निरुपमा के नाम पिता का खत

बुधवार, 5 मई 2010

महिला पत्रकार निरुपमा की हत्या की गुत्थी उलझती जा रही है। इस बीच एक खत सामने आया है। जो निरुपमा के पिता ने निरुपमा के नाम लिखा है। जिसमें कई राज छुपे हैं। चिट्ठी में निरुपमा के नाम से उसके पिता ने शुरू किया है.....
तुम्हारा नाम मैंने निरुपमा रखा था जिसका अर्थ है जिसकी कोई उपमा न दी जा सके। ये शब्द शंकराचार्य जी के क्षमापनस्त्रोत्रम से मैंने लिया था। वाक्य है- मयि निरुपम यत्प्रकुरुषे। तुमने जो कदम उठाया है या उठाने जा रही हो, मैं कहूंगा कि सनातन धर्म के विपरीत कदम है। आदमी जब धर्म के अनुकूल आचरण करता है तो धर्म उसकी रक्षा करता है और जब धर्म के प्रतिकूल आचरण करता है तो धर्म उसका विनाश कर देता है।
पिता ने आगे लिखा- भारतीय संविधान में यह प्रावधान है कि वयस्क लोग अपनी मर्जी से विवाह के बंधन में बंध सकते हैं। लेकिन हमारे संविधान को बने महज 60 साल ही हुए हैं इसके विपरीत हमारा धर्म सनातन कितना पुराना है कोई बता नहीं सकता है। अपने धर्म एवं संस्कृति के अनुसार उच्च वर्ण की कन्या निम्न वर्ण के वर के साथ व्याही नहीं जा सकती है। इसका प्रभाव हमेशा अनिष्टकर होता है। थोड़ी देर तक तो यह सब अच्छा लगता है लेकिन बाद में समाज, परिवार के ताने जब सुनने पड़ते हैं तो पश्चाताप के अलावा कुछ नहीं मिलता है। इस तरह के कदम से लड़का लड़की दोनों के परिवार दुखी होते हैं। मां, बाप, भाई, बहन जब दुखी होते हैं तो उनकी इच्छा के विरुद्ध काम करनेवाला जीवन में कभी सुखी नहीं होगा। ये सब चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात वाली कहावत के समान है।
धमेन्द्र पाठक

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