में दे गया जलसमाधि 1517 लोगों को। टाइटैनिक डूबने के करीब 100 साल बाद इस त्रासदी का सच सामने आया है। टाइटैनिक पर छपी नई किताब में दावा किया गया है कि जहाज के डूबने के लिए दुर्घटना नहीं बल्कि चालक दल की गलती जिम्मेदार थी। यही नहीं, किताब के मुताबिक हिमखंड यानि आईसबर्ग से टक्कर के बाद भी जहाज पर सवार यात्रियों की जान बचाई जा सकती थी।

अब तक यही माना जाता रहा है कि 14 अप्रैल 1912 को दुर्घटना के वक्त टाइटैनिक जहाज तेज गति से चल रहा था और चालक दल हिमखंड को देख नहीं पाया और इसी हिमखंड से टकराकर जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। लेकिन टाइटैनिक डूबने की असली वजह यह नहीं थी बल्कि टाइटैनिक का डूबना चालक दल की गलती का नतीजा था।

ये खुलासा टाइटैनिक के बारे में छपी 'गुड एज गोल्ड' नाम की नई किताब में किया गया है। इस किताब में दावा किया गया है कि चालक दल चाहता तो इस भयानक त्रासदी को टाला जा सकता था। द टेलिग्राफ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इस घटना के सौ साल बाद इस पुस्तक में कहा गया है कि हिमखंड को देखने के बाद चालक दल के पास काफी समय था और वे टाइटैनिक को उससे टकराने से बचा सकते थे। लेकिन वे इस कदर भयभीत हो गए कि जहाज को उन्होंने उसी दिशा में मोड़ दिया। जब तक गलती का पता चलता तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

दरअसल दुनिया का सबसे बड़ा जहाज टाइटैनिक 10 अप्रैल 1912 को साउथंपटन से न्यूयॉर्क के लिए अपनी पहली यात्रा पर निकला था लेकिन चालक दल की गलती की वजह से समंदर में समा गया। टाइटैनिक को अभेद्ध समझा जाता था, कहा जाता था कि ये जहाज कभी डूब नहीं सकता। टाइटैनिक पर दो तरह के स्टियरिंग सिस्टम काम कर रहे थे। जहाज पर मौजूद चालक दल के कुछ सदस्यों को एक सिस्टम की जानकारी थी तो बाकी को दूसरे सिस्टम की। लेकिन अचानक इन दोनों सिस्टम के बीच तालमेल टूट गया और हिमखंड से टक्कर के बाद दोनों सिस्टम के चालक दल अलग-अलग दिशा में काम करने लगे और टाइटैनिक समंदर के आगोश में समा गया।

लुईस पैटन के मुताबिक उनके दादा लाइटोलर को इस गलती का एहसास हो गया था। जहाज डूबने से पहले उन्होंने चार वरिष्ठ अधिकारियों के साथ फर्स्ट ऑफिसर्स केबिन में एक अंतिम बैठक भी की थी। इस बैठक में जहाज को डूबने से बचाने की हर कोशिश पर चर्चा हुई। लुईस पैटन ने अपनी किताब में यह भी दावा किया है कि टक्कर के बाद यात्रियों को डूबने से बचाया जा सकता था अगर जहाज को टक्कर के बाद उल्टी दिशा में न चलाकर वहीं स्थिर खड़ा कर दिया जाता।

दरअसल टाइटैनिक बनाने वाली कंपनी व्हाइट स्टार लाइन के चेयरमैन ने टक्कर के बाद भी कैप्टन से जहाज को धीमी गति से आगे चलाते रहने की जिद की। करीब दस मिनट तक चलने के बाद जहाज की पेंद में घुस रहे पानी का दबाव बढ़ गया जिसकी वजह से टाइटैनिक जल्दी डूब गया। अगर जहाज को टक्कर के बाद पानी में स्थिर खड़ा रखा जाता तो ये कई घंटों बाद पानी में डूबता जिससे चार घंटे की दूरी पर खड़े दूसरे जहाज से मदद मिल सकती थी और हादसे का शिकार हुए 1517 लोगों की जान बचाई जा सकती थी।

लुईस पैटन के मुताबिक उनके दादा ने ये राज सिर्फ अपनी पत्नी को बताया था। दादी ने यही राज अपनी पोती पैटन के सामने उजागर कर दिया। हालांकि उन्होंने ऐसा कभी नहीं कहा कि वो ये राज अपने सीने में ही दफन रखे। लेकिन दादी की मौत के 40 साल बाद पैटन को लगा कि टाइटैनिक जल त्रासदी से जुड़ा ये राज अब सिर्फ उन्हीं तक सीमित ना रहे बल्कि दुनिया को भी पता चले की टाइटेनिक डूबने की असली वजह हादसा नहीं, बल्कि एक गलती थी।

1 टिप्पणियाँ:

seema gupta ने कहा…

इस पुस्तक से परिचय कराने का आभार.....
regards